क्या आप जानते हैं कि पाउच में जो दूध हम बाजार से 66 रुपये का खरीदते हैं उसी को डेयरी कंपनी किसानों से 73 से लेकर 87 रुपये लीटर तक के रेट से खरीदती हैं. लेकिन महंगा खरीदने के बावजूद डेयरी कंपनियां बाजार में अपने ग्राहकों को उसी दूध को सस्ता बेचते हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि डेयरी कंपनियां नुकसान उठाकर दूध को सस्ता बेचती हैं. लेकिन, क्योंकि अमूल, वीटा, नंदनी, सरस, सुधा जैसी डेयरी को कोऑपरेटिव संस्था चलाती हैं तो इसका संचालन किसानों के हित में किया जाता है.
दूध के बढ़ते दाम से बने मौजूदा हालात से कुछ दिन में राहत मिल जाएगी. चारे की कमी से निपटने के लिए बड़े कदम उठाए जा रहे हैं. किसान चारे की खेती की ओर रुख करें इसके लिए 100 किसान एफपीओ को मंजूरी दी गई है. 50 फीसद की छूट वाली स्कीम लाई जा रही हैं. इससे चारे की कमी को दूर किया जाएगा. बीते कई दशक से चारे की जमीन सिर्फ चार फीसद है. इसमे कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. उल्टे बहुत सारी जगहों पर तो चारागाह की जमीन पर अतिक्रमण तक हो गया है.
ये आंकड़े, समस्याएं और योजनाएं समय के साथ बदलती रहती हैं, लेकिन अब आप ये जान लीजिए कि आखिर पैकेट वाला ये दूध तैयार कैसे होता है? आखिर ऐसा क्या होता है कि ये दूध 2-3 दिन तक खराब नहीं होता...क्या है पूरा प्रोसेस, कैसे किसान और पशुपालक इसमें होते हैं शामिल-
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वीटा डेयरी, हरियाणा के डिप्टी जीएम प्रोडक्शन चरण जीत सिंह ने किसान तक को बताया कि भैंस की नस्ल और उसकी खुराक के हिसाब से दूध में फैट (चिकनाई) आती है. आमतौर पर डेयरी कंपनी 10 फीसद से लेकर 7.5 फीसद की फैट वाला दूध किसानों से खरीदती हैं. इस दूध के रेट 85 रुपये प्रति लीटर से लेकर 65 रुपये लीटर तक होते हैं. इसमे दो रुपये प्रति लीटर सोसाइटी के जोड़ दिए जाते हैं. इसके बाद ट्रांसपोर्ट की मदद से किसानों से खरीदा गया दूध प्लां ट पर लाया जाता है. यहां दूध प्रोसेस करने के बाद अलग-अलग वजन और कैटेगिरी के पाउच में पैक किया जाता है. जैसे गोल्ड, टोंड कैटेगिरी आदि.
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एक बार फिर दोबारा से ट्रांसपोर्ट की मदद से डेयरी की गाड़ियां दूध को बाजार तक पहुंचाती हैं. जहां दुकानों से आम ग्राहक दूध खरीदते हैं. इस सब पर डेयरी का प्रति लीटर छह रुपये खर्च होता है. इस तरह से दूध की कीमत 93 और 73 रुपये लीटर तक पहुंच जाती है. अब सवाल यह उठता है कि कैसे 93 और 73 रुपये प्रति लीटर वाला दूध बाजार में सस्ता बिकता है. दूध को सस्ता करने के लिए डेयरी कंपनियां दूध में से फैट निकालती हैं. जैसे 7.5 फीसद की फैट वाले दूध में से 1.5 फीसद फैट निकाली जाती है तो 10 फीसद फैट वाले दूध में से 4 फीसद फैट. ऐसा करने से दूध के दाम नो प्रॉफिट और नो लॉस पर आ जाते हैं.
लाखों-करोड़ों रुपये के विज्ञापन, एक लम्बा-चौड़ा इंफस्ट्राक्चर का खर्च निकालना भी डेयरी कंपनियों के लिए चुनौती होती है. इस बारे में चरण जीत सिंह ने बताया कि कोऑपरेटिव संस्थाओं वाली डेयरी में दूध पर कोई मुनाफा नहीं मिलता है. लेकिन दूध से बने जो दूसरे प्रोडक्ट जैसे घी-बटर, दही, छाछ और आइसक्रीम आदि हैं उससे कंपनी को मुनाफा होता है. अगर कई सारे प्रोडक्टस में से घी-बटर और दही भी चल गया तो पूरी डेयरी कंपनी मुनाफे में आ जाती है. ऐसे कई डेयरियों के उदाहरण हैं कि वो दही या बटर बेचकर पूरी कंपनी को चला रहे हैं.
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