बिहार में धान की खेती का तरीका बदल रहा है. अब अधिकतर किसान सीधी बुआई (Direct Seeding of Rice - DSR) तकनीक अपना रहे हैं. इससे खेत की तैयारी में मेहनत कम लगती है और खर्चा भी घटता है. लेकिन इस तकनीक में एक नई चुनौती सामने आई है- भूरा धब्बा रोग. यह रोग धीरे-धीरे कई इलाकों में फैल रहा है और फसल को भारी नुकसान पहुंचा रहा है.
डॉ. राजीव श्रीवास्तव, कृषि वैज्ञानिक, बताते हैं कि इस रोग का मुख्य कारण है गलत उर्वरक प्रबंधन और पानी की कमी. कई बार किसान खेत में पर्याप्त पोषक तत्व नहीं देते या समय पर सिंचाई नहीं कर पाते. इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और भूरा धब्बा रोग उन पर जल्दी हमला करता है.
इसका एक और कारण यह भी हो सकता है कि:
इस रोग की पहचान करना मुश्किल नहीं है, लेकिन समय पर पहचानना जरूरी है, ताकि इसका असर कम किया जा सके:
अगर यह रोग समय पर ना रुके, तो:
किसानों को नीचे दिए गए उपाय अपनाने चाहिए:
जो किसान जैविक खेती करते हैं, वे नीम का अर्क, गौमूत्र आधारित जैविक फंगीसाइड, या ट्राइकोडर्मा फफूंद का प्रयोग कर सकते हैं. ये उपाय भी रोग को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं, खासकर शुरुआती स्तर पर.
भूरा धब्बा रोग से लड़ना मुश्किल नहीं है, अगर किसान सतर्क रहें और समय रहते उपाय करें. मौसम में बदलाव और खेत में अधिक नमी इस रोग को बढ़ावा देती है, इसलिए फसल की नियमित जांच करें और खेतों को पानी से भरने से बचाएं. धान की बेहतर पैदावार के लिए जागरूकता और समय पर कार्यवाही सबसे जरूरी है.