वैसे तो खेत में काम कर रहे किसान के सामने ढेरों चुनौतियां हैं, लेकिन जिस एक बड़ी चुनौती के सामने किसान हार रहे हैं वो है बाजार. बाजार में आकर किसान बेबस हो जाता है. किसान की आंखों के सामने ही उसका सामान बाजार में ग्राहकों को 25 रुपये किलो बेचा जा रहा होता है, लेकिन किसान से वो ही सामान चार से पांच रुपये किलो के भाव से खरीदा जाता है. छोटे किसानों को इससे बचाने के लिए हमे इसकी शुरुआत स्कूल-कॉलेज से करनी होगी. विदेशों में भी इसी पैटर्न पर काम हो रहा है.
विदेशी फल-सब्जी के सामने हमे अपने किसानों की फसल को तरजीह देनी होगी. फिर चाहें भाव पांच-दस रुपये किलो ज्यादा ही क्यों न हो. यह कहना है पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना के वाइस चांसलर सतबीर सिंह गोसाल का. एक खास मौके पर किसान तक से बातचीत के दौरान वो किसानों की चुनौतियों पर चर्चा कर रहे थे.
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वीसी सतबीर गोसाल का कहना है कि देश का छोटा किसान सरकारी पॉलिसी के साथ ही आम जनता की जागरुकता से ही बचेगा. इसके लिए स्कूल-कॉलेज से शुरुआत करनी होगी. ऑस्ट्रेलिया के प्लान की चर्चा हमे स्कूल-कॉलेज में करनी होगी. जैसे देश में सेब हमारा लोकल भी बिकता है तो विदेशी सेब भी बाजार में आ जाता है. लेकिन हमे करना यह होगा कि सेब खरीदते वक्त हम पहली वरीयता अपने लोकल सेब को दें. बेशक फिर वो चाहें थोड़ा सा महंगा ही क्यों न हो. यह सब बातें हमे बच्चों को बतानी होंगी. आज यह तरीका ऑस्ट्रेलिया ही नहीं दूसरे देशों में भी अपनाया जा रहा है. क्योंकि ऐसा नहीं है कि वहां सब बड़े किसान ही हैं.
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वीसी सतबीर सिंह गोसाल ने बताया कि देश के अंदर सबसे ज्यादा किन्नू पंजाब में होता है. लेकिन इसकी फसल जनवरी में आती है. यह वो मौसम है जब लोग जूस की जगह चाय ज्यादा पी रहे होते हैं. ऐसे में किन्नू को 12 से 14 रुपये किलो का ही रेट मिल पाता है. दूसरे राज्यों में इसलिए ज्यादा नहीं बिक पाता है कि तब तक बाजार में नागपुर का संतरा आ जाता है. अगर सरकार मदद करे तो बिजली के बजाए सोलर सिस्टम पर चलने वाले कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकते हैं. जहां एक पूरे गांव की फसल रखी जा सकती है. सब्जी भी कोल्ड में रखकर अच्छे दाम पर बेची जा सकती है.
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