भारत के टेक्स्टाइल सेक्टर ने सरकार से कपास पर 11 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी हटाने की अपील कर रहा है. यह अपील कच्चे माल की भारी कमी की वजह से की गई है. सेक्टर की मांग है कि अगर उसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में रहना है तो इसमें सुधार की जरूरत है. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार इस ड्यूटी के चलते घरेलू कपास की कीमतें ग्लोबल आंकड़ों से लगातार ज्यादा रही हैं. भारत में हाल ही में 2024-25 में कपास उत्पादन 15 वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच गया है.
भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (CITI) का कहना है कि कीमतों में अंतर के कारण निर्माताओं के लिए निर्यात बाजारों में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है और इससे रोजगार की सुरक्षा को खतरा होता है. भारत के कपड़ा उद्योग ने सुझाव दिया है कि सरकार कच्चे कपास के आयात पर 11 फीसदी ड्यूटी हटाने की पेशकश कर सकती है. अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के दौरान देश के कपड़ा और परिधान क्षेत्रों के लिए अनुकूल शर्तों पर बातचीत करने के लिए इसे एक उपकरण के तौर में इस्तेमाल कर सकती है.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारियों ने पहले बताया था कि भारत, अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंध बनाने की कोशिशों में लगा था. ऐसा माना गया था कि ट्रेड एग्रीमेंट के चलते अमेरिकी अखरोट, बादाम, सेब और क्रैनबेरी पर इंपोर्ट ड्यूटी कम करने या पूरी तरह से खत्म करने पर विचार कर सकती है.
हालांकि सरकारी सलाहकार संस्था, कपास उत्पादन एवं उपभोग समिति (COCPC) ने इस ड्यूटी को हटाने या कम से कम छह महीने के लिए इसे स्थगित रखने की सिफारिश की है. कुछ टिप्पणीकारों ने यह भी कहा है कि शुल्क हटाने का इस्तेमाल अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता में सौदेबाजी के तौर पर किया जा सकता है. हालांकि, घरेलू कपास उत्पादकों का तर्क है कि शुल्क हटाने से स्थानीय कीमतों पर असर पड़ सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह ड्यूटी से किसानों के बजाय व्यापारियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाता है. इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, भारत का कपड़ा मंत्रालय आम तौर पर इसका समर्थन करता है और इस बात पर जोर देता है कि भारत के कपड़ा निर्यात लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किफायती कच्चा कपास बेहद जरूरी है. इस क्षेत्र का लक्ष्य 2030 तक 100 अरब डॉलर के निर्यात तक पहुंचना है.
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