देश में खरीफ सीजन की बुवाई अब समाप्त होने की तरफ है. वही मानसूनी बारिश भी कहीं कम तो कहीं ज्यादा है. हिमाचल ,उत्तराखंड जैसे राज्यों में बारिश ने बड़ी तबाही मचाई तो वही झारखंड जैसे राज्य में सूखे जैसे हालात हैं. उत्तर प्रदेश में भी मानसूनी बारिश का प्रभाव भी खरीफ़ सीजन पर कहीं कम तो कहीं बहुत ज्यादा पड़ा है. अमेठी जनपद में जुलाई महीने में खेती-किसानी ने जब जोर पकड़ा तो सावन की बारिश ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया. जिले में बारिश ना होने के कारण 10171 हेक्टेयर भूमि पर खेती नहीं हो सकी है .
अमेठी जनपद में खरीफ सीजन की फसलों में सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पर धान की रोपाई होती है. वर्ष 2022-23 के मुकाबले इस बार 139207 हेक्टेयर भूमि पर खरीफ की फसल की बुवाई का लक्ष्य रखा गया था. कम बारिश की वजह से 10171 हेक्टेयर क्षेत्रफल की बुवाई नहीं हो सकी है. बरसात के साथ-साथ किसानों को नहर, राजकीय नलकूप ने भी परेशान किया है. यहां तक कि मोटे अनाज की बुवाई भी जिले में प्रभावित हुई है.
अमेठी में पिछले 4 महीने में 47.22% बारिश हुई है. जून महीने के अंतिम सप्ताह में हुई बारिश से किसानों को उम्मीद जगी कि इस बार शायद बदरा जमके बरसे लेकिन जुलाई में किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार 23 जुलाई तक जिले में 121138 हेक्टेयर के सापेक्ष में 112189 हेक्टेयर भूमि पर धान की रोपाई हुई है. बारिश ना होने के चलते जिले में 8949 हेक्टेयर भूमि खाली रह गई है. वहीं अन्य फसलों के लिए 18066 हेक्टेयर भूमि में से केवल 16844 हेक्टेयर भूमि पर बुवाई हो सकी है. धान की रोपाई करने के बाद किसानों को अब बारिश का इंतजार है. किसानों को इस बात की चिंता है कि अगर बारिश नहीं हुई तो उनकी धान की फसल को नलकूप से जिंदा रखना काफी महंगा होगा. किसान रामकृष्ण द्विवेदी ने बताया कि रोपे गए धान में नहर या नलकूप के माध्यम से पानी भरने के बाद धूप के चलते पानी गर्म होने से पौधे पीले हो रहे हैं. अमेठी के जिला कृषि अधिकारी रवि सिंह ने बताया कि किसानों को सिंचाई में परेशानी ना हो इसके लिए नहर में पानी की व्यवस्था के साथ-साथ बिजली आपूर्ति और राजकीय नलकूपों को क्रियाशील रखने के लिए सिंचाई विभाग को पत्र भेजा गया है.
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जिले में कम बारिश के चलते धान की रोपाई ही नहीं बल्कि मक्का, ज्वार ,बाजरा, उर्द, मूंग, अरहर ,तिल ,मूंगफली जैसी फसलों की बुवाई भी प्रभावित हुई है. मोटे अनाज के लिए 107 हेक्टेयर भूमि का लक्ष्य निर्धारित किया गया है लेकिन अब तक केवल 103 हेक्टेयर भूमि पर ही बुआई हो सकी है. वही ज्वार की बुवाई 3924 हेक्टेयर भूमि पर जबकि बाजरे की बुवाई 385 हेक्टेयर भूमि पर हो सकी है.
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