देश में इस बार आलू और प्याज समेत कई सब्जियों की बंपर पैदावार हुई है. वहीं सब्जियों की बंपर पैदावार होने की वजह से भाव में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. किसानों की लागत तक नहीं निकल पा रही है. नतीजतन, किसानों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. किसानों की इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने भारत सरकार से तत्काल प्रभाव से आलू के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाकर किसानों को राहत देने की मांग की है. इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि जब तक सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटी कानून नहीं बनाएगी तब तक किसानों का भला नहीं होने वाला है. किसानों को कर्ज नहीं, फसलों के भाव चाहिए.
दरअसल, मौजूदा वक्त में आलू कि खेती करने वाले किसान बहुत परेशान हैं. आलू किसानों का कहना है कि मंडी या बाजार में ले जाने का ढुलाई का खर्च भी नहीं निकल पा रहा है. वहीं महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान फसल की लागत निकालने के लिए पुरजोर मेहनत कर रहे हैं. इसके बाद भी हालात जस के तस हैं. आलू हो या प्याज, यहां तक कि टमाटर और अन्य सब्जियों का आजकल ऐसा ही हाल है. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में इस साल सब्जी और आलू का भाव 60 से 76 परसेंट तक गिर गया है. पिछले साल जहां आलू के भाव 10 रुपये चल रहे थे, इस बार वही भाव चार रुपये पर सिमट गया है.
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वहीं हरियाणा के आलू किसानों का कहना है कि एक किलो आलू उगाने का खर्च सात से आठ रुपये आता है. लेकिन लागत नहीं निकल पाने से वे आलू की खुदाई तक नहीं कर रहे. इसमें मजदूरी पर होने वाला खर्च उनके गले की हड्डी बनता जा रहा है. कई जगह किसान फसल को या तो नष्ट कर रहे हैं या फिर खेत में यूं ही छोड़ रहे हैं. इस इंतजार में कि आगे अच्छे भाव मिल सकते हैं.
मशहूर फूड पॉलिसी एनालिस्ट देविंदर शर्मा ने कहा है कि, आलू और प्याज समेत अन्य सब्जियों की यह स्थिति 'फार्म ब्लडबाथ' यानी खेती का संहार है. उन्होंने आगे कहा कि फसलों के दाम गिरने से किसान अगले साल अपनी खेती कम कर देते हैं. जैसे इस बार आलू और प्याज के भाव कम मिले हैं, तो अगली बार किसान दोनों फसलों का रकबा कम कर देंगे. किसान जैसे ही रकबा कम करते हैं, इससे उपज कम होती है और मांग बढ़ जाती है. मांग बढ़ने से किसान अगली बार फिर अधिक फसल लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं. इसका नतीजा बंपर उत्पादन और दाम में गिरावट के रूप में दिखता है. यह पूरी प्रक्रिया एक साइकिल के रूप में चलती रहती है. (इनपुट- मंजीत सहगल)
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