
बढ़ते तापमान और हीट वेब की आशंका से देश के कई हिस्सों में गेहूं की खेती (Wheat Farming) पर खतरा मंडरा रहा है. जबकि कुछ हिस्सों में किसान इसका उत्पादन कम होने के खतरे से बाहर आ चुके हैं. किसान तक संवाददाता ने गेहूं की खेती के लिए मशहूर मध्य प्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्र का दौरा किया. मालवा बेल्ट में आने वाले इंदौर में गेहूं की फसल लगभग तैयार है, जबकि धार जिले में इसकी कटाई भी शुरू हो गई है. जमीन पर गेहूं की सुनहरी चादर फैली हुई है. मालवा की माटी में गेहूं की लहलहाती फसल अधिकांश जगहों पर पकने को तैयार है. जिसे देखकर इस क्षेत्र में गेहूं की अच्छी पैदावार की उम्मीद है.
मालवा का बेल्ट शरबती गेहूं (Sharbati Wheat) के लिए जाना जाता है, जो सामान्य गेहूं के मुकाबले ज्यादा दाम पर बिकता है. पौष्टिक व गुणवत्तापूर्ण होने से मालवा का गेहूं और आटा देश के महानगरों में सप्लाई होने के साथ-साथ अब एक्सपोर्ट भी होने लगा है. शरबती गेहूं प्रीमियम वैरायटी है. इस वक्त सामान्य गेहूं का औसत दाम भी 3300 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक हो चुका है. ऐसे में शरबती गेहूं इस क्षेत्र के किसानों को इस साल अच्छी कमाई करवाएगा. अच्छे दाम और चमक की वजह से इसे गोल्डन ग्रेन भी कहा जाता है. पिछले साल भीषण गर्मी को देखते हुए ज्यादातर किसानों ने अगेती और हीट टोलरेंट यानी गर्मी सहनशील किस्मों की बुवाई की है.
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हमने मालवा क्षेत्र के इंदौर, उज्जैन, धार और निमाड अंचल के खंडवा और खरगोन जिलों का दौरा करके खासतौर पर गेहूं की फसल का जायजा लिया. यहां फसल अच्छी है, जिससे बंपर पैदावार की उम्मीद है. ज्यादातर किसानों ने अगेती बुवाई की है, उन्होंने अक्टूबर और नवंबर मध्य तक बुवाई पूरी कर ली थी. जिसकी वजह से यहां के गेहूं पर बढ़ते तापमान और हीटवेब का कोई असर नहीं है. हालांकि, अभी हीटवेब नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में सुबह-शाम का मौसम ठंडा है. इन दोनों क्षेत्रों की मिट्टी गहरी काली है. जो गेहूं और चने की खेती के लिए उपयोगी मानी जाती है. इसलिए इसमें गेहूं की फसल सबसे ज्यादा है और उसकी कंडीशन बहुत अच्छी है.
मालवा बेल्ट में शरबती गेहूं उगाने के पीछे एक अहम कारण भी है. सूबे में ज्यादातर काली और जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है. यहां ज्यादातर इलाकों में ज्यादातर बारिश के पानी से सिंचाई होती है, जिससे मिट्टी में पोटाश और ह्यूमिडिटी भी बढ़ जाती है. इसका सीधा फायदा गेहूं की फसल को मिलता है. देश के ह्रदय प्रदेश एमपी में खेती की कुछ ऐसी खासियतें हैं जो यहां के गेहूं को दूसरे राज्यों से अलग बनाती हैं. मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा अंचल मालवा-निमाड़ ही है, जिसमें हमने गेहूं की खेती का जायजा लिया.
जहां मालवा का केंद्र इंदौर एमपी की आर्थिक राजधानी है तो निमाड़ का केंद्र खंडवा और खरगोन को माना जाता है. जिनमें इंदौर, धार, खरगोन, खंडवा और उज्जैन खेती को लेकर काफी संपन्न माने जाते हैं. सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाएं और नर्मदा के आसपास का क्षेत्र यहां की भौगोलिक पहचान है. इसके एक तरफ विन्ध्य पर्वत और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा हैं, जबकि मध्य में नर्मदा नदी बहती है.
फिलहाल, इस बार गेहूं के दाम रिकार्ड स्तर पर चल रहे हैं. यदि फसल आने तक दाम इसी तरह रहे तो इस क्षेत्र के किसानों की बल्ले बल्ले हो जाएगी. मध्य प्रदेश में 2 फरवरी 2023 तक 89.71 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हुई है. जबकि, पिछले साल 93.86 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई थी. यानी इस साल 4.15 लाख हेक्टेयर में खेती कम हुई है.
हैदराबाद स्थित सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर (CRIDA) के वैज्ञानिकों की एक टीम के मुताबिक, 'मार्च और अप्रैल-2022 में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में औसत से 5 डिग्री सेल्सियस तक अधिक वृद्धि पाई गई थी, जो कि देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य स्तर से काफी ऊपर थी. 'उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में अप्रैल माह पिछले 122 वर्षों में सबसे गर्म रहा. इसका औसत अधिकतम तापमान 37.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था.' इससे गेहूं का उत्पादन पर बुरा असर पड़ा था.
कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में मार्च और अप्रैल के दौरान भीषण लू के कारण गेहूं की उत्पादकता (Wheat Productivity) में प्रति हेक्टेयर 14 किलोग्राम की कमी आई थी. वर्ष 2021-22 में गेहूं की उत्पादकता में प्रति हेक्टेयर 3521 किलोग्राम प्रति थी जो 2021-22 में घटकर प्रति हेक्टेयर 3507 किलोग्राम पर आ गई थी.
केंद्र सरकार ने दावा किया है कि गेहूं का उत्पादन इस साल अब तक के सर्वोच्च स्तर 1121.82 लाख टन पर रहने का अनुमान है. जो पिछले वर्ष के उत्पादन की तुलना में 44.40 लाख टन अधिक है. हालांकि, यह पहला अग्रिम अनुमान है. पिछले साल भी शुरुआत में अच्छी पैदावार का अनुमान जारी किया गया था, लेकिन हीट वेब की वजह से बाद में इसे कम करना पड़ा. क्योंकि कई क्षेत्रों में गेहूं के दाने सिकुड़ गए. रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा इस फैक्टर की वजह से भी गेहूं की महंगाई बढ़ी.
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