जुलाई मतलब मॉनसून का महीना. हालांकि मॉनसून का महीना भीषण गर्मी से राहत दिलाने वाला होता है, लेकिन बारिश के साथ मॉनसून तमाम तरह की बीमारियां भी लेकर आता है. खासतौर से इस महीने में पशुओं की बहुत ज्यादा देखभाल करने की जरूरत होती है. और वो भी ऐसे पशुओं की जो जुलाई में बच्चा देने वाले होते हैं. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो बहुत सारे पशुपालक भैंस का प्रजनन कुछ इस तरह से प्लान करते हैं कि वो जुलाई में बच्चा दे. इसलिए बरसात के दौरान भैंस और उसके नवजात को खास तरह की देखभाल चाहिए होती है.
प्रसव के दौरान और बाद में भैंस और उसके नवजात की जितनी अच्छी तरह से देखभाल की जाएगी तो पशुपालक को तभी बच्चा तो हेल्दी मिलेगा ही साथ में भैंस भी तंदुरुस्त रहेगी. इतना ही नहीं भैंस अपने दुग्धकाल में दूध भी ज्यादा और पौष्टिक देगी. इसके साथ ही बच्चा बाहर आने के बाद क्या-क्या काम करने हैं ये तैयारी भी पहले से कर लेनी चाहिए. इसके लिए अपने नजदीकी पशु चिकित्सक की भी मदद ली जा सकती है.
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प्रसव कक्ष में किसी भी तरह की गदंगी नहीं होनी चाहिए.
प्रसव कक्ष की निचली सतह को समतल और साफ रखें.
मुमकिन हो तो प्रसव कक्ष जमीन से थोड़ा ऊंचा हो.
पशु और नवजात को बीमारियों से बचाने के उपाय जरूर अपनाएं.
कक्ष में 10 फीसद फिनायल के घोल या फिर बुझे हुए चूने का इस्तेसमाल करें.
गाय-भैंस अगर खड़ी अवस्था में बच्चा दे रही है तो जमीन पर साफ बिछावन बिछा लें.
बिछावन के लिए सूखी घास या फिर गेंहू का भूसा, धान की पुआल ले सकते हैं.
प्रसव के बाद पांच-छह घंटे के अन्दर पशु को जेर डाल देनी चाहिए.
पशु की सामान्य प्रसव क्रिया में 5 से 6 घंटे लगते हैं.
जेर डालने में कभी-कभी 8 घंटे भी हो जाते हैं.
अगर पशु आठ घंटे तक जेर न डाले तो मतलब जेर रुक रही है.
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जेर रुकने पर गुड़ 750 ग्राम, अजवाइन 60, सोंठ 15 और मेथी 15, सभी ग्राम में को एक लीटर पानी में मिलाकर दें. ये घोल दो बार तक दिया जा सकता है.
जेर ना डालने पर बांस की हरी पत्ती को उबाल कर उसका काढ़ा भी दिया जा सकता है.
अगर घरेलू उपाय काम ना करें तो पशु चिकित्सक की मदद लें.
पशु चिकित्सक की सहायता से हाथ द्वारा जेर को गर्भाशय से बाहर निकाल दें.
जेर को पशु चाटने या खाने न पाये, उसे दूर गड्ढे में दबा देना चाहिए.
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