देश के किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर तेजी से व्यवसायिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि किसानों को परंपरागत खेती करने से परिवार का पालन पोषण करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे ही एक है पवन. दरअसल हिमाचल प्रदेश के हरोली जिले गोंदपुर गांव के रहने वाले किसान पवन कुमार एक प्रगतिशील किसान हैं. इनके पास अपनी लगभग 15 कनाल जमीन है. जिस पर वो कई वर्षों तक गेहूं और मक्के की खेती करते थे. जिससे उनके घर पर पालन-पोषण भी बड़ी मुश्किल से हो पाता था. साथ ही बदलने जमाने और बढ़ते हुए खर्च से बच्चों की पढ़ाई भी पूरा नहीं हो पा रहा था. उसके बाद उन्होंने बागवानी से अपनी जीवन को बदलते हुए साल में अब 8-9 लाख रुपये कमाते हैं.
पवन कुमार ने बताया कि उनके जीवन में बदलाव तब आया जब वह कुछ साल पहले उन्हें फसल विविधीकरण की जानकारी कृषि विभाग की ओर से मिली. उसके बाद उन्होंने फसल विविधिकरण के महत्व को समझते हुए, मक्के और गेहूं की जगह अपनी खेतों में अलग-अलग प्रकार की सब्जियां लगानी शुरु की. जिससे उनके आय में बढ़ोतरी होने लगी. साथ ही उन्होंने बताया कि वो अपनी खेती में कृषि विभाग की ओर से दी जाने वाली सभी सुविधाओं का फायदा उठाया. इसमें सब्जियों के बीज से लेकर कृषि यंत्र का भी लाभ उठाया. जो विभाग द्वारा सब्सिडी के तौर पर मिला. ये कमद उनको प्रगति के पथ पर ले गया.
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किसान पवन ने बताया कि जब उनकी आय में वृद्धि होने लगी तब उन्होंने सब्जी उत्पादन को बढ़ाने के लिए कुछ जमीन भी लीज पर लिया. इस तरह किसान पवन आज के समय में लगभग 60 कनाल में खेती कर रहे हैं. जिसमें वो खीरा, लोबिया, करेला, कद्दू, लौकी और तोरई की खेती मुख्य तौर पर करते हैं. वहीं उन्होंने बताया कि फसल विविधीकरण से बेहतर फायदा हो रहा है. वहीं आज समय में किसान पवन अन्य गांव की महिलाओं को भी रोजगार दे रहा है. साथ ही उनकी पत्नी भी खेती करती हैं. जिससे अब उनके बच्चे बेहतर शिक्षा के लिए अच्छे कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि फसल विविधीकरण की मदद से वह 10 क्विंटल खीरा, 8 क्विंटल कद्दू, 2 क्विंटल लोबिया, 90 किलो तोरई वो हर तीसरे दिन बाजार में बेचने को भेजते हैं. जिसकी कीमत लगभग 5100 रुपये है. इस प्रकार पवन कुमार हर साल लगभग 8 से 9 लाख रुपये की कमाई करते हैं. वहीं उन्होंने अपने खेतों में फसल की तुडाई के लिए 8 से 10 लोगों को रोजगार दिया है.
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