खीरा की खेती किसानों के लिए बेहद फायदेमंद होती है.क्योंकि कम समय में इसका अधिक उत्पादन होता है. खीरे की फसल एक महीने में तैयार हो जाती है. पर रेड पंपकिन बीटल कीट खीरे की खेती करने वाले किसानों के लिए विलेन साबित होती है. इसलिए इस खेती को इस कीट से बचाए रखने की जरूरत है. यह कीट लाल रंग का होता है. इसके व्यस्क कीट फूलों, पत्तियों और फलों को छेद करके खाते हैं. शरुआती अवस्था में कीट का प्रकोप होने पर यह कीट पपीते की पत्तियों को पूरी तरह चर जाती है. सिर्फ डंठल ही शेष रह जाते हैं. इसके अलावा कीट का प्रकोप होने पर पौधे कमजोर होकर सूख जाते हैं. इसलिए इस कीट के रोकथाम के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए.
इस कीट की रोकथाम के लिए खेत की निराई-गुड़ाई अच्छे से करनी चाहिए. फसल की कटाई के बाद खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए. गहरी जुताई करने के जमीन के अंदर छिपे हुए कीट और कीट के अंडे धूप के संपर्क में आने के बाद नष्ट हो जाते हैं या चिड़ियां उन्हें खा जाती हैं. इस कीट के नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरॉन तीन प्रतिशत दानेदार सात किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधों के जड़ के पास डालें. इसे डालने के लिए तीन से चार सेमी अंदर मिट्टी में डालें. दानेदार कीटनाशक डालने के बाद पौधों में पानी जरुर डालें. इसके अलावा अगर कीट का प्रकोप अधिक होता है तो डायक्लोरवास 76 ईसी 300 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
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खीरे में उकठा रोग का भी प्रकोप होता है. यह पौधें में किसी भी अवस्था के दौरान होता है. इस रोग का प्रकोप होने पर पुरानी पत्तियां मुरझाकर नीचे की ओर लटक जाती है. खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी रहते हुए भी पत्तियां के किनारे झुलस जाते हैं. इसके बाद धीरे-धीरे पौधा मर जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खीरे की बुवाई करने से पहले बीजोपचार जरुर करें. बीजोपचार करने के लिए 2.5 ग्राम बैभिस्टिन को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए. इसके अलावा इस रोग के प्रकोप से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए और रोगरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए.
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खीरे में मोजेक नामक एक विषाणुजनित रोग भी लगता है. इस बीमारी के प्रकोप के कारण पत्तियों की सिराएं पीली पड़ जाती हैं. इसके अलावा पोधों की कलिका छोटी हो जाती है. साथ ही जो फसल होते हैं उनका आकार छोटा और विकृत हो जाता है.इस कीट का फैलाव माहु कीट के जरिए होता है. रोग ग्रसित बीज के द्वारा भी यह रोग फैलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में खरपतवार को सबसे पहले नष्ट कर देना चाहिए. साथ ही खेती करने के लिए स्वस्थ बीज का चुनाव करना चाहिए. इस कीट के नियंत्रण के लिए मिथाइल ऑक्सीमेडान 25 ईसी या डायमिथोएट 30 ईसी का 750 एमएल प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
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