गंगा बेसिन बनेगा 'बाजरा बेसिन', मोटे अनाजों की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय

गंगा बेसिन बनेगा 'बाजरा बेसिन', मोटे अनाजों की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYM) घोषित किया है. इसी अभियान के तहत गंगा बेसिन को बाजरा बेसिन बनाने पर काम किया जा रहा है ताकि गंगा किनारे के क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हुए मोटे अनाजों की खेती बढ़ाई जाए. देश में मोटे अनाजों की खेती बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किसानों से अपील की है.

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गंगा बेसिन बनेगा 'बाजरा बेसिन', मोटे अनाजों की खेती से बढ़ेगी किसानों की आयमोटे अनाजों की खेती (millets farming) को बढ़ावा दे रही है सरकार

सरकार गंगा बेसिन को बाजरा बेसिन बनाने पर जोर दे रही है. इसके लिए गंगा बेसिन में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. यहां गंगा बेसिन का अर्थ गंगा के किनारे वाले क्षेत्र हैं जिनमें बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. नई योजना के मुताबिक, गंगा बेसिन में मोटे अनाजों को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि किसानों की आय बढ़े और मोटे अनाजों से लोगों की सेहत में भी सुधार हो. गंगा बेसिन को बाजरा बेसिन बनाने के एक प्रयास के तहत मंगलवार को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली  में 'जीवन के लिए मोटे अनाज– पर्यावरण के लिए जीवनशैली-गंगा बेसिन में जलवायु अनुकूल स्थानीय समुदायों का विकास' विषय पर राष्ट्रीय स्तर की बैठक की गई. इस बैठक में बाजरे सहित मोटे अनाजों की खेती और मार्केटिंग-प्रचार के कई पहलुओं से जुड़े विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYM) घोषित किया है. इसी अभियान के तहत गंगा बेसिन को बाजरा बेसिन बनाने पर काम किया जा रहा है ताकि गंगा किनारे के क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हुए मोटे अनाजों की खेती बढ़ाई जाए. देश में मोटे अनाजों की खेती बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किसानों से अपील की है. मोटे अनाजों की खेती से न केवल किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि लोगों को प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व भी मिलेंगे.

गंगा बेसिन को बाजरा बेसिन बनाने से प्राकृतिक खेती में बाजरा आधारित खेती को बढ़ावा मिलेगा. इससे स्थानीय लोगों की आय बढ़ेगी और आम लोगों की आयु में भी वृद्धि हो सकेगी. मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और उन्हें उगाना भी आसान है. कम सिंचाई और प्रतिकूल मौसम में भी मोटे अनाज उगाए जा सकते हैं. मोटे अनाजों को बढ़ावा देने से उससे जुड़े कौशल और रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा. आने वाले समय में मोटे अनाजों की प्रोसेसिंग बड़े पैमाने पर बढ़ेगी जिससे किसानों की आमदनी के साथ इस क्षेत्र में रोजगार करने वाले भी अपनी कमाई बढ़ा सकेंगे.

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बाजरा बेसिन अभियान के बारे में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा-एनएमसीजी) के महानिदेशक जी अशोक कुमार ने कहा, “हमें मोटे अनाजों की खेती के मुद्रीकरण (मोनेटाइजेशन) की चुनौती का समाधान करना होगा ताकि अधिक से अधिक किसान इसकी ओर मुड़ें. हमें 'बाजरा अभियान' को किसानों के लिए लाभदायक बनाना है', साथ ही, "हम आने वाले कुछ वर्षों में गंगा बेसिन को बाजरा बेसिन बनाने का प्रयास करेंगे." इसी में राष्ट्रीय जल मिशन की ओर से 2019 में शुरू किया गया 'सही फसल' अभियान भी है जो किसानों को कम पानी वाली, आर्थिक रूप से लाभकारी और पर्यावरण के अनुकूल फसलें उगाने के लिए प्रेरित करता है.  

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बैठक में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया–FSSAI) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) गंजी कमला वर्धन राव ने भारत में लोगों के बदलते खानपान के तरीकों पर जोर दिया और खाने की ऐसी आदतें अपनाने की अपील की जो हमारे भोजन के पौष्टिक महत्त्व पर आधारित हैं. उन्होंने कहा की "हमें अपनी सोच बदलनी होगी और अपने देश के पारंपरिक ज्ञान में बताए गए स्थायी जीवन की ओर बढ़ना होगा."

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इसी बैठक में फूड साइंटिस्ट डॉ. खादर वल्ली ने बाजरा और मोटे अनाजों को सुपरफूड बताया है जो दुनिया में 2800 वेरायटी में उपलब्ध है. उन्होंने जोर देकर कहा कि बाजरा टिकाऊ विकास के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रेशे (फाइबर) की प्रचुर मात्रा के कारण हमारे शरीर की इम्युनिटी में अधिक सुधार करता है. बाजरा हमारा पारंपरिक भोजन है जो जरूरी पोषक तत्वों का स्रोत हुआ करता था. भारत में प्रचलित अन्य अनाज किसी न किसी रूप में थोपे जाते हैं. उन्होंने कहा कि “बाजरा और मोटे अनाज पानी बचाने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अन्य फसलों की तुलना में बहुत कम पानी की खपत करते हैं.” उन्होंने आगे कहा कि भारत को बड़े पैमाने पर मोटे अनाजों के उत्पादन पर ध्यान देना चाहिए और स्वस्थ रहने के लिए पारंपरिक खाने की आदतों पर वापस जाना चाहिए.

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