ग्रामीण परिवेश में बकरी पालन अब बड़ा रोजगार बनता जा रहा है. वहीं, छोटे तौर पर बकरी पालन में महिलाएं तेजी से जुड़ रही हैं. ऐसी ही एक उत्तर प्रदेश की आदिवासी महिला सुलोचना हैं, जिनकी किस्मत बकरी पालन ने बदल दी है. दरअसल, बकरी पालन करने से सुलोचना साल में 10 से 15 बकरी बेचती हैं, जिसमें उन्हें एक बकरी पर तकरीबन 3000 से 3500 रुपये की कमाई होती है. इन्हें बेचकर वे न केवल परिवार का पूरा खर्च निकाल रही हैं, बल्कि उससे अच्छी खासी बचत भी कर लेती हैं. आइए जानते हैं सुलोचना के बकरी पालन की कहानी.
सुलोचना देवगढ़ जिले के केंदुछपल गांव की एक युवा आदिवासी उद्यमी महिला हैं. वे शुरुआत में स्थानीय नस्ल के दो बकरे और दो बकरियां पाल रही थीं. बकरी पालन में अपना अधिक समय देने के बावजूद भी वे बकरे-बकरियों से पर्याप्त आमदनी नहीं ले पा रहीं थीं. बकरी पालन में मुख्य समस्याएं उत्पादन की अधिक लागत और बकरियों की अधिक मृत्यु थी. इसके बाद एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र, देवगढ़ के संपर्क में आईं. इसमें उन्होंने केंद्र के वैज्ञानिकों के साथ चर्चा करते हुए अपनी समस्या के बारे में बताया. इसके बाद उन्हें वैज्ञानिकों ने उन्नत नस्ल की बकरियों को पालने की सलाह दी.
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कृषि विज्ञान केंद्र और स्थानीय पशु चिकित्सक के तकनीकी गाइडेंस में उन्होंने वैज्ञानिक ढंग से बकरी पालन शुरू किया. इसमें सुलोचना ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) के अंतर्गत बैंक से 2.5 लाख रुपये का लोन लिया और सिरोही और ब्लैक बंगाल जैसी उन्नत नस्ल की बकरियों का पालन शुरू किया.
सुलोचना के लिए इन नस्ल की बकरियों के पालन के रिजल्ट बहुत ही खुश करने वाले रहे. सुलोचना के प्रयास को देखते हुए अन्य किसानों ने भी बकरी पालन शुरू किया और सफलता पाई. इस प्रकार बकरी पालन देवगढ़ जिले की भूमिहीन गरीब महिलाओं के लिए परिवार की बेहतर आमदनी का साधन बन गया है. आपको बता दें कि सिरोही और ब्लैक बंगाल बकरे-बकरी रोगों के प्रति कम संवेदनशील होते हैं और इनका मांस भी स्वादिष्ट होता है. इन बकरियों के वजन छह महीने में 25 किलो के हो जाते हैं.
अब सुलोचना बधिया किया हुआ प्रति बकरा 6,000 रुपये की दर पर और गैर बधिया किया हुआ प्रति बकरा 2,500 रुपये की दर पर बेचती हैं. वे बकरियों को 3,500 रुपये प्रति बकरी की दर पर बेचती हैं. ऐसे उनकी वार्षिक कमाई अब 50,000 रुपये हो गई है. वहीं, बकरियों को पालने की लागत केवल 10,000 रुपये है. वहीं, सुलोचना अब जिले की लोकप्रिय बकरी पालक बन गई हैं. अब वे क्षेत्र के छोटे और परंपरागत बकरीपालक किसानों के साथ संपर्क साध कर उन्हें मजबूत बना रही हैं, ताकि नस्ल में सुधार किया जा सके और बकरे-बकरियों की बिक्री की जा सके. इनकी सफलता से उनके गांव की अन्य भूमिहीन महिलाओं को प्रेरणा मिली है.
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