आपने कई बार जीआई टैग का नाम सुना होगा. अक्सर अखबारों या समाचारों में ये शब्द देखने को मिल जाता है. लेकिन अधिकांश लोगों को यह नहीं पता होता कि आखिर जीआई टैग क्या होता है. यह टैग किसी भी वस्तु या उत्पादन के लिए बहुत खास माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं जीआई टैग क्या है, यह कैसे मिलता है-
जीआई टैग का मतलब बिल्कुल सामान्य सा है. इसका पूरा नाम Geographical Indication Tag होता है. यह टैग मिलने के बाद कोई भी वस्तु उस क्षेत्र या राज्य के लिए विशेष होती है. भारत में जीआई टैग की शुरुआत साल 2003 में हुई थी. जीआई टैग किसी वस्तु की विशेषता और उसकी दुर्लभ गुण (rare) को अच्छी तरह से जांचने परखने के बाद दिए जाने का प्रावधान है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि एक वस्तु को केवल एक ही जगह पर जीआई टैग दिया जा सकता है. एक ही वस्तु को अलग-अलग राज्यों में भी जीआई टैग दिया जा सकता है जो उसकी विशेषता के आधार पर लागू होगा.
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यदि बात करें जीआई टैग देता कौन है, तो आपको बता दें कि वाणिज्य मंत्रालय विभाग के इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड के द्वारा अच्छी तरह से जांच परख करने के बाद ये टैग दिया जाता है. उसके बाद से यह वस्तु अपनी विशेष पहचान के साथ पहचानी जाती है.
हम समझ चुके हैं कि यह टैग वस्तु के दुर्लभ गुणों के आधार पर उसे विशेष पहचान दिलाने के लिए दिया जाता है. यह टैग कुछ विशेष वस्तुओं को दिया जाता है. जैसे खेती से जुड़े उत्पादों को जैसे किसी स्थान पर कोई खास तरीके की पैदावार हो रही है जिसके विशेष गुण हैं. जैसे किसी विशेष राज्य में उगने वाले फल, सब्जियां और मसाले आदि. विशेष कपड़े और हैंडीक्राफ्ट जैसे हाथ से कढ़ाई, बुनाई करके बनाई जाने वाली साड़ियां, चादर,कार्पेट आदि. इसके अलावा, किसी स्थान की विशेष खाद्य सामग्रियों को ये टैग दिया जाता है. जैसे- पेड़ा, नमकीन और लड्डू आदि. सबसे पहले ये जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग में उगने वाली चाय को दिया गया था.
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