पंजाब ने एक बार फिर चावल की खेती में नया रिकॉर्ड बनाया है. कृषि विभाग की रिपोर्ट्स पर अगर यकीन करें तो धान की खेती का रकबा 32.46 लाख हेक्टेयर के स्तर पर पहुंच गया है जोकि सबसे ज्यादा है. इस आंकड़ें में 6.80 लाख हेक्टेयर खेती बासमती की भी शामिल है. पिछले साल यह 32.43 लाख हेक्टेयर था यानी इस बार इसमें मामूली इजाफा ही हुआ है. भले ही इजाफा मामूली हो लेकिन यह बात तो सच है कि धान का रकबा पहले से ही बहुत ज्यादा है और इसमें कमी आने की फिलहाल कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है. ऐसे में राज्य में फसल विविधीकरण में गिरावट को लेकर विशेषज्ञ काफी चिंतित हैं.
लगभग चार दशकों से, पंजाब में एक के बाद एक सरकारें किसानों को मक्का, कपास, दालें और गन्ना जैसी वैकल्पिक, कम पानी वाली फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास करती आ रही थीं लेकिन धान का दबदबा कम होने की जगह बढ़ता जा रहा है. भूजल पर निर्भर धान की खेती को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी भी मिली हुई है. ऐसे में राज्य में आत दूसरी वैकल्पिक फसलें और भी हाशिये पर चली गई हैं.
पंजाब के कपास क्षेत्र में मालवा क्षेत्र के आठ जिले शामिल हैं: बठिंडा, फाजिल्का, मानसा, मुक्तसर, मोगा, बरनाला, संगरूर और फरीदकोट आते हैं. यहां भी पिछले कुछ सालों में एक बड़ा देखने को मिला है. इन जिलों में या तो धान के रकबे में इजाफा हुआ है या फिर इसमें कोई कमी नहीं आई है. इससे कपास के रकबे को बनाए रखने या बढ़ाने के प्रयासों पर भी पानी फिर गया है. इस साल भी रुझान अलग नहीं रहा.
बठिंडा में धान की बुवाई 2.39 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है जोकि पिछले साल 2.16 लाख हेक्टेयर थी. इसी तरह से फाजिल्का में धान की बुवाई 1.28 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1.30 लाख हेक्टेयर, मुक्तसर साहिब में 2.01 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2.03 लाख हेक्टेयर, मानसा में 1.44 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1.46 लाख हेक्टेयर और बरनाला में बढ़कर 1.14 लाख हेक्टेयर से 1.15 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है.
कपास क्षेत्र के बाकी जिलों—संगरूर, मोगा और फरीदकोट, में धान की बुआई पिछले साल के बराबर ही रही. इस बीच, तरनतारन, नवांशहर, रोपड़, पटियाला, पठानकोट, लुधियाना, जालंधर, होशियारपुर, गुरदासपुर, फिरोजपुर, अमृतसर और फतेहगढ़ साहिब जैसे कई अन्य जिलों में धान के रकबे में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई, लेकिन यह बाकी जिलों में हुई बढ़त की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं थी. पिछले एक दशक के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो धान और बासमती के तहत कुल क्षेत्र 88 से 90 प्रतिशत था जबकि कपास, मक्का और गन्ना जैसी वैकल्पिक खरीफ फसलें अधिकांश वर्षों में शायद ही कभी 6 लाख हेक्टेयर से ज्यादा हो सकी हैं. हाल ही में इन तीन फसलों के अंतर्गत क्षेत्र घटकर मात्र 3 लाख हेक्टेयर रह गया है.
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