Reverse Migration: लॉकडाउन में मजदूरी छोड़ किसान बने विक्रम, अब खेती से बदले हालात

Reverse Migration: लॉकडाउन में मजदूरी छोड़ किसान बने विक्रम, अब खेती से बदले हालात

कोरोना लॉकडाउन में व‍िक्रम महतो अपने घर आए. इस दौरान वह अपने एक रिश्तेदार के यहां पर गए. जहां उन्होंने ड्रिप इरिगेशन तकनीके से हो रही सिंचाई को देखा और फिर खुद भी खेती करने का फैसला किया. यहीं से उनकी ज‍िंदगी भी बदल गई.

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Reverse Migration : लॉकडाउन में मजदूरी छोड़ किसान बने विक्रम, अब खेती से बदले हालात लाॅकडाउन में शहर से लौट कर खेती करने वाले किसान विक्रम महतो फोटोः किसान तक

देश में क‍िसानों की आय बढ़ाने के सरकारी प्रयास जारी हैं. इस बीच देश के क‍ई क‍िसान खेती में हो रहे नुकसान से परेशान हैं, ज‍िसमें से कई क‍िसानों ने खेती से दूरी बनाई है. मतलब कई क‍िसान गांवों से पलायन कर शहरों में मजदूरी के ल‍िए आते रहे हैं. ये ट्रेंड नया नहीं है. लेक‍िन, झारखंड के एक क‍िसान ने इस ट्रेंड की धारा मोड़ी है. ज‍िन्होंने र‍िवर्स पलायन कर खेती से अपना नाता जोड़ा. ये कहानी झारखंड के क‍िसान व‍िक्रम महतो की है. ज‍िन्होंने कोरोना लॉकडाउन में शहर की मजदूरी से संबंध तोड़ खेती से नाता जोड़ा. इसके बाद खेती ने उनके हालात बदल द‍िए. आइए जानते हैं क‍ि पूरा मामला क्या है. 

नई सोच से खेती को बनाया फायदेमंद     

कृषि आज के दौर में युवाओं की पहली पसंद बनती जा रही है. रोजगार के तौर पर कई युवा इसे अपना रहे हैं और इसके जरिए सफलता हासिल कर रहे हैं. युवाओं के खेती में आने से ये फायदा हुआ है कि वे खेती में नई सोच और नई तकनीक को अपना रहे हैं. इससे खेती में भी बदलाव आया है. ऐसा ही कुछ बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के रहने के वाले युवा किसान विक्रम महतो ने भी क‍िया, ज‍िन्होंने अपनी सूझबूझ से खेती को फायदे का सौदा बनाया और आज अच्छी कमाई भी कर रहे हैं. 

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7 साल बाद गांव लौटे व‍िक्रम 

विक्रम बताते हैं कि एक वक्त ऐसा भी था, जब वो अपने गांव घर में रहने के लिए तरस रहे थे. क्योंकि साल 2013 से ही वो काम के सिलसिले में गांव घर से बाहर रहते थे. दूसरे राज्य में जाकर मजदूरी करते थे. इसके अलावा उनके पास कोई काम नहीं था. लेक‍िन, लॉकडाउन ने उनकी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव ला दिया और आज वह एक बेहतर स्थान पर हैं. विक्रम बताते हैं कि कोरोना के कारण लगाए लए लॉकडाउन से पहले वह इलेक्ट्रि‍क मिस्त्री का काम करते थे.

लॉकडाउन में किया खेती करने का फैसला

व‍िक्रम बताते हैं क‍ि जब लॉकडाउन के दौरान वो अपने घर आए तो ओरमांझी स्थित अपने एक रिश्तेदार के यहां पर गए, जहां उन्होंने ड्रिप इरिगेशन तकनीक से हो रही सिंचाई को देखा और फिर खुद भी खेती करने का फैसला किया. उन्होंने इसके बाद ड्रिप इरिगेशन से संबंधित पूरी जानकारी हासिल की और फिर खेती में उतर गए. अपनी दो एकड़ पुश्तैनी जमीन में ड्रिप इरिगेशन तकनीक लगवाई. इसके लिए उन्होंने अपने पास रखी जमापूंजी लगा दी साथ ही अपनी मां की मदद से महिला समूह से कम ब्याज दर पर लोन भी लिया. इसके बाद वि‍क्रम ने खेती शुरू की.

8 एकड़ में कर रहे खेती

दो एकड़ से खेती की शुरुआत करने वाले विक्रम आज आठ एकड़ में खेती करते हैं, विक्रम महतो कहते हैं क‍ि अब जाकर उन्हें यह एहसास हुआ है कि बाहर घूमकर काम करते हुए उन्होंने अपने जीवन का कीमती समय बर्बाद कर दिया. लेक‍िन, अब वो कृषि के क्षेत्र में ही आगे कार्य करते रहेंगे. खेती में परेशानी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बाउंड्री सही नहीं होने के कारण कई बार मवेशियों से खेत को नुकसान पहुंचता है. हर साल उन्हें खेत को घेरवाना पड़ता है. इसके साथ ही कहा कि किसानों को सरकार की तरफ से नुकसान का उचित मुआवजा नहीं मिलता है. इसके कारण किसानों को परेशानी होती है. 

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