Goat Farming Tips: बकरियों की अध‍िक मृत्यु दर से हैं परेशान! CIRG की ट‍िप्स से बनेगा काम

Goat Farming Tips: बकरियों की अध‍िक मृत्यु दर से हैं परेशान! CIRG की ट‍िप्स से बनेगा काम

बकरे-बकरियों को दूध और मीट के लिए पाला जाता है. अगर आपकी जरूरत दूध की है तो आप अपने बाड़े में ज्यादा से ज्यादा दूध देने वाली बकरियों की संख्या बढ़ा सकते हैं और अगर आप मीट के लिए सिर्फ बकरे ही पालते हैं तो आर्टिफिशल इंसेमीनेशन तकनीक से बच्चा वजनदार और तंदुरुस्त होगा.

अपनी मां का दूध पीता बकरी का बच्चा. अपनी मां का दूध पीता बकरी का बच्चा.
नासि‍र हुसैन
  • Noida ,
  • Feb 15, 2023,
  • Updated Feb 15, 2023, 1:04 PM IST

बकरी पालन कम लागत में दोहरा मुनाफा देने वाला कारोबार है. लेकिन, बकरी (Goat) पालन में जरा सी चूक बड़ा नुकसान करा सकती है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मथुरा के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. एमके सिंह का ये यह कहना है. उन्होंने बताया कि बकरी पालन में सबसे ज्या‍दा नुकसान बच्चों में मृत्यु दर से होता है. अगर इसे कम कर लिया जाए तो फिर कोई नुकसान ही नहीं है. इसे कम करने के लिए कोई लम्बा-चौड़ा बजट भी नहीं बनाना है. सीआईआरजी के दिए गए चार्ट का ही अगर पालन कर लिया जाए तो मृत्यु दर (Mortality Rate) को कम किया जा सकता है. 

सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट के मुताबिक अब यह जरूरी नहीं है कि बकरी को गर्भवती कराने के लिए उसकी मीटिंग बकरे के साथ कराई जाए. आर्टिफिशल इंसेमीनेशन तकनीक से भी बकरी गर्भवती हो सकती है. इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसकी मदद से आप अपनी पसंद और जरूरत के हिसाब से बच्चा पैदा करवा सकते हैं.

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तय करें बकरी के गाभ‍िन हाेने का वक्त‍ 

CIRG के साइंट‍िस्ट डॉ. एमके सिंह ने किसान तक को बताया कि छोटे बच्चों के लिए मौसम सबसे बड़ा दुश्मन होता है. ज्यादा गर्मी और कड़ाके की ठंड नुकसान पहुंचाती हैं. इसलिए मौसम को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि बकरियों से बच्चा कब पैदा कराएं. जैसे नॉर्थ इंडिया में बकरियों के बच्चों में सबसे ज्यादा मृत्यु दर देखी गई है. क्योंकि यहां गर्मी और सर्दी के मौसम में बड़ा उलटफेर होता है. इसलिए अच्छा होगा कि 15 अप्रैल से 30 जून तक बकरी को गाभिन कराएं. वहीं उससे आगे की बात करें तो अक्टूबर और नवंबर में बकरी को गाभिन करा सकते हैं.

ऐसा करने से जो बकरी अप्रैल से जून तक गाभिन हुई है वो अक्टूबर-नवंबर में बच्चा दे देगी. वहीं जो अक्टूबर-नवंबर में गाभिन हुई है, वो फरवरी-मार्च में बच्चा देगी. मौसम के हिसाब से यह वो महीने हैं जब ना तो ज्यादा गर्मी होती है और ना ही ज्यादा सर्दी. मौसम के लिहाज से इन महीनों में बकरी के बच्चों को कोई तकलीफ नहीं होगी. बकरी पालन के लिहाज से यह वो महीने हैं जब बकरी के बच्चों का वजन तेजी से बढ़ता है.  

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बकरी की मृत्यु दर को कम करने के लिए यह तरीके अपनाएं 

CIRG के साइंट‍िस्ट डॉ. एमके सिंह ने बकरी के बच्चों की मृत्यु् दर कम करने के लिए जो तरीके बताए उसमें यह भी शामिल है कि जैसे ही बच्चा पैदा हो उसे फौरन ही मां का दूध पिलाएं. फिर चाहें बकरी ने बच्चा देने के बाद जैर गिराई हो या नहीं. बच्चे का वजन एक किलो होने पर उसे 100 से 125 ग्राम तक दूध पिलाएं. दूध दिनभर में तीन से चार बार में पिलाएं. मौसम से बचाने के उपाय भी अपनाएं. जब बच्चा 18 से 20 दिन का हो जाए तो से पत्तियों की कोपल देना शुरू कर दें. एक महीने का होने पर पिसा हुआ दाना खिलाएं. 

बच्चा तीन महीने का हो जाए तो उसका टीकाकरण शुरू करा दें और इस सब के बीच इस बात का खास ख्याल रखें कि जब बकरी बच्चा देने वाली हो तो उससे डेढ़ महीने पहले से बकरी को भरपूर मात्रा में हरा, सूखा चारा और दाना खाने को दें. इससे होगा यह कि पेट में पल रहे बच्चे तक भी अच्छी खुराक पहुंचेगी और जब बच्चा पैदा होगा तो उसके बाद बकरी दूध भी अच्छा और ज्यादा देगी.  

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