
अमृतसार के गांव वरपाल में एक किसान की बेटी उन लोगों के लिए मिसाल है जो महिलाएं गर्भ में बेटियों को जन्म से पहले ही मार देती हैं. इस किसान की बेटी का नाम है लवदीप. लवदीप आज खेती-किसानी में हरेक काम कर रही हैं जो कोई पुरुष किसान कर सकता है. इसके साथ ही अपने परिवार में लवदीप वैसी हर जिम्मेदारी उठा रही हैं जो कोई बेटा उठाता है. लवदीप का कहना है कि वह बेटी नहीं बल्कि अपने मां-बाप के लिए बेटा है जिन्होंने उन्हें बेटों की तरह पाला है. लवदीप खेतों में ट्रैक्टर वैसे ही चलाती हैं जैसे बाकी लोग चलाते हैं. लवदीप को अपनी खेती-बाड़ी पर गर्व है.
लवदीप का कोई भाई नहीं है, इसलिए शादी हो जाने के बाद भी वह अपने मायके आकर किसानी करके अपने पिता की सहायता करती है. लवदीप ने 'पंजाब तक' से एक बातचीत में बताया कि आजकल बेटे और बेटियों में कोई फर्क नहीं है. उनका कोई भाई नहीं है, इसलिए उन्होंने खेती में अपने पिता की सहायता करने का सोचा. लवदीप शादीशुदा हैं और उनकी दो साल की एक बेटी है. उस बेटी को भी लवदीप खेती के बारे में सिखाना चाहती हैं. किसान लवदीप का कहना है कि यह गलत मान्यता है कि बेटे ही असली वंश होते हैं उनके बिना परिवार का काम नहीं चलेगा. बेटियां भी अपने परिवार को उसी तरह चला सकती हैं जैसे बेटे चलाते हैं.
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लवदीप खुद ही खेतों में ट्रैक्टर चलाकर जुताई करती हैं, फसलों की बुआई करती हैं. इसमें मजदूरों की भी मदद लेती हैं. यहां तक कि घर में कई भैंसों का पालन किया गया है जिन्हें खिलाने का पूरा जिम्मा लवदीप पर है. लवदीप खुद चारा लाती हैं, काटती हैं और फिर भैसों को खिलाती हैं. भैंसों के दूध से उनके परिवार की अच्छी कमाई होती है. लवदीप खुद ही गाय और भैंसों का दूध निकालती हैं. इस काम के लिए उन्होंने किसी लेबर या मजदूर को नहीं रखा है.
लवदीप को यह सारा काम उनके पिता ने बचपन से सिखाया है. लवदीप का कहना है कि उनके पिता ने कभी बेटी नहीं समझा बल्कि बेटे की तरह पाला और हर जिम्मेदारी लेने की ट्रेनिंग दी. पिता ने ही लवदीप को ट्रैक्टर चलाना और गाय-भैंसों का दूध निकालना सिखाया है. खेतों में अपने पिता को काम करते हुए देखकर लवदीप ने सबकुछ सीखा और आज वे पूरी तरह से घर की खेती को संभाल रही हैं. उनकी शादी हो चुकी है, दो साल की एक बेटी भी है, इसके बाद भी वे अपने पिता की खेती में पूरी मदद करती हैं.
लवदीप के पति भी उसके साथ ही रहते हैं. लवदीप को अपने पति का भी पूरा सहयोग मिलता है. लवदीप का कहना है कि बेटियों को कोख में मारने के बजाय उन्हें कुछ करने का मौका देना चाहिए. बेटियों को आजाद करना चाहिए कि वे अपनी मर्जी से पढ़ाई, रोजगार चुन सकें. अगर बेटियों को मौका दिया जाए, तो वे भी बेटों की तरह कामयाब होकर दिखाएंगी. बेटियां खेती में भी वैसा ही रोल निभा सकती हैं, जैसा काम बेटे करते हैं. बस उन पर भरोसा किए जाने की जरूरत है.
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लवदीप की मां कहती हैं कि उन्होंने भी हर काम में अपने पति की मदद की. खेती में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. इसी तरह लवदीप को भी उन्होंने हर काम करने की सीख दी. ट्रैक्टर चलाने से लेकर मोटरसाइकिल चलाने, खेतों में बुआई से लेकर कटाई तक और फसलों में खाद छिड़काव के काम तक, लवदीप को उसके माता-पिता से हर तरह की ट्रेनिंग मिली. अब लवदीप सारा काम खुद देखती हैं और माता-पिता को आराम करने का मौका देती हैं. लवदीप आज अपने माता-पिता के लिए एक बेटा बनकर खड़ी हैं.(रिपोर्ट-अमित शर्मा)
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