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कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने क‍िया कमाल, बासमती धान में अब नहीं होगी कीटनाशकों के छ‍िड़काव की जरूरत

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने क‍िया कमाल, बासमती धान में अब नहीं होगी कीटनाशकों के छ‍िड़काव की जरूरत

Basmati Rice Export: देश की तीन सबसे लोकप्र‍िय बासमती चावल की क‍िस्मों में पूसा के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने सुधार करके बनाया रोग रोधी. नहीं लगेगा जीवाणु झुलसा और झोका रोग. इसल‍िए कीटनाशकों पर होने वाला खर्च भी बचेगा और एक्सपोर्ट में अब कोई द‍िक्कत नहीं आएगी. कीटनाशकों की अध‍िक मात्रा बनती थी एक्सपोर्ट में बाधक.

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बासमती चावल के एक्सपोर्ट में आने वाली समस्या खत्म (Photo-Kisan Tak). बासमती चावल के एक्सपोर्ट में आने वाली समस्या खत्म (Photo-Kisan Tak).

भारत ने 2022-23 में करीब 34 हजार करोड़ रुपये के बासमती चावल का न‍िर्यात (Basmati Rice Export) क‍िया है. अब इसमें और वृद्धि होने की संभावना काफी बढ़ गई है. क्योंक‍ि हमारे कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने उस समस्या का समाधान कर द‍िया है ज‍िसकी वजह से कई देशों में बासमती के एक्सपोर्ट को लेकर द‍िक्कत आ रही थी. यह समस्या थी कीटनाशकों के अधिक मात्रा की. भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान, पूसा ने तीन ऐसी क‍िस्मों का व‍िकास क‍िया है ज‍िसमें कीटनाशकों के छ‍िड़काव की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. इसकी ग्राउंड पर यानी क‍िसानों के खेतों में टेस्ट‍िंग भी हो गई है. साल 2022 में बासमती के जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) एरिया में करीब 7000 किसानों ने नई क‍िस्मों की खेती की थी. बड़े पैमाने पर इसका बीज तैयार करवाया गया है. ज‍िसका इस साल खरीफ सीजन में क‍िसान फायदा उठा सकते हैं. 

बासमती की सबसे चर्च‍ित क‍िस्मों को सुधार कर तैयार की गईं नई क‍िस्मों में पत्ती का जीवाणु झुलसा (Bacterial Leaf Blight) और झोका रोग (Blast Disease) नहीं लगता. इससे निपटने के लिए ही किसान ट्राइसाइक्लाजोल का छिड़काव करते थे, जिसके कारण चावल में कीटनाशक की मात्रा मिलती थी. नतीजा ये होता था क‍ि हमारा चावल वापस आ जाता था. खासतौर पर यूरोपीय यूनियन के देशों से. 

तीन क‍िस्मों का दबदबा

पूसा के न‍िदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह का दावा है क‍ि भारत में लगभग 2 मिलियन हेक्टेयर में बासमती धान की खेती की जाती है. जिनमें पूसा बासमती 1509, 1121 और 1401 शाम‍िल हैं. बासमती के कुल रकबा में इसका ह‍िस्सा करीब 95 परसेंट है. पूसा इंस्टीट्यूट ने पूसा बासमती 1509 का सुधार करके 1847 तैयार किया. इसी तरह 1121 को सुधार कर 1885 और 1401 में बदलाव कर पूसा 1886 नाम से रोगरोधी किस्में विकसित कीं. ये भारत में सबसे ज्यादा पैदा की जाने वाली बासमती चावल की वेराइटी हैं.  

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क‍िसानों को क‍ितना फायदा

भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान के न‍िदेशक डॉ. स‍िंह ने बताया क‍ि कृषि उत्पादों में बासमती चावल सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा अर्जित करता है और बासमती की 98 फीसदी क‍िस्में पूसा द्वारा व‍िकस‍ित की गई हैं. प‍िछले साल नई व‍िकस‍ित यानी रोगरोधी बासमती क‍िस्मों का बीज बहुत कम था. इसल‍िए कम क‍िसानों को ही इसका फायदा म‍िला था. लेक‍िन इस साल ऐसी समस्या नहीं है. एक क‍िलो से 500 क‍िलो बीज पैदा हुआ है. कीटनाशकों का इस्तेमाल न होने से क‍िसानों की 3000 रुपये प्रत‍ि एकड़ की बचत हुई है और एक्सपोर्ट में बाधा आने की समस्या भी खत्म हो गई है.  

कीटनाशकों की मात्रा के न‍ियम 

  • यूरोपीय संघ ने ट्राइसाइक्लाजोल की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL-Maximum Residue limit) 0.01 पीपीएम (0.01 मिलीग्राम/किग्रा) तय की है. 
  • यानी 100 टन चावल में 1 ग्राम अवशेष के बराबर. अमेरिका में यह 0.3 और जापान में 0.8 पीपीएम है. 
  • बासमती धान के अलग-अलग रोगों के ल‍िए क‍िसान ट्राइसाइक्लाजोल, कार्बेन्डाजिम, प्रोपिकोनाजोल, थियामेथोक्सम, प्रोफेनोफोस, एसेफेट, बुप्रोफेजिन, क्लोरपाइरीफोस, मेथैमिडोफोस और आइसोप्रोथियोलेन आद‍ि का इस्तेमाल करते रहे हैं. 
  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती उत्पादक देश है. पाक‍िस्तान के भी बासमती की खेती होती है. 

क्या थी समस्या

भारत के बासमती चावल में कीटनाशक की मात्रा कई देशों द्वारा तय इसके अधिकतम अवशेष स्तर (MRL) से ज्यादा मिल रही थी. ज‍िससे एक्सपोर्ट में कमी आ रही थी. साल 2016 में यूरोपीय यूनियन को लगभग 5 लाख टन बासमती चावल का न‍िर्यात होता था, जो 2019-20 में घटकर महज 2.5 लाख टन ही रह गया था. क्योंक‍ि वहां कीटनाशक की मात्रा को लेकर काफी सख्त न‍ियम हैं. क‍िसान जीवाणु झुलसा और झोका रोग की वजह से कीटनाशक डालने के ल‍िए मजबूर होते थे. लेक‍िन अब ऐसी समस्या नहीं आएगी.  

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