नीम में बैक्टेरिया और कवक रोधी एवं अन्य बहुपयोगी गुण होते है, जिसका उपयोग बहुत से दवाइयां बनाई जाती है. लेकिन, कई महीनों से तेलंगाना और कुछ अन्य राज्यों में नीम के पेड़ों पर बड़े पैमाने पर फफूंद विनाशकारी रोगों का प्रकोप देखा जा रहा हैं. इस रोग के कारण नीम के पेड़ की पत्तियां और टहनियां सूख जाती हैं. वहीं तेलंगाना में इस रोग की वजह से नीम के पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है. वहां के लोग नीम का तेल अचार इत्यादि के रूप में अधिक उपयोग करते है.
वहीं कुछ राज्यों में नीम किसानों की रोज़ी रोटी का जरिया भी होता है. लेकिन, फैलते इस रोग के कारण किसानों की समस्या भी बढ़ गई है.हालांकि कुछ साल पहले भी फफूंद रोग नीम के पेड़ों पर फेला था, उसके बाद अब एक बार ये रोग का खतरा बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है.
राज्य के कई हिस्सों से आने वाले नीम के पेड़ों पर कवक के हमलों की खबर देख तेलंगाना राज्य के कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जयशंकर ने फंगल प्रकोप का अध्ययन करने और उपाय सुझाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना की है, जिसमें पौधे रोगविज्ञानी, कृषिविज्ञानी और एंटोमोलॉजिस्ट शामिल हैं. साथ ही ये समिति किसानों की समस्या को कैसे को सुलझाया जाए भी है, ये भी देखेगी.
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विवि के अनुसंधान निदेशक जगदीश्वर बताते है कि अगस्त और सितंबर 2022 के दौरान अत्यधिक वर्षा और उच्च आर्द्रता के कारण, संक्रमित नीम के पौधों ने पूरे पौधे के मुरझाने सूखने, टहनियों के सूखने जैसे लक्षण दिखे थे. जगदीश्वर कहना है कि हालांकि इस यह नुकसान पिछले साल की तुलना में एक तिहाई से भी कम है. और इस पर जल्दी ही नियंत्रण पा लिया जाएगा. हमारी टीम टहनियों और शाखाओं से और हरी पत्तियों पर रिसर्च कर रहे है.
कुछ साल पहले तेलंगाना समेत अन्य राज्यों में नीम के पेड़ बड़े पैमाने पर प्रवभीत हुए थे. इस फंगल रोग के कारण कोई नीम का पेड़ नहीं बचा था. इसके चलते किसानों को बड़ी समस्याओ का सामना करना पड़ा था.और यह रोग के एक पेड़ से दूसरे पेड़ों मे तेज़ी से फेल रहा था. कृषि वैज्ञानिको ने संक्रमित पेड़ों पर 10 से अधिक रोगजनकों को देखा था. इस घटना की सूचना पहली बार देहरादून में लगभग 30 साल पहले मिली थी. इसके बाद प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने वाले वैज्ञानिकों की टीम ने किसानों को दवाइयों का छिड़काव करने की सलाह दी थी. वहीं इतने सालों बाद एक बार फिर से पेड़ों पर खतरा मंडराने लगा है.
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