
Mushroom Farming: अब वो बातें पुरानी हो चुकी हैं जब महिलाओं की जिंदगी घर की चारदीवारी के बीच सिमट कर रह जाया करती थी. अब 21वीं सदी की महिलाएं सभी क्षेत्रों में एक नई मुकाम हासिल कर रही हैं. अपनी उज्ज्वल भविष्य की पटकथा लिख रही हैं. ऐसी ही एक कहानी बिहार के वैशाली जिले की रहने वाली महिला की है,जो मशरूम की खेती से अपनी एक अलग पहचान बनाई है. आज लोग उन्हें शरूम मैडम के नाम से जानते हैं. इनका नाम मीना कुशवाहा है जो हाजीपुर शहर में रहती हैं. मीना कुशवाहा पिछले 8 साल से ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती कर रही हैं. एक ऑयस्टर मशरूम के बैग से 400 रुपये के आसपास की कमाई कर रही हैं. मीना कुशवाहा कहती हैं कि जब से मशरूम की खेती से जुड़ी हैं, तब से उन्हें सामाजिक स्तर पर एक अलग पहचान मिल रही है, जो घर की चारदीवारी में रहकर संभव नहीं था.
मीना कुशवाहा मशरूम की खेती से अपने परिवार के साथ कई अन्य महिलाओं के जीवन में खुशहाली लाने का काम कर रही हैं. और ये मशरूम की खेती के साथ इससे जुड़े कई उत्पाद भी बनाती हैं. वे बाजार और सरकारी मेले में स्टॉल लगाकर बेचने का काम भी करती हैं.
बिहार की राजधानी पटना से करीब 20 किलोमीटर दूर वैशाली जिले के हाजीपुर की रहने वाली मीना कुशवाहा के जीवन में 2013 के बाद एक नया बदलाव आया. घर की चौखट पार कर अपनी एक अलग पहचान बनाने का दौर शुरू हुआ. मीना कुशवाहा कहती हैं कि 2013 के बाद उन्होंने एक समूह बनाया. उसके बाद 2016 में कृषि विज्ञान केंद्र हरिहरपुर वैशाली में मशरूम की ट्रेनिंग ली. उसके बाद एक छह फीट लंबा और आठ फीट चौड़े ईट के कमरे में मशरूम की खेती शुरू की. इसी के साथ जीवन की गाड़ी हर रोज रफ्तार पकड़ने लगी.
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मशरूम के फायदे बताने के लिए घर-घर जाकर ऑयस्टर मशरूम भी दिया. उसके बाद मांग बढ़ी तो मशरूम की खेती का विस्तार किया. उनके साथ और किसान भी जुड़ने लगे. मीना कुशवाहा कहती हैं, पहली बार जब मशरूम को गांव के लोगों ने देखा तो उन्होंने इसे सांप का छाता, या गोबर का छाता जाना. लेकिन जब इसका स्वाद लिया, तब उन्हें इसकी उपयोगिता समझ में आई. वहीं लोग आज मीना की जगह मशरूम मैडम, वैज्ञानिक दीदी के नाम से पुकारते हैं. 2013 से पहले वाली मीना कुशवाहा की जगह यह नाम अच्छा लगता है.
मशरूम मैडम मीना कुशवाहा कहती हैं कि उन्होंने केवल मशरूम की खेती ही नहीं की है बल्कि वे बाजार में खुद जाकर बेचती भी हैं. ये सबसे पहले झोला में लेकर घर-घर जाकर मशरूम बेचा करती थीं. वहीं आज ये सरकार के द्वारा लगाए जाने वाली कृषि मेला सहित अन्य स्थानों पर लगने वाले मेले में अपना उत्पाद बेच रही हैं.
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मीना कुशवाहा कहती हैं, एक हजार बैग में ऑयस्टर मशरूम लगाई गई है. और एक ऑयस्टर मशरूम के बैग में फल आने तक करीब 100 रुपये का खर्च आता है. एक बैग में दो किलो तक मशरूम का उत्पादन हो जाता है. वहीं 200 रुपये के आसपास प्रति किलो मशरूम बिक जाता है. मोटे तौर पर एक हजार बैग में खर्च करीब एक लाख रुपये तक आ जाता है. शुद्ध कमाई ढाई से तीन लाख रुपये तक हो रही है. इसके साथ ही यह राज्य के विभिन्न जिलों में जाकर लोगों को ट्रेनिंग भी देती हैं.
मशरूम मैडम के अनुसार इसकी खेती बिना खेत के होती है. महिला घर में रहकर भी खेती आसानी से कर सकती है. इसके लिए ज्यादा इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं पड़ती है. वे आगे कहती हैं कि ताजा मशरूम बेचने के अलावा इससे जुड़े कई उत्पाद भी तैयार करती हैं जिनमें से मशरूम का अचार, मशरूम बूस्टर एनर्जी पाउडर, बिस्कुट, सूखा मशरूम भी तैयार करती हैं.
मीना कुशवाहा कहती हैं कि सूखा मशरूम से आचार तो बनता ही है. इसके साथ ही अगर कोई इसका सब्जी भी बनाना चाहे, वह भी आसानी से बना सकता है. इसके लिए उन्हें कुकर में पानी के साथ सूखा मशरूम डालकर 6 सिटी बजने देना चाहिए. उसके बाद मशरूम से पानी निचोड़कर सब्जी बना सकते हैं.
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