खाद्य तेलों के बंपर आयात के बावजूद भारत में सरसों की खेती करने वाले किसान इस साल निराश हैं. वजह यह है कि उन्हें इसका एमएसपी भी नसीब नहीं हो रहा है. रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए सरसों का एमएसपी 5650 प्रति क्विंटल तय है लेकिन किसान बता रहे हैं कि उन्हें 4000 से 5000 रुपये तक का ही भाव मिल रहा है. इसकी तस्दीक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) के दाम से भी हो रही है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट में भी यह साफ हो रहा है किसानों को सरसों की कीमत एमएसपी से कम मिल रही है. ऐसे में अब किसान सरसों को स्टोर करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. उन्हें आने वाले दिनों में दाम बढ़ने की उम्मीद दिखाई दे रही है. कृषि मंत्रालय के मुताबिक मंडियों में पिछले साल के मुकाबले आवक 22 फीसदी कम हो गई है.
कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल 1 से 18 मई तक 1,67,992 मीट्रिक टन सरसों बिकने आई है. जबकि 2023 में यह इसी अवधि के दौरान आवक 2,15,278 टन थी. इसी तरह 2022 में आवक और अधिक 2,39,615 टन थी. हरियाणा की मंडियों में सरसों की आवक 56, उत्तर प्रदेश में 46, उत्तराखंड में 38 और मध्य प्रदेश में 28 फीसदी कम हुई है. हालांकि, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ की मंडियों में आवक पहले से बढ़ गई है. किसान पंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि बाजार में यह चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के बाद सरसों के दाम में तेजी दिख सकती है, इसलिए किसान अब उपज को रोक रहे हैं.
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मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 1 से 18 मई के बीच देश में सरसों का दाम 5101.78 रुपये प्रति क्विंटल रहा. देश के सबसे बड़े उत्पादक राजस्थान में इसका दाम सिर्फ 4991.21 रुपये प्रति क्विंटल रहा. बहरहाल, किसानों को उम्मीद है कि इस साल के अंत तक बाजार की स्थितियां बदलेंगी. तब उन्हें अच्छा दाम मिल सकता है. ऐसे में अभी बाजार में बेचने की बजाय इसे स्टोर करके रखने का विकल्प अच्छा है.
साल 2022 में सरसों का दाम एमएसपी से अधिक था. तब 1 से 18 मई के बीच बाजार में सरसों का दाम 6543.94 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि तब एमएसपी सिर्फ 5050 रुपये प्रति क्विंटल था. यानी इस बार 2022 के मुकाबले सरसों का दाम कम है. किसानों को उम्मीद है कि 2021-22 की तरह इस साल भी उन्हें नवंबर-दिसंबर तक सरसों का अच्छा भाव मिल सकता है. भारत खाद्य तेलों का प्रमुख आयात है. हम रूस, यूक्रेन, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया और मलेशिया से सालाना करीब 1.4 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल मंगा रहे हैं.
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है कि इस समय खाद्य तेलों का आयात शुल्क पिछले कुछ वर्षों में सबसे कम है. इसकी वजह से खाने वाले तेल का कारोबार करने वालों को आयात सस्ता पड़ रहा है. रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से दोनों में एक दूसरे से सस्ता सूरजमुखी तेल बेचने की स्पर्धा चल रही है. इसकी वजह से पहली बार सूरजमुखी का तेल पाम और सोयाबीन से भी सस्ता हो गया है. सूरजमुखी तेल का खूब आयात हो रहा है, इसलिए सरसों का दाम कम है. जब सरकार आयात शुल्क बढ़ाएगी तभी दाम बढ़ेंगे.
इस समय 915 रुपये का 10 किलो सूरजमुखी तेल आ रहा है. अगर 5650 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदा गए सरसों के तेल की कीमत निकालें तो यह 141 रुपये किलो पड़ेगी. ऐसे में सरसों की खरीद कम है. हालांकि, किसानों को एमएसपी तो मिलना ही चाहिए लेकिन कारोबारी पहले सस्ते पर ध्यान देगा. इसलिए वो भारतीय किसानों से महंगा सरसों खरीदने की बजाय रूस-यूक्रेन से सस्ता सूरजमुखी तेल आयात करना पसंद कर रहा है.
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