
बिहार के किसान आनंद सिंह ने "मरचा धान" को एक नई पहचान दी है, जो धान की एक पुरानी किस्म है. पश्चिम चंपारण की मिट्टी में उगने वाला यह धान, अपनी खास खुशबू और बेहतरीन स्वाद के लिए देश-दुनिया में मशहूर हो गया है. यह एक खास तरह का धान है जो इसी इलाके में उगता है. इसे "मरचा" धान इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके दाने काली मिर्च की तरह दिखते हैं. इस धान से बहुत ही खुशबूदार और बढ़िया चूड़ा यानि पोहा बनता है. यह इतना खास हो गया है कि भारत सरकार ने इसे जीआई (GI) टैग भी दिया है. आनंद सिंह ने यह काम तब किया, जब उस इलाके के कई किसान अपनी पुरानी फसलों को कम फायदे वाला समझकर छोड़ रहे थे. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर पुरानी चीजों को भी अच्छे से उगाया और बेचा जाए, तो किसान बहुत तरक्की कर सकते हैं. आनंद सिंह ने अपनी परंपरा को मुनाफे से जोड़कर एक मिसाल कायम की है.
पश्चिम चंपारण के समहौता गांव के रहने वाले आनंद सिंह को खेती का 20 वर्षों का लंबा अनुभव है. ऐसे समय में जब कई किसान अधिक उपज देने वाली हाइब्रिड किस्मों के पीछे भाग रहे थे, तब किसान आनंद सिंह ने "मरचा धान" की असली ताकत को पहचाना. उन्होंने समझा कि यह केवल पेट भरने का अनाज नहीं, बल्कि एक प्रीमियम उत्पाद है जिसकी बाजार में खास मांग है. मरचा धान की सबसे बड़ी खासियत इसके दाने नहीं, बल्कि इससे बनने वाला चूड़ा, जिसे पोहा या 'फ्लेक्स' भी कहते हैं. जब इस धान से चूड़ा बनाया जाता है, तो वह बेहद मुलायम, सुपाच्य और एक विशिष्ट भीनी-भीनी सुगंध से भरा होता है. यह खाने में इतना स्वादिष्ट होता है कि इसे किसी भी पारंपरिक पकवान का राजा कहा जा सकता है. यह धान की फसल लगभग 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
आनंद सिंह और उनके जैसे किसानों की मेहनत तब रंग लाती है, जब यह फसल बाजार पहुंचती है. भले ही मरचा धान की औसत उपज अन्य किस्मों की तुलना में सामान्य 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हो, लेकिन इसकी कीमत सब बराबर कर देती है. जहां साधारण चूड़ा 40-50 रुपये किलो बिकता है, वहीं मरचा धान के इस खास चूड़े की कीमत स्थानीय बाजार में 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिलती है. यह प्रीमियम मूल्य सीधे किसानों की जेब में जाता है, जिससे उनकी आय में जबरदस्त मुनाफा हुआ.
वर्तमान में, पश्चिम चंपारण में लगभग 400 एकड़ क्षेत्र में ही इसकी खेती हो रही है. लेकिन इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसे अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं. आनंद सिंह बताते हैं कि इस धान के चूड़े की एक और खास बात है — इसकी शेल्फ-लाइफ. यह चूड़ा सामान्य तापमान पर भी 4 से 6 महीने तक खराब नहीं होता, जिससे किसानों और व्यापारियों को इसे बेचने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है.जीआई टैग मिलने के बाद मरचा धान की ब्रांड वैल्यू बहुत बढ़ गई है. यह टैग सुनिश्चित करता है कि "मरचा धान" के नाम पर कोई कंपनी नकली उत्पाद नहीं बेच सकती.
हर अच्छी चीज के साथ कुछ चुनौतियां भी होती हैं. मरचा धान की लोकप्रियता तो बढ़ रही है, लेकिन इसके साथ एक कृषि संबंधी समस्या भी है. इस किस्म के पौधे थोड़े कमजोर होते हैं और तेज हवा या बारिश में अक्सर गिर जाते हैं. अब इस समस्या के समाधान के लिए किसान कृषि वैज्ञानिकों की ओर देख रहे हैं. जरूरत है कि इस किस्म पर वैज्ञानिक मूल्यांकन हो. कृषि विशेषज्ञ और ब्रीडिंग समाधान के द्वारा "मरचा धान" की ऐसी उन्नत किस्म विकसित करने की जरूरत है, जिसका तना मजबूत हो और वह गिरे नहीं. सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस सुधार प्रक्रिया में धान की मूल सुगंध, स्वाद और चूड़े की गुणवत्ता से कोई समझौता न हो.
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