
बिहार में युवाओं की पहली प्राथमिकता सरकारी नौकरी होती है. वे इसके लिए कड़ी मेहनत भी करते हैं. लेकिन आज हम आपको बिहार के एक ऐसे युवा की प्रेरणादायक कहानी बताएंगे, जो इंटरनेशनल स्तर का एथलीट बनना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें एक सफल किसान बना दिया. इस दौरान उन्हें सरकारी नौकरी का ऑफर भी मिला, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा कर खेती को अपनाया. गया जिले के बोधगया प्रखंड स्थित बगदाहा गांव निवासी श्रीनिवास आज आधुनिक खेती के जरिए सालाना करीब 20 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. वे बिहार के पहले किसान हैं, जिन्होंने जलकुंभी से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की तकनीक विकसित की है, जो अपने आप में एक अनूठा काम है.
प्रगतिशील किसान श्रीनिवास बताते हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे खेती करेंगे. बचपन से ही उनका सपना इंटरनेशनल स्तर का एथलीट बनने का था. स्कूल और कॉलेज के दौरान उन्होंने कई नेशनल लेवल की प्रतियोगिताएं जीती थीं. उनकी प्रतिभा को देखते हुए सरकार ने उन्हें पुलिस विभाग में सिपाही की नौकरी का ऑफर दिया. मगर इंटरनेशनल एथलीट बनने के सपने के आगे उन्होंने उसे नहीं करने का निर्णय लिया.
वहीं, 2010 में पिता की मृत्यु के बाद सभी सपनों को विराम देते हुए गांव लौटने का निर्णय लिया. फिर अपनी पुश्तैनी 10 एकड़ जमीन पर खेती करने का फैसला किया. शुरुआती चरण में काफी दिक्कतें आई. लेकिन कृषि वैज्ञानिकों के सलाह के बाद और अपनी मेहनत के बदौलत खेती में कई क्रांतिकारी काम किए, जिसके चलते कृषि के क्षेत्र में राज्यपाल द्वारा सम्मानित भी किए गए.
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श्रीनिवास बताते हैं कि वे राज्य और जिले के पहले किसान हैं, जो जलकुंभी से वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहे हैं. पिछले दस वर्षों में उन्होंने अपने गांव के तीन किलोमीटर क्षेत्र में फैले तालाबों से जलकुंभी को साफ किया है. गौरतलब है कि जलकुंभी एक ऐसा जलीय पौधा है, जो अगर किसी तालाब में फैल जाए तो वहां की मछलियों और अन्य जलीय जीवों की मृत्यु होने लगती है, क्योंकि यह पानी की सतह को पूरी तरह से ढक लेता है, जिससे तालाब में ऑक्सीजन आना बंद हो जाता है. लेकिन जलकुंभी से बनी वर्मी खाद में करीब 19 फीसदी पोटाश और 9 फीसदी फास्फोरस पाया जाता है, जो खेती के लिए अत्यंत उपयोगी होता है.
श्रीनिवास अपनी 10 एकड़ जमीन में नर्सरी, वर्मी कंपोस्ट और पारंपरिक खेती के माध्यम से सालाना लगभग 20 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. वर्मी कंपोस्ट के 50 बेड से सालाना 2 लाख किलो खाद तैयार करते हैं, जिससे 4 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 8 लाख रुपये की शुद्ध कमाई होती है. वहीं, नर्सरी से सालाना करीब 8 लाख रुपये की आमदनी होती है. इसके अलावा पारंपरिक खेती से सालाना लगभग 4 लाख रुपये की कमाई होती है.
श्रीनिवास कहते हैं, "अगर मैंने उस समय सरकारी नौकरी कर ली होती, तो आज न इतनी कमाई होती और न ही समाज में इतना सम्मान मिलता." श्रीनिवास उन युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो रोजगार की तलाश में सरकारी नौकरी की ओर देखते हैं, लेकिन खेती में नए प्रयोगों और तकनीकों को अपनाकर भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं.
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