Success Story: हजार रुपए के 'लालच' में सीखा जूट का काम, अब इससे चला रही हैं घर और दे रही हैं दूसरों को ट्रेनिंग

Success Story: हजार रुपए के 'लालच' में सीखा जूट का काम, अब इससे चला रही हैं घर और दे रही हैं दूसरों को ट्रेनिंग

पटना की रहने वाली गायत्री जूट से अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाकर अपनी जिंदगी को खुशहाल कर रही हैं. इसके अलावा अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण दे रही है. 

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Success Story: हजार रुपए के 'लालच' में सीखा जूट का काम, अब दे रही हैं दूसरों को ट्रेनिंगगायत्री देवी ट्रेनिंग के दौरान मिलने वाली राशि के लिए लिया था जूट से बने उत्पाद का प्रशिक्षण. फोटो -किसान तक

घर के हालात खराब थे, पता चला कि जूट प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. ट्रेनिंग में शामिल होने पर हजार रुपए महीना मिलता था. हजार रुपए मिलेंगे, यह सोचकर बिहार की एक महिला ने ट्रेनिंग जॉइन की. जूट के प्रोडक्ट बनाना सीखा. उस ट्रेनिंग ने अपना यह काम किया कि आज वह महिला गायत्री देवी जूट प्रोडक्ट्स बनाकर घर चला रही हैं. साथ ही, ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे रही हैं, जिससे लोगों का जीवन स्तर सुधरे.

बिहार में जूट की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. काफी लोग इसके रेशे की मदद से कई तरह के प्रोडक्ट बनाकर अपनी जीवन की आर्थिक गाड़ी को सही तरीके से चला रहे हैं. राज्य की राजधानी पटना के पटेल नगर की रहने वाली 45 वर्षीय गायत्री देवी के जीवन में जूट से बने उत्पाद आर्थिक समृद्धि का माध्यम बन रहे हैं. कभी एक हज़ार रुपए के लिए जूट से बनने वाले प्रॉडक्ट की ट्रेनिंग लेने वाली गायत्री आज जूट के उत्पाद से  महीने में तीस हज़ार से अधिक की कमाई कर रही हैं. वे कहती हैं कि वे बचपन से जूट की खेती होते देख रही थीं, लेकिन उन्हें 2007 में इसकी उपयोगिता समझ में आई. गायत्री देवी आज खुद का रोजगार स्थापित कर ही चुकी हैं. इसके साथ ही अन्य ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को जूट से बनने वाले प्रॉडक्ट का गुण सिखाकर आत्मनिर्भर बना रही हैं. 

गायत्री जूट के अलग प्रॉडक्ट बनाती हैं, जिसमें लेडीज पर्स, जूट की ज्वेलरी, टेबल लैंप सहित घर के साज सज्जा से जुड़ी चीजें बनाती हैं. साथ ही, सिलाई का काम भी करती हैं. आज वे अपने हुनर के दम पर अपने परिवार का खर्च चलाने में अपने पति की मदद कर रही हैं. साथ ही बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिला रही है. 

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ट्रेनिंग में मिलते थे पैसे, इसलिए लिया था प्रशिक्षण 

गायत्री देवी अपनी पुरानी बातों को याद करते हुए कहती हैं कि 2007 में उन्होंने जूट से अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने का प्रशिक्षण लिया था. वे उस समय को याद करते हुए भावुक मन से बताती हैं कि इस दौरान घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने की वजह से ट्रेनिंग लेने गई थी. क्योंकि 6 महीने की ट्रेनिंग के दौरान प्रति महीना एक हजार रुपए मिलता था. लेकिन उन्हें मालूम नहीं था कि 16 साल पहले पैसे की लालच में  लिया गया प्रशिक्षण जीवन को ही बदल देगा. आज उनका काम समाज में उन्हें एक अलग पहचान दिला रहा है. इसके साथ ही तेजी से दौड़ रही दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर का चलने की हिम्मत भी दे रहा है. गायत्री ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान पटना के साथ जुड़कर ग्रामीण महिलाओं को जूट से बनने वाले प्रोडक्ट का प्रशिक्षण दे रही हैं. 

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जूट के प्रॉडक्ट को लेकर ग्रामीण महिलाओं में अभी जागरूकता की कमी

राज्य के कई जिलों में जूट की खेती होती हैं. लेकिन गायत्री देवी का कहना है कि अभी भी ग्रामीण महिलाओं में जूट के अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने को लेकर जागरूकता की कमी है. वे कहती हैं कि वह खुद गांव में जाकर महिलाओं को जूट के अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने को लेकर जागरूक करती हैं. वहीं जब ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं जूट से बनने वाले उत्पाद के बारे में जानकारी हासिल करती है. तो वह भी कुछ अलग चीज बनाने को लेकर उत्साहित दिखती हैं. आगे गायत्री कहती हैं कि जूट से बनने वाले प्रोडक्ट की बाजार में काफी मांग हैं. इसमें कमाई लागत का कई गुना है. अगर एक साधारण पर्स बनाने में पचास रुपये लगते हैं तो वह आराम से दो सौ रुपये तक बिक जाता है. केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा कई योजनाओं के जरिये ग्रामीण महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए योजना शुरू की गई है. लेकिन उसकी रफ्तार को और अधिक गति देने की जरूरत है.

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