IFFCO Nano Urea: नैनो यूर‍िया पर फ‍िर उठे सवाल, इफको के दावे को पंजाब एग्रीकल्चर यून‍िवर्स‍िटी के र‍िसर्च में चुनौती

IFFCO Nano Urea: नैनो यूर‍िया पर फ‍िर उठे सवाल, इफको के दावे को पंजाब एग्रीकल्चर यून‍िवर्स‍िटी के र‍िसर्च में चुनौती

पीएयू की यह र‍िसर्च र‍िपोर्ट तब सामने आई है जब इफको नैनो यूर‍िया की 6 करोड़ से अध‍िक बोतलें घरेलू बाजार में बेच चुकी है. यही नहीं कलोल, फूलपुर और आंवला में 17 करोड़ बोतलों की क्षमता वाले तीन यूर‍िया प्लांट भी स्थाप‍ित कर चुकी है. डेनमार्क के वैज्ञान‍िकों ने जब उठाए थे सवाल तब हमने इसे व‍िदेशी साज‍िश कहकर खार‍िज क‍िया, लेक‍िन अब पीएयू द्वारा उठाए गए सवालों का क्या है जवाब?

इफको ने 31 मई 2021 को नैनो यूर‍िया लॉन्च क‍िया था.इफको ने 31 मई 2021 को नैनो यूर‍िया लॉन्च क‍िया था.
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jan 04, 2024,
  • Updated Jan 04, 2024, 11:42 PM IST

डेनमार्क के दो वैज्ञानिकों के बाद अब भारतीय कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने भी नैनो यूर‍िया को लेकर सवाल उठाए हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) लुधियाना के विशेषज्ञों ने अपनी एक र‍िसर्च में नैनो-यूरिया की प्रभावकारिता (Efficacy) पर सवाल खड़े कर द‍िए हैं. यह देश की जानी मानी एग्रीकल्चर यून‍िवर्स‍िटी है, ज‍िसकी र‍िसर्च अपने आप में मायने रखती है. पीएयू में मृदा विज्ञान विभाग के प्रमुख रसायन व‍िशेषज्ञ राजीव सिक्का और नैनोटेक्नोलॉजी की अनु कालिया सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने चावल और गेहूं की उपज पर नैनो-यूरिया के प्रभावों की जांच के लिए दो साल तक र‍िसर्च की. ज‍िसमें इसका इस्तेमाल करने पर चावल की पैदावार में 13 फीसदी और गेहूं की पैदावार में 21.6 फीसदी की भारी कमी दर्ज क‍िए जाने का दावा क‍िया गया है. 

पीएयू की यह र‍िसर्च र‍िपोर्ट तब सामने आई है जब इफको और सरकार दोनों नैनो यूर‍िया को बढ़ाकर पारंपर‍िक यूर‍िया को काफी हद तक र‍िप्लेस करने की कोश‍िश में जुटे हुए हैं. रसायन और उर्वर‍क मंत्रालय के अनुसार 30 नवंबर 2023 तक इफको 500 एमएल वाली नैनो यूर‍िया की 6 करोड़ 76 लाख बोतलें घरेलू बाजार में बेच चुकी है. यही नहीं कलोल, फूलपुर और आंवला में 17 करोड़ बोतलों की क्षमता वाले तीन यूर‍िया प्लांट भी स्थाप‍ित कर चुकी है. 

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नैनो यूर‍िया और सरकार

अध्ययन के निष्कर्ष फसल की पैदावार को प्रभावित करने वाली संभावित कमियों, प्रोटीन सामग्री में उल्लेखनीय गिरावट और खेती की लागत में समग्र वृद्धि पर प्रकाश डालते हैं. नैनो यूर‍िया इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने बनाया है जो न स‍िर्फ देश की सबसे प्रत‍िष्ठ‍ित और बड़ी खाद कंपनी है बल्क‍ि दुन‍िया की नंबर वन सहकारी कंपनी भी है. इसकी खोज को सरकार भी जोरशोर से प्रमोट कर रही है. क्योंक‍ि, पर कोई सब्स‍िडी नहीं है. जबक‍ि सामान्यू यूर‍िया पर उसे भारी भरकम सब्स‍िडी वहन करनी पड़ती है. देश में उर्वरक सब्स‍िडी 2.5 लाख करोड़ रुपये के आसपास पहुंच गई है ज‍िसमें यूर‍िया का ह‍िस्सा ही सबसे ज्यादा है. 

