आजकल देश के किसानों का औषधीय खेती की ओर चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. किसान अपनी आय बढ़ाने के लिए न सिर्फ पारंपरिक खेती कर रहे हैं बल्कि औषधीय फसलों की भी खेती कर रहे हैं ताकि मुनाफा कमा सकें. ऐसे में ईसबगोल की खेती किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प है. वहीं बात करें इसके फायदे कि तो लोगों के खराब दिनचर्या और समय पर सही ढंग का खाना न खाने की वजह से कमजोर पाचन शक्ति को मजबूत बनाने के काम आता है.
ऐसे में ईसबगोल का सेवन लोग बड़े पैमाने पर करते हैं. ऐसे में किसानों के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि ईसबगोल की अधिक उपज के लिए क्या करें? साथ ही जान लें फसल की कटाई का सही तरीका.
अगर आपको ईसबगोल की खेती से उपज को बढ़ानी हो तो, बड़े आकार के रोग रहित बीज की बुवाई करें. इसके लिए किसान 4 किलो रोग रहित बीज प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें. इससे फसल का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. साथ ही किसानों को ईसबगोल की छिड़काव पद्धति से बुवाई करनी चाहिए. वहीं बुवाई करते समय बीज में महीन बालू रेत और छनी हुई गोबर की खाद मिलाकर बुवाई करें जिससे अधिक उत्पादन हो सकता है.
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किसानों की जानकारी के लिए बता दें कि इसकी खेती उष्ण जलवायु में भी आसानी से की जा सकती है. इसके पौधों को विकास करने के लिए भूमि का पीएच मान सामान्य होना चाहिए. यदि जमीन नमी वाली हो तो इसके पौधों का सही तरीके से विकास नहीं होता. इसीलिए ईसबगोल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है.
ईसबगोल की खेती के लिए किसानों को सही समय का ज्ञान होना चाहिए. बता दें कि ईसबगोल की बुवाई अक्टूबर से नवंबर माह के बीच होनी चाहिए. इसके बीजों की बुवाई कतारों में की जाती है. इनकी कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर होना जरूरी है. बीज को करीब 3 ग्राम थाईरम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर लें और मिट्टी में मिला लें. इसके बाद ही बुवाई की करें.
ईसबगोल का फसल 110-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. फसल पकने पर पौधों की ऊपरी पत्तियां पीली और नीचे की पत्तियां सूख जाती हैं. फिर बालियों को हथेली में मसलने पर दाने आसानी से निकल जाते हैं. इसी अवस्था पर फसल की कटाई करनी चाहिए. वहीं कटाई सुबह के समय करने पर फसलों के झड़ने की समस्या से बचा जा सकता हैं. साथ ही ये भी ध्यान दें कि फसल कटाई देर से न करें नहीं तो दाने झड़ने से उपज में बहुत कमी आ सकती है.