बीते छह साल से सरकारी दफ्तरों और कोर्ट के चककर लगाने वाले किसान सूरजमल का सिलिसला एक महीने के लिए रुक गया था. वो भी तब जब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बीमा कंपनी को आदेश दिया था कि वो किसान को एक महीने में उसका मुआवजा दे. लेकिन एक बार फिर 15 अप्रैल से किसान का रुका हुआ सिलसिला शुरू हो जाएगा. जींद, हरियाणा के इस किसान की लड़ाई अभी अपने अंजाम तक नहीं पहुंची है. लड़ाई है फसल बीमा की रकम पाने की. लेकिन मुआवजे के मामले में किसान के दोनों हाथ अभी भी खाली हैं.
किसान सूरजमल बीते छह साल से बजाज एलायंज कंपनी और कृषि विभाग के साथ फसल बीमा पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. विभाग और बीमा कंपनी दोनों मानते हैं कि किसान सूरजमल की कपास की फसल बारिश के चलते 100 फीसद खराब हो चुकी है, लेकिन बीमा देने को फिर भी तैयार नहीं हैं. बीमा तो छोड़िए सर्वे रिपोर्ट की कॉपी तक किसान को नहीं दी गई. उस एक अदद कॉपी के लिए भी किसान को आरटीआई का सहारा लेना पड़ा.
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किसान तक से फोन पर बात करते हुए किसान सूरजमल ने बताया कि 13 अप्रैल को कोर्ट का दिया एक महीना पूरा हो चुका है. लेकिन इस दौरान कंपनी ने कोर्ट के आदेश के बाद भी न तो मुआवजा ही दिया और न ही किसी तरह का कोई संपर्क किया. लेकिन उन्हें भनक लग चुकी है कि कंपनी अभी भी मुआवजा देने को तैयार नहीं है.
कंपनी अभी इस मुकदमे को ऊपर की कोर्ट में ले जाने की तैयारी कर रही है. इसलिए मैंने भी स्टेट कंज्यूमर कोर्ट में अपील की तैयारी शुरू कर दी है. 70 साल से ज्यादा की मेरी उम्र हो चुकी है. लेकिन खराब हुई कपास की फसल का बीमा लिए बिना मैं मानूंगा नहीं. चाहें इसके लिए मुझे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी क्यों न जाना पड़े.
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किसान सूरजमल का कहना है कि पूरे छह साल में एक बार खराब हुई फसल का सर्वे करने बीमा कंपनी का व्यक्ति विभाग के कर्मचारी के साथ आया था. तभी पहली और आखिरी बार उसे देखा था. शहर में बीमा कंपनी का कोई दफ्तर भी नहीं है. विभाग में जाते थे तो हर रोज मुंह जुबानी एक नया बहाना बना दिया जाता था. 250 से 300 रुपये खर्च कर लगभग रोजाना ही सरकारी दफ्तरों की खाक छानता था.
आरटीआई में पूछने पर एक बार जांच रिपोर्ट का विवरण भेजते हुए बताया, ‘शिकायतकर्ता को लोकलाईज्ड क्ले म आधार पर मुआवजा नहीं दिया जा सका. क्यों कि प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत बारिश के कारण हुआ फसला खराबा लोकलाईज्डि क्लेंम में शामिल नहीं है. अत: बीमा कंपनी के कथन अनुसार शिकायकर्ता को मुआवजा देय नहीं बनता.’ यह लाइन आरटीआई के जवाब में ठीक इसी तरह से लिखकर दी गई है.
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