Fish Care in Winter मौसम के जानकारों की मानें तो आने वाले आठ से दस दिन में मौसम में बदलाव शुरू हो जाएगा. सर्दियां दस्तक देना शुरू कर देंगी. हालांकि ये आने वाले मौसम की शुरुआत होती है, बावजूद इसके मछली पालन करने वालों के लिए इसी के साथ परेशानियां भी शुरू हो जाती हैं. मछलियों पर बदलते मौसम का असर साफ दिखाई देने लगता है. खुद मछलियां अपनी हरकतों से बताने लगती हैं कि वो बदलते मौसम से परेशान हैं. जैसे ही मछलियों पर ठंड का असर होता है तो वो तालाब में अपनी जगह बदलने लगती हैं.
ये इस बात का इशारा होता है कि तालाब के पानी का तापमान सामान्य करने की जरूरत है. कुछ ऐसे काम किए जाएं जिससे पानी का तापमान न बढ़े. क्योंकि पानी में रहने वाली मछलियों को भी ठंड लगती है. ठंड लगने से मछलियां बीमार भी होती हैं. इस दौरान मछलियों को बीमारी से बचाने के लिए मछली पालकों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.
मछली पालक अरुण सिंह का कहना है कि जैसे ही मछलियों को तालाब का पानी ठंडा लगने लगता है तो वो तालाब की तली में ज्यादा रहना पसंद करती हैं. क्योंकि तालाब की ऊपरी सतह का पानी ठंडा होता है और तली का पानी सामान्य होता है. लेकिन तालाब की तली में ज्यादा वक्त बिताने के चलते मछलियों में कई तरह की बीमारी भी होने लगती है. लाल धब्बा इसमे खास बीमारी है. इसीलिए जब दिसम्बर से जनवरी के दौरान मछलियां ऊपरी सतह पर कम दिखाई दें तो समझ जाना चाहिए कि तालाब में उन्हें ठंड लग रही है.
अरुण का कहना है, तालाब का पानी रुका हुआ होता है. जिसके चलते सर्दी के मौसम में यह जल्दी ठंडा हो जाता है. ज्यादातर तालाब खुले में होते हैं तो पानी और जल्दी ठंडा हो जाता है. ठंडे पानी से मछलियों को परेशानी होने लगती है. ऐसे में सुबह-शाम मछलियों को पम्प की मदद से अंडर ग्राउंड वाटर से नहलाया जाता है. जमीन से निकला पानी गुनगुना होता है. इसलिए तालाब के ठंडे पानी में मिलकर यह पूरे पानी को सामान्य कर देता है. दिसम्बर से जनवरी के दौरान जब भी ऐसा लगता है कि तालाब का पानी कुछ ज्यादा ही ठंडा हो रहा है तो उसमे जमीन से निकला पानी मिला दिया जाता है. लेकिन बड़े तालाब में जमीन से निकला पानी मिलाना आसान नहीं होता है. इसलिए बड़े तालाबों में जाल डालकर उस पानी में उथल-पुथल कर काफी हद तक सामान्य कर दिया जाता है. इसी तरह से गर्मियों में भी तालाब के पानी को ठंडा रखने के लिए यह कवायद की जाती है.
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