न‍िशाने पर नैनो यूर‍िया 

इफको का दावा है क‍ि इससे उत्पादन बढ़ता है और क‍िसानों को लागत कम आती है. हालांकि, पीएयू की र‍िसर्च इफको और केंद्र सरकार के इस क्रांतिकारी दृष्टिकोण की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है. नैनो यूर‍िया को लेकर पूर्व में राजस्थान के क‍िसानों ने समय-समय पर सवाल उठाए हैं. यही नहीं संसद में भी इस पर कई बार सवाल क‍िए गए हैं ज‍िस पर सरकार इसके साथ खड़ी हुई नजर आई है. 

द‍िसंबर 2022 में राज्यसभा में इसे लेकर एक सवाल आया था. तब जवाब में रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा था, "यह स्वदेशी रिसर्च है. यह देश के किसानों के लिए है और दुनिया भी इसकी तरफ देख रही है. हम बिना कारण के अपने देश में इसके प्रति कोई ऐसा प्रश्न न खड़ा करें, जिससे दुनिया की किसी लॉबी को नैनो-फर्टिलाइजर या हमारी रिसर्च अप्रूवल बॉडीज पर उंगली उठाने का अवसर म‍िले. हर मसले पर डिटेल्ड स्टडी करके इसको मार्केट में लाया गया है."  

इफको का दावा और पीएयू की चुनौती

इफको ने 31 मई 2021 को नैनो यूर‍िया लॉन्च क‍िया था. तब दावा क‍िया गया था क‍ि नैनो यूर‍िया की 500 मिली की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान करता है. इसकी प्रभावशीलता की जांच करने के लिए देश में 94 फसलों पर लगभग 11,000 कृषि क्षेत्र परीक्षण किए गए. ज‍िसमें फसलों की उपज में औसतन 8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. 

जबक‍ि, दो वर्ष तक चला पीएयू का अध्ययन, चावल और गेहूं की फसलों पर नैनो-यूरिया के स्प्रे के प्रभाव पर बड़े सवाल उठाता है. वह कहता है क‍ि पारंपरिक यूर‍िया की तुलना में नैनो यूर‍िया के इस्तेमाल से चावल और गेहूं की पैदावार में उल्लेखनीय कमी आई है. साथ ही अनाज नाइट्रोजन सामग्री में कमी से चावल और गेहूं में प्रोटीन के स्तर पर खतरा पैदा हो गया है, जो आबादी की पोषण संबंधी जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण है. इस तरह यह र‍िसर्च इफको द्वारा किए गए दावों को चुनौती देता है. साथ ही उस प्रेशर ग्रुप को बल भी देता है जो नहीं चाहता क‍ि पारंपर‍िक यूर‍िया का उपयोग कम करके उर्वरक सब्स‍िडी का बोझ क‍म क‍िया जाए. 

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इफको को देनी चाह‍िए सफाई

प‍िछले साल डेनमार्क के दो वैज्ञान‍िकों ने भी हॉलैंड में छपे एक रिसर्च पेपर 'प्लांट एंड सॉइल' में नैनो यूर‍िया की क्षमता और फायदे पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था क‍ि इफको ने नैनो यूरिया से जितनी उम्मीद जताई है वह वास्तविकता से बहुत दूर है. दोनों ने आगाह भी किया था कि इससे किसानों को भारी फसल नुकसान झेलना पड़ सकता है. इसे तो हमने व‍िदेशी साज‍िश कहकर खार‍िज क‍िया, लेक‍िन अब पीएयू द्वारा उठाए गए सवालों का क्या जवाब है. अब क‍िसान कम से कम यह चाहेंगे क‍ि ज‍िस तरह से इस पर सवाल उठ रहे हैं ऐसे में इफको के टॉप मैनेजमेंट को सामने आकर इन शंकाओं का समाधान करना चाह‍िए, वरना यह प्रोडक्ट खतरे में पड़ सकता है. हालांक‍ि, इफको ने अभी तक पीएयू की र‍िसर्च पर कोई ट‍िप्पणी नहीं की है.   

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