जैविक खेती को बढ़ावा दे रहीं मध्य प्रदेश की ये 5 महिलाएं, फसल टॉनिक और कीटनाशक बनाकर बढ़ाई कमाई

जैविक खेती को बढ़ावा दे रहीं मध्य प्रदेश की ये 5 महिलाएं, फसल टॉनिक और कीटनाशक बनाकर बढ़ाई कमाई

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए मध्य प्रदेश की पांच महिलाओं ने एक संस्था बनाई है. यहां वो महिलाएं जैविक खेती में उपयोग होने वाले टॉनिक और कीटनाशक बना रही हैं ताकि छोटे और मझौले किसान महंगी खाद की जगह इन सामानों का उपयोग करें.

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जैविक खेती को बढ़ावा दे रहीं ये 5 महिलाएं, फसल टॉनिक और कीटनाशक बनाकर बढ़ाई कमाईजैविक खेती को बढ़ावा

देश में महिलाएं अब चूल्हा-चौका छोड़ अन्य कामों में भी तेजी से आगे निकल रही हैं. अब महिलाएं खेतों में ज्यादा समय बिता रही हैं और पूरी ताकत से खेती-किसानी में किसानों का हाथ बंटा रही हैं. ऐसी ही कुछ महिलाएं हैं जो अब जैविक खेती को बढ़ावा देने का बीड़ा उठाया है. मध्य प्रदेश के मनावर जनपद की बयडीपुरा गांव कि पांच महिलाओं ने अपने क्षेत्र में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक अहम कदम उठाया है. ये महिलाएं खेती इस्तेमाल होते रासायनिक खादों को कम करने और खेती में कमाई को बढ़ाने के लिए जैविक तरीके से टॉनिक और कीटनाशक बना रही हैं.

किसानों को कर रहीं प्रेरित 

ये पांच महिलाएं सोनबाई किराडे, सुमन कनासे, बबीता किराडे, संजू कनासे, प्रेम किराडे हैं. इन महिलाओं ने सखी निमाड़ जैविक संसाधन केंद्र डीएससी के माध्यम से छोटी सी जगह पर जैविक खेती के लिए उपयोग में आने वाले टॉनिक और कीटनाशक बना रही हैं. साथ ही इससे छोटे और मझोले किसानों को इसका उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रही हैं. इसके अलावा इन महिलाओं ने पिछले एक साल में ही 40 से अधिक किसानों को जैविक खेती से जोड़ा है.

जैविक उत्पाद बना रहीं महिलाएं

इन महिलाओं ने छोटे से टीन शेड में हरी नेट डालकर अपना संसाधन केंद्र शुरू किया है. वहां पर सात प्रकार के जैविक उत्पाद बनाए जा रहे हैं. ये पांचों महिलाएं पूरी लगन के साथ काम कर रही हैं. वहां पर दो वर्मी कंपोस्ट के बेड, छह काऊ पिट बनाए गए हैं. बता दें कि काऊ पिट एक नई जैविक तकनीक है, जिसमें गाय के गोबर का उपयोग किया जाता है, जिसमें हिमालय से लाए कुछ प्रोडक्ट इसमें मिलाया जाता है.

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सात तरह के प्रोडक्ट तैयार

महिलाएं छोटे से संसाधन केंद्र में टॉनिक से लेकर कीटनाशक तक करीब सात उत्पाद बना रही हैं, जिसमें जीवामृत, पांच पत्ती, निमास्त्र, सोया टॉनिक, चार चटनी, वर्मी वास और कंडा पानी शामिल हैं. वहीं, इस समूह में जुड़ी सुमन बाई का कहना है कि उनके द्वारा प्रतिवर्ष खेती पर 60 हजार से 80 हजार तक का फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड पर खर्च किया जाता था. लेकिन इस बार उन्होंने जैविक खेती को अपनाया. फिर जैविक तरीके से चना और गेहूं की खेती को मात्र 2 हजार के खर्चे में ही पूरा कर लिया.

उनका कहना है कि उन्होंने जो चार चटनी तैयार की है वह इल्लियों पर बहुत तेजी से असर करती है. बता दें कि चने की खेती में इल्ली का अटैक अधिक होता है. ऐसे में इस चार चटनी से तुरंत ही इल्ली का प्रकोप खत्म हो जाता है और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है.

महंगे खाद से बचेंगे किसान

इस संबंध में डीएससी के अनिल श्रीवास जगदीश कोटे का कहना है कि जैविक खेती को बढ़ाने के लिए महिला समूह को प्रेरित किया जा रहा है. इसमें जो महिलाएं सक्रिय भूमिका निभा रही हैं, उनका समूह बनाकर इस प्रकार के उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, ताकि क्षेत्र के छोटे किसान महंगी फर्टिलाइजर से बचकर जैविक खेती करें. इससे उनके जीवन पर भी कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा. ऐसे में आने वाले समय में अन्य गांव में भी इस प्रकार के समूह तैयार किए जाएंगे. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में जहां से सब्जी का उत्पादन अधिक होता है वहां पर जैविक सब्जियां तैयार करने के लिए प्रेरित किया जाएगा.

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