आज भी कुछ लोगों को लगता है कि पशु पालन सिर्फ गांव-देहात में ही किया जा सकता है, क्योंकि अगर शहर में पशुपालन किया तो पशु को चराने कहां ले जाएंगे. खासतौर पर बकरी पाली तो वो हरा चारा चरने के लिए कहां जाएगी. बिना मैदान में जाए तो बकरी फल-फूल ही नहीं सकती है. जबकि ऐसा नहीं है. बकरियों की कुछ खास नस्ल और चारे को लेकर हुई रिसर्च के बाद अब बकरी को खूंटे पर बांधकर भी पाला जा सकता है. इस मामले में अगर केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मथुरा की गाइडलाइन का पालन किया जाए तो घर पर भी बकरी पालन से मुनाफा कमाया जा सकता है.
सीआईआरजी के बरबरी एक्सपर्ट एमके सिंह ने बताया कि बरबरी नस्ल को शहरी बकरी भी कहा जाता है. अगर आपके आसपास चराने के लिए जगह नहीं है तो इसे खूंटे पर बांधकर या छत पर भी पाला जा सकता है. अच्छा चारा खिलाने से इसका वजन 9 महीने का होने पर 25 से 30 किलो, एक साल का होने पर 40 किलो तक हो जाता है. अगर सिर्फ मैदान या जंगल में चराई पर ही रखा जाए तब भी एक साल का बकरा 25 से 30 किलो का हो जाता है.
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सीआईआरजी में बकरी पालन मैनेजमेंट के गुर सिखाने वाले डॉ. एसके दीक्षित ने किसान तक को बताया कि बकरियों में कुछ नस्ल ऐसी हैं जिन्हें फार्म में रखकर भी पाला जा सकता है. जैसे बरबरी, सिरोही और सोजत नस्ल के बकरे और बकरियों को फार्म में पालकर बेहतर रिजल्ट लिए जा सकते हैं. बरबरी नस्ल के बकरे और बकरियों को तो टाउन गोट यानि शहर की बकरी भी कहा जाता है. फार्म में रखकर स्टाल फीड देने से ही तीनों नस्ल की बकरी अच्छा दूध देती हैं और बकरे ज्यादा वजन तक के हो जाते हैं.
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डॉ. एके दीक्षित ने बताया कि अब तो यह परेशानी भी नहीं है कि फार्म में रखकर सूखे, हरे और दानेदार चारे का अलग-अलग इंतजाम करना है. हमारे सीआईआरजी ने चारे की फील्ड में कई ऐसी रिसर्च की है कि जिसके बाद आपको बकरी के लिए तीन तरह के अलग-अलग चारे का इंतजाम करने की जरूरत नहीं है.
संस्थान के साइंटिस्ट ने हरे, सूखे और दाने वाले चारे को मिलाकर पैलेट्स तैयार किए हैं. जरूरत के हिसाब से बकरे और बकरियों के सामने पैलेट्स रख दीजिए, जब पानी का वक्त हो जाए तो पानी पिला दिजिए. इसके अलावा कुछ और न खिलाने की जरूरत है और न ही पिलाने की.
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