देश के किसान अब परंपरागत खेती को छोड़ फूलों की खेती कि ओर तेजी से रुख कर रहे हैं. फूलों की खेती से किसानों को मुनाफा भी हो रहा है. ऐसे ही फूलों की खेती करके आर्थिक संकट से निकलने की कहानी है बिहार के सारण जिले के चंचलिया गांव के किसानों की. यहां के आधा दर्जन किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़कर फूलों की खेती कि जिसके बाद उनकी स्थिति में सुधार होने लगा. किसान गेंदे के फूल की खेती करके प्रति कट्ठे जमीन पर 10 से 12 रुपये की कमाई कर रहे हैं. इसके अलावा और अधिक लाभ कमाने के लिए किसान गुलाब और रजनीगंधा की भी खेती कर रहे हैं.
गांव के एक किसान अंबिका भगत ने बताया कि उन्होंने 20 साल पहले प्रयोग के तौर पर गेंदे की खेती शुरू की, उसके बाद उनसे प्रेरित होकर गांव के आधा दर्जन किसान अब फूलों की खेती करने लगे हैं. साथ ही किसान नवीन कुमार ने बताया कि धान, गेहूं के मुकाबले गेंदे के फूल की खेती में ज्यादा आमदनी है. उन्होंने बताया कि बड़े पैमाने पर गेंदे की खेती होने की वजह से बाजार भी उनके घर के दरवाजे तक आने लगा है, जिससे किसानों की फूलों की बिक्री की चिंता दूर हो गई है. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर विभागीय स्तर पर किसानों को उन्नत किस्म के पौधे उपलब्ध कराए जाएं तो उन्हें खेती करने में और भी आसानी होगी.
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गांव का एक अन्य किसान भोला भगत ने बताया कि गेंदे के फूलों के पौधे प्रति हजार छह सौ रुपये में बंगाल से मंगवाते हैं. उन्होंने कहा कि कम संसाधन होने कि वजह से बीज का उत्पादन करना संभव नहीं हो पाता है. जिसकी वजह से अधिक दामों पर पौधे खरीदना पड़ता है. इसके साथ ही एक और किसान वनल भगत ने बताया कि फूलों की खेती में आमदनी तो हैं, लेकिन मेहनत ज्यादा है. इसके अलावा गुड्डू भगत ने बताया कि गेंदे के साथ ही वह पांच कट्ठा जमीन में रजनीगंधा और गुलाब की खेती कर रहे हैं. जिसमें उन्हें एक कट्ठे में लगभग 10 से 15 हजार रुपये कि आमदनी हो रही है. वहीं लागत की बात करें तो तीन हजार रुपये तक है.
किसान अजय भगत और अरविंद भगत ने बताया कि फूलों की खेती देखने तो बहुत पदाधिकारी आए हैं. और किसानों को आश्वासन देकर चले गए. लेकिन आज तक मदद किसी ने नहीं की. इसमें नाबार्ड के उप मुख्य प्रबंधक डीपीएम, डीएओ समेत वर्ल्ड बैंक के कर्मी भी यहां आकर घूम चुके हैं. वहीं नाबार्ड ने पॉली कैब या ग्रीन हाउस बनाकर गेंदे के फूल के बीज उत्पादन करने की सुविधा देने को कहा था. लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.
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