
देश के अन्नदाताओं के लिए खेती को फायदे का व्यवसाय बनाने की दिशा में केंद्र और राज्य सरकारें लगातार प्रयास कर रही हैं. किसानों को नई तकनीक और योजनाओं से जोड़ने के लिए सरकारें उद्यानिकी क्षेत्र को भी बढ़ावा दे रही हैं. इसी दिशा में राजस्थान के धौलपुर जिले के मनियां कस्बे के सत्तर का पुरा गांव के एक युवा किसान राकेश कुमार ने मिसाल पेश की है. राकेश ने पारंपरिक खेती छोड़कर उद्यानिकी फसल की ओर कदम बढ़ाया और पॉली हाउस में खीरे की खेती कर लाखों रुपये का मुनाफा कमाया है.
राकेश कुमार पहले अपने परिवार के साथ गेहूं, सरसों, बाजरा और अन्य पारंपरिक फसलों की खेती करते थे, लेकिन मौसम की मार, अतिवृष्टि और ओलावृष्टि के कारण हर बार उन्हें नुकसान उठाना पड़ता था. पारंपरिक खेती से अपेक्षित लाभ नहीं मिलने पर उन्होंने खेती का आधुनिक तरीका अपनाने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने पिछले साल धौलपुर उद्यान विभाग के उप निदेशक डॉक्टर तनोज चौधरी से संपर्क किया.
डॉक्टर चौधरी ने उन्हें उद्यानिकी विभाग की विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी. राकेश ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत एक बीघा से कम खेत में पॉली हाउस लगाने की अनुमति ली. पात्रता की शर्तें पूरी करने के बाद उन्हें सरकार से आर्थिक सहायता मिली. उन्होंने 2016 वर्ग मीटर क्षेत्र में पॉली हाउस लगाया जिसकी कुल लागत 22 लाख 9 हजार 979 रुपये आई. इस पर उन्हें उद्यान विभाग से 17 लाख 4 हजार 588 रुपये की सब्सिडी मिली, जबकि शेष पांच लाख पांच हजार 451 रुपये राकेश ने खुद खर्च किए.
पॉली हाउस तैयार होने के बाद राकेश ने इसमें खीरे की खेती शुरू की. उन्होंने चार हजार चार सौ खीरे के पौधे लगाए और करीब 40 दिन में फसल तैयार हो गई. एक बेल से औसतन 10 किलो खीरे की उपज मिली. इस फसल से राकेश ने पहली बार में करीब चार से पांच लाख रुपये का मुनाफा कमाया. अब वह दूसरी बार भी खीरा उगा रहे हैं और इस बार ज्यादा पौधे लगाने के कारण अधिक मुनाफे की उम्मीद कर रहे हैं.
राकेश बताते हैं कि पॉली हाउस में फसलें मौसम के प्रभाव से सुरक्षित रहती हैं. न तो तेज धूप का असर होता है और न ही बारिश या ओलावृष्टि से नुकसान. साथ ही, पॉली हाउस में तापमान नियंत्रित होने के कारण उत्पादन बेहतर होता है और कीटों का प्रकोप भी नहीं के बराबर रहता है. उन्होंने बताया कि खेती में अगर आधुनिक तकनीक अपनाई जाए और सरकारी योजनाओं का लाभ लिया जाए तो खेती किसी उद्योग से कम नहीं है.
धौलपुर उद्यान विभाग के उप निदेशक डॉक्टर तनोज चौधरी ने बताया कि पॉली हाउस में तैयार खीरा गुणवत्ता और स्वास्थ्य दोनों दृष्टि से लाभदायक है. इसमें कोई कीटाणु नहीं होता और इसका छिलका भी पतला रहता है. वहीं खुले खेतों में पैदा होने वाले खीरे का छिलका मोटा होता है और उनमें कीटाणुओं का खतरा अधिक होता है.
डॉक्टर चौधरी ने बताया कि विभाग किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहित कर रहा है. प्लास्टिक मल्चिंग पर प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपये की इकाई लागत पर 50 प्रतिशत सब्सिडी अधिकतम दो हेक्टेयर तक दी जाती है. वर्मी कम्पोस्ट यूनिट के लिए 50 प्रतिशत या अधिकतम 50 हजार रुपये का सब्सिडी उपलब्ध है. प्याज और लहसुन भंडारण के लिए भी 50 प्रतिशत या अधिकतम 87 हजार 500 रुपये की सहायता दी जाती है.
इसके अलावा ड्रिप, मिनी स्प्रिंकलर और स्प्रिंकलर प्रणाली लगाने पर सामान्य किसानों को 70 प्रतिशत और लघु, सीमांत, अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला किसानों को 75 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है. पौध संरक्षण रसायनों के लिए भी एक हेक्टेयर उपचार हेतु 50 प्रतिशत या अधिकतम 500 रुपये तक की सहायता दी जाती है.
डॉ. चौधरी ने बताया कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कुसुम योजना के तहत तीन, पांच और साढ़े सात एचपी के सौर पंप संयंत्र लगाने पर किसानों को 60 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है. एसटी और एससी वर्ग के किसानों को 45 हजार रुपये अतिरिक्त सहायता दी जाती है.
राकेश कुमार की सफलता की देख आज उनके पॉली हाउस को देखने और सीखने के लिए आसपास के किसान भी पहुंच रहे हैं. धौलपुर के एक छोटे से गांव से शुरू हुई यह पहल अब पूरे क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है. (उमेश मिश्रा की रिपोर्ट)