
एक कहावत है कि हिम्मत-ए मर्दा मदद ए खुदा. यानी जो इंसान हिम्मत रखते हैं और कोशिश करना नहीं छोड़ते उनकी खुदा भी मदद करता है. बाड़मेर जिले के एक युवा किसान पर यह कहावत सटीक बैठती है. उम्र के तीस साल पार करने के बाद भी जब इन्हें कहीं सफलता नहीं मिली तो इन्होंने अपनी पुश्तैनी बंजर जमीन पर खेती करने की योजना बनाई. आखिरकार इसमें सफल हो गए. अब बाड़मेर जैसी प्राकृतिक चुनौती वाली जगह पर खेती में नवाचारों के लिए किसान विक्रम सिंह को सराहा जा रहा है. कई मंत्री, नेता, अफसरों ने इनकी कोशिशों की तारीफ के लिए प्रशस्ति पत्र दिए हैं. हाल ही में 15 अगस्त को भी जिला प्रशासन ने इन्हें सम्मानित किया.
बाड़मेर जिले के तारातरा गांव के विक्रम सिंह ने सबसे पहले इस जमीन पर आलू उगाकर कमाल किया. यह आलू उन्होंने फ्रेंच फ्राइज की दुनिया में सबसे बड़े नाम मैक्केन के लिए उगाए थे. इसके बाद तरबूज, जीरा और जौ की खेती भी की. सभी में विक्रम सफल हुए हैं.
विक्रम ने पिछले साल रबी सीजन में 65 बीघे में मैक्केन से करार कर आलू बोए थे. पहली ही फसल करीब 40 लाख रुपये की हुई. इसके बाद तरबूज, जौ और जीरा बोया. सभी में बंपर फसल हुई. विक्रम की सफलता की चर्चा स्थानीय मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मीडिया में हुई. इसके बाद बधाइयों का सिलसिला शुरू हुआ.
इसमें कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़, राजस्थान सरकार में राज्य मंत्री भंवर सिंह भाटी, सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह जसोल, सिरोही जिला कलक्टर सहित कई आईएएस, आईआरएस, आईएएफएस ने विक्रम को प्रशस्ति पत्र भेजे. हाल ही में 15 अगस्त के दिन उन्हें जिला स्तर पर सम्मानित भी किया गया था.
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विक्रम कहते हैं कि जिस उम्र में लोग अपना करियर सैटल कर लेते हैं, मैं सब जगह असफल हो रहा था. 2005 में ग्रेजुएशन, लॉ डिग्री, पत्रकारिता पढ़ने के बाद कई कंपनियों में काम किया. राजस्थान के एक बड़े अखबार में भी रिपोर्टिंग की, लेकिन ना तो मन में संतुष्टि थी और ना ही ज्यादा सफलता मिली.
बाड़मेर जिले के तारातरा गांव के किसान विक्रम सिंह कोविड के दौरान गांव लौटे तो खेती में कुछ नया करने की सोची. उन्होंने पिछले साल खेती शुरू की और अब वह सफल प्रोगरेसिव किसान हैं. इन्होंने अपनी बेकार पड़े खेतों में एक मल्टीनेशनल कंपनी से करार कर करीब 40 लाख रुपये की आलू की पैदावार ली है.
विक्रम कहते हैं कि मैंने इससे पहले कभी खेती नहीं की थी. मैं इसकी तकनीक के बारे में भी ज्यादा नहीं जानता था, लेकिन जयपुर में मेरा एक दोस्त जेट्टा फार्म से जुड़ा था. यह मल्टीनेशनल कंपनी मैक्केन के साथ मिलकर भारत में काम करती है. दोस्त की सलाह पर मैंने मैक्केन के साथ आलू उगाने का करार किया. इसके लिए कंपनी ने ही बीज और तकनीक उपलब्ध कराई.
नवंबर के पहले हफ्ते में बुवाई की और अंतिम कटाई मार्च के इसी हफ्ते में हुई है.
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करीब 350 टन आलू 65 बीघा में पैदा हुआ है. जो पहली कोशिश में काफी अच्छी फसल है. इस आलू की कीमत कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार पहले से ही तय थी. इस तरह करीब 40 लाख रुपये की पैदावार मैंने ली है. हालांकि खेतों को तैयार करने में काफी खर्चा आया है. ट्रैक्टर, बोरिंग, कृषि उपकरण और खेती में काम आने वाले कई तरह के औजार खरीदने पड़ें हैं. इसीलिए लाभ बहुत अधिक नहीं है, लेकिन अगले साल फायदा ज्यादा होगा.
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