दुनिया भर में साल 2023 को International Year of Millets के रूप में मनाया जा रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मिलेट्स यानी मोटे अनाज से जो तरह-तरह के प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं उन्हें बनाने वाले लोग कौन हैं? इनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है? इस रिपोर्ट में पढ़ें मिलेट्स के प्रोडक्ट बनाने वाले लोगों की स्थिति. मोटे अनाज के कई प्रोडक्ट बनाकर मार्केट तक लाने वाले जोधपुर जिले के नौसर के एक स्वयं सहायता समूह से किसान तक ने बात की. महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह के नाम से चलने वाला यह समूह फिलहाल बाजरे के लड्डू, कुरकुरे, बिस्किट और नमकीन बना रहा है.
नौसर की रहने वाली 30 साल की गुड्डी बीते एक साल से बाजरे के प्रोडक्ट बना रही हैं. किसान तक से बात करते हुए वह कहती हैं, “हम सब पेशे से किसान हैं. खेती में बिजाई से लेकर कटाई तक की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है, लेकिन पिछले एक साल से हम खेती के अलावा भी बहुत कुछ कर रहे हैं. यह काम है बाजरे से खाने-पीने की चीजें बनाना. हम बाजरे से नमकीन, तीन तरह के बिस्किट, लड्डू और कुरकुरे बना रहे हैं.”
स्वयं सहायता समूह के बारे में गुड्डी बताते हुए कहती हैं, “हमारे एक ग्रुप में 10 महिलाएं होती हैं. महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की तरह ही नौ और ग्रुप भी हैं. इस तरह बाजरे के प्रोडक्ट बनाने में कुल 100 महिलाएं शामिल हैं. इन सभी ग्रुप के द्वारा बनाए बाजरे के प्रोडक्ट से हुए लाभ को सभी 100 महिलाओं में बराबर बांटना मेरा काम है.”
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बाजरे के बने प्रोडक्ट को बनाने के पीछे महिलाएं हैं और इसे बेचना का काम पुरुष कर रहे हैं, इस तरह से टीम वर्क में चल रहा ये काम काफी अच्छे नतीजे दे रहा है. इसी ग्रुप में शामिल एक शख्स और प्रगतिशील किसान रावलचंद पंचारिया से किसान तक ने बात की. वे बताते हैं, “100 महिलाएं बाजरे से कई प्रोडक्ट बना रही हैं. इसे बाजार तक 10 पुरुषों का एक समूह ला रहा है. हम लोग अलग-अलग ग्रुप में सरकारी और निजी एक्जीबिशन के जरिए इन प्रोडक्ट्स को बाजार तक ला रहे हैं.”
पंचारिया बताते हैं कि इस काम के लिए अलग-अलग गांवों से स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं को जोड़ा गया. ये सभी महिलाएं खेती-किसानी का काम करने वाली महिलाएं हैं. ज्यादातर की आर्थिक स्थिति खेती पर ही निर्भर करती है. रावलचंद कहते हैं कि बाजरे से पारंपरिक चीजें बनाना तो जोधपुर क्षेत्र में आम बात है, लेकिन बाजरे से बिस्किट, कुरकुरे जैसी चीजें महिलाएं नहीं बना सकती थीं. इसके लिए जोधपुर स्थित केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काज़री) ने एक पहल की. 2023 मिलेट्स ईयर के लिए एक साल पहले से ही काज़री ऐसे लोगों को ट्रेनिंग दे रहा था, जो बाजरे और अन्य मोटे अनाजों से कुछ अलग चीजें बना सके. काज़री में ट्रेनिंग के बाद महिलाएं बाजरे से कई चीजें बनाने लगीं हैं.
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महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की प्रमुख गुड्डी देवी बताती हैं कि उनके समूह ने बीते छह महीने में बाजरे से बने प्रोडक्ट बेचकर छह लाख रुपए की बिक्री की है. वहीं, पंचारिया कहते हैं कि यह बिक्री इन छह महीनों में सिर्फ मेलों, एग्जीबिशन के जरिए की गई है. क्योंकि मिलेट्स प्रोडक्ट के अभी बाजार उतना खुला हुआ नहीं है. अगर खुले बाजार में इन प्रोडक्ट की मार्केटिंग की जाए तो बाजरे के बने हमारे कई उत्पाद कम समय में ही ब्रांड बन जाएंगे.
2023 अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स ईयर घोषित होने से मोटे अनाजों के प्रति लोगों का नजरिया भी बदल रहा है. मोटे अनाज से अब कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. जोधपुर के गांव पड़ासना की रहने वाली पार्वती देवी एक जैविक किसान हैं.
फिलहाल काज़री से ट्रेनिंग लेकर स्वयं सहायता समूह की सदस्य भी हैं. बीते छह महीने में इस समूह ने बाजरे के उत्पाद बेचकर छह लाख रुपए कमाए हैं. पार्वती जैसी कई अन्य महिला किसान हैं जिनकी मिलेट्स की वजह से आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है.
बाजरे के अलावा ये स्वयं सहायता समूह मैलो शिप (काचरे का ज्यूस), नींबू शर्बत, नींबू का अचार, आंवले का मुरव्वा, अचार, कैंडी और आंवला सुपारी भी बना रही हैं. इन 10 स्वयं सहायता समूहों ने सभी उत्पादों से पिछले छह माह में 10 लाख रुपए की बिक्री की है.इसमें से लाभ का हिस्सा सभी महिलाओं को बराबर मिलता है. इसीलिए अब इन महिलाओं आर्थिक रुप से सक्षम और आत्मनिर्भर हो रही हैं.
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