'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के गुमला जिले के रहने वाले ओम प्रकाश की प्रेरक कहानी सभी के साथ साझा की. अब सवाल यह उठता है कि देश के प्रधानमंत्री का नक्सलियों से घिरे गुमला गांव पर कैसे ध्यान गया. आपको बता दें कि अभी कुछ दिन पहले ही किसान तक की टीम जब खबरों की तलाश में निकली तो वह झारखंड के गुमला जिले में पहुंची. वहां किसान तक की टीम की मुलाकात ओम प्रकाश साहू से हुई, जिन्होंने नक्सल इलाके में मछली पालन कर न सिर्फ अपना नाम रोशन किया है, बल्कि दूसरे मछुआरों को भी इस काम के लिए प्रेरित किया है. यह इलाका कभी माओवादी हिंसा के लिए बदनाम था. गुमला का बसिया प्रखंड आतंक और भय का गढ़ बन गया था. गांव वीरान हो गए थे, जमीनें खाली पड़ी थीं और युवा पलायन कर रहे थे. लेकिन आज किसान तक और अन्य मीडिया संस्थानों की मदद से आखिरकार इस गांव पर पीएम मोदी की नजर पड़ी और इसका जिक्र मन की बात में किया गया. इसी कड़ी में आइए जानते हैं कौन हैं ओम प्रकाश साहू और उनके सफलता की कहानी.
इस बदलाव की शुरुआत की ओमप्रकाश साहू नाम के एक युवक ने. कभी नक्सल समर्थक रहे ओमप्रकाश ने हिंसा का रास्ता छोड़ मछली पालन शुरू किया. उन्होंने न सिर्फ खुद यह काम शुरू किया, बल्कि अपने जैसे कई युवाओं को भी इसके लिए प्रेरित किया. धीरे-धीरे, जो हाथ पहले बंदूक थामते थे, अब मछली पकड़ने वाले जाल थाम चुके हैं.
ओमप्रकाश की राह आसान नहीं थी. उन्हें विरोध झेलना पड़ा, धमकियाँ मिलीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. फिर आई प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY). इस योजना के तहत ओमप्रकाश को ट्रेनिंग मिली, तालाब बनाने में मदद मिली और सरकारी सहयोग से उन्होंने अपने काम को और आगे बढ़ाया.
आज बासिया ब्लॉक के 150 से ज्यादा परिवार मछली पालन कर रहे हैं. इनमें से कई वो लोग हैं, जो कभी नक्सली संगठनों से जुड़े थे. अब ये लोग गाँव में ही सम्मान के साथ जीवन जी रहे हैं और दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं. गुमला की यह कहानी बताती है कि अगर मन में विश्वास हो और दिशा सही हो, तो अंधेरे में भी उजाला संभव है.
लखन सिंह भी एक समय नक्सल विचारधारा से जुड़े रहे. लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि वे गलत रास्ते पर हैं, तो उन्होंने मछली पालन की राह चुनी. आज उनके पास पाँच तालाब हैं. एक तालाब उन्होंने अपने बच्चों के नाम किया है, जिससे कमाई बच्चों की पढ़ाई में लगाई जाती है. लखन ने रांची से मछली पालन की ट्रेनिंग ली और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया.
ईश्वर गोप को सरकार से सिर्फ 1100 रुपये में पाँच एकड़ का तालाब मिला. आज वे इसी तालाब में मछली पालन कर रहे हैं. उन्होंने एक सहकारी संस्था भी बनाई है, जिसमें 115 लोग जुड़े हुए हैं और 22 तालाबों का संचालन किया जा रहा है. यह संस्था मछली पालन को एक संगठित रोजगार में बदल रही है.
कभी जो नौजवान हिंसा और नक्सलवाद के रास्ते पर चल पड़े थे, आज वही लोग मछली पालन कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं. यह न केवल रोजगार का साधन बना है, बल्कि शांति और विकास की भी मिसाल है. गुमला अब एक नई पहचान के साथ आगे बढ़ रहा है.
गुमला की कहानी बताती है कि अगर सही दिशा, सरकारी मदद और आत्मविश्वास साथ हो, तो कोई भी बदलाव नामुमकिन नहीं. मछली पालन ने न केवल लोगों की आजीविका सुधारी, बल्कि उन्हें जीवन का नया मकसद भी दिया. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘मन की बात’ में इसका जिक्र करना, इस बदलाव की मान्यता का प्रतीक है.
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