पंजाब, जिसे हरित क्रांति और श्वेत क्रांति जैसी ऐतिहासिक बदलावों की जन्मस्थली माना जाता है, आज खुद एक गंभीर कृषि संकट से गुजर रहा है. खासकर मालवा क्षेत्र की पहचान रही कपास (नरमा) की खेती अब धीरे-धीरे गायब हो रही है. एक समय था जब पंजाब में 10 लाख हेक्टेयर में नरमा और कपास बोया जाता था, आज यह रकबा घटकर मात्र 1.75 लाख हेक्टेयर रह गया है.
इस गिरावट के कई कारण हैं- नकली बीज, घटिया कीटनाशक, गुलाबी सुंडी और सफेद मक्खी जैसे कीटों का प्रकोप, साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की अनिश्चितता. इन सभी ने मिलकर किसान को नरमा से दूर कर दिया. हालात इतने खराब हो चुके हैं कि केंद्र सरकार को चिंता सताने लगी है. इसी के चलते 11 जुलाई 2025 को तमिलनाडु के कोयंबटूर में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में एक ‘कपास महा-मंथन’ आयोजित किया गया, जिसमें वैज्ञानिकों, किसानों, नीति-निर्माताओं और उद्यमियों ने मिलकर कपास मिशन की दिशा तय की.
इससे पहले पंजाब के मानसा ज़िले के तीन प्रमुख गांवों- रामानंदी, भलाईके और झेरियांवाली – में कपास की हालत का ग्राउंड रिपोर्ट सामने आया. रामानंदी गांव में किसान बताते हैं कि पहले वे 12-15 एकड़ में नरमा लगाते थे, अब मुश्किल से 5-6 एकड़ तक सीमित हो गए हैं. “बीज नकली मिलते हैं, दवा का कोई असर नहीं होता. पहले दो बार छिड़काव काफी होता था, अब 8-10 बार करने पर भी कोई फायदा नहीं."
भलाईके और झेरियांवाली गांवों की स्थिति भी इससे अलग नहीं. यहां के किसान बताते हैं कि मिट्टी कपास के लिए उपयुक्त है, लेकिन पिछले 4-5 वर्षों से हुए नुकसान ने उनका भरोसा हिला दिया है. “ना एमएसपी है, ना मंडी में ठीक भाव मिलता है. धान तो इस इलाके में हो नहीं सकता, क्योंकि यहां का पानी 25-30 फीट नीचे है और वह भी खराब क्वालिटी का. कपास ही आमदनी का जरिया था, लेकिन अब वह भी साथ छोड़ चुका है.”
ड्रोन विजुअल्स से साफ दिखता है कि कहीं खाली खेत हैं, कहीं धान, और कहीं कपास- यह दर्शाता है कि कपास की खेती किस तरह सिकुड़ती जा रही है. किसान राम सिंह कहते हैं, “पहले सारा पंजाब कपास उगाता था, अब सब छोड़ते जा रहे हैं. नकली बीज, नकली दवाएं, कीटों का हमला – यह सब मिलकर किसान को कर्ज़ में डुबो देते हैं और कई बार आत्महत्या की नौबत तक आ जाती है.”
इन स्थितियों को देखते हुए ही कोयंबटूर में कपास मिशन की शुरुआत की गई. केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “रोटी के बाद कपड़ा इंसान की सबसे जरूरी ज़रूरत है, और कपड़ा कपास से बनता है. हमारा लक्ष्य है कि हम न सिर्फ अपनी जरूरत का कपास देश में पैदा करें, बल्कि विश्व को भी एक्सपोर्ट करें.”
इस मिशन के तहत कई योजनाएं बनाई गई हैं:
शिवराज सिंह ने कहा कि "हम 'टीम कॉटन' बना रहे हैं- जिसमें कृषि मंत्रालय, वस्त्र मंत्रालय, ICAR, राज्य सरकारें, वैज्ञानिक, किसान और इंडस्ट्री के प्रतिनिधि शामिल होंगे. हमारा लक्ष्य है कि 2030 से पहले भारत कपास उत्पादन में आत्मनिर्भर बने और गुणवत्ता के मामले में विश्व का नेतृत्व करे."
पंजाब के लिए कपास सिर्फ एक फसल नहीं थी, बल्कि उसकी सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान थी. आज वही पहचान संकट में है. किसानों का भरोसा टूट रहा है, खेत खाली हो रहे हैं और आत्महत्याओं के मामलों में इजाफा हो रहा है. ऐसे में केवल योजनाओं की घोषणा नहीं, बल्कि ज़मीन पर मजबूत अमल और ईमानदार क्रियान्वयन ही कपास मिशन को सफल बना सकते हैं. नहीं तो “चिट्टी क्रांति” की यह धरती चुपचाप अपनी पहचान खो देगी. (कुलवीर सिंह का इनपुट)
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today