एक्सपोर्ट बैन के बाद महाराष्ट्र के किसान 10 रुपये किलो पर प्याज बेचने के लिए मजबूर हैं. दूसरी ओर उपभोक्ताओं को उनके शहर की मंडियों में 40 रुपये और रेहड़ी वालों से 50 रुपये किलो पर प्याज मिल रहा है. एक तरफ किसानों को उनकी लागत तक नहीं मिल पा रही है तो दूसरी ओर उपभोक्ताओं की जेब कट रही है. यही नहीं महंगाई कम करने के नाम पर जो एक्सपोर्ट बैन किया गया है उससे सीधे तौर पर देश के टैक्स और डॉलर का नुकसान हो रहा है. लेकिन आज मैं यह बात करने वाला हूं कि आखिर नासिक से 10 रुपये किलो में चला प्याज दिल्ली तक आते-आते 40 और 50 रुपये कैसे हो जाता है. आखिर किसानों के खेत से उपभोक्ताओं तक पहंचते-पहुंचते प्याज की कितनी परतें उधड़ जाती हैं और कितने लोग कमाई करते हैं.
नासिक के किसी गांव से किसान मंडी में प्याज लाता है. यहां नीलामी में अगर उसे 10 रुपये का रेट मिला तो किसान के पास एक्चुअल में 9 रुपये ही जाएगा. जिस ट्रैक्टर-ट्रॉली में वो प्याज लाता है उसमें आमतौर पर 2 टन यानी 20 क्विंटल माल आता है. उसका किराया और अनलोडिंग यानी उतरवाई लेकर उसे तुरंत 2000 रुपये देने पड़ते हैं. इस तरह उसकी कमाई सीधे तौर पर 1 रुपये किलो कम हो जाती है. इसके बाद खेल शुरू होता है मंडी के अंदर के सिस्टम का.
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किसान से आढ़तिया ने प्याज 10 रुपये किलो पर खरीदा. उस पर 1 फीसदी मार्केट फीस लगती है और 4 फीसदी आढ़त. यह दोनों मिलाकर 50 पैसे हो गया. यानी 10 रुपये 50 रुपये पैसे. इसके बाद आढ़तिया उसकी छटनी करवाता है, जिस पर करीब 1 रुपये किलो जोड़ता है. जबकि 45 किलो वाला बैग लगाता है, वो 45 रुपये में आता है. यानी 1 रुपये किलो बैग का हो गया.
इसके बाद लोडिंग के लिए 50 पैसे किलो खर्च करता है. जो किसान के यहां से प्याज आता है उसमें छोटे साइज का भी माल होता है, जिसका दाम कम लगता है. आढ़तिया इस इसकी भरपाई के लिए भी 1 रुपये जोड़ लेता है. फिर 1 रुपये किलो तक का अपना मुनाफा भी जोड़ता है. अब दिल्ली आने के लिए तैयार गाड़ी पर लदने तक मंडी में ही प्याज 15 रुपये किलो हो जाता है.
राष्ट्रीय राजधानी यानी दिल्ली के लिए सामान्यतौर पर लोग 25 टन वाला ट्रक बुक करवाते हैं. यानी 250 क्विंटल प्याज. नासिक से दिल्ली का किराया इस समय 80,000 रुपये बताया गया है. नासिक देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी है. वहां से दिल्ली की आजादपुर और ओखला मंडी में प्याज आता है. यहां पर आते-आते 3.20 रुपये किलो ढुलाई हो जाती है. इस तरह आजादपुर मंडी आते-आते 18.20 रुपये प्रति किलो लागत हो गई. दिल्ली में 6 फीसदी आढ़त लगती है. यानी 1.10 पैसे और जुड़कर अब दाम हो गया 19.30 रुपये किलो.
नासिक से तीन दिन में दिल्ली के आजादपुर मंडी में ट्रक पहुंचता है तो उसमें कुछ माल खराब भी हो जाता है. इसके लिए आढ़ती 50 पैसे किलो जोड़ लेता है. जबकि अनलोडिंग का 1 रुपये किलो का खर्च जुड़ जाता है. यानी 20 रुपये 80 पैसे किलो हो गया. अब यहां 25 टन की गाड़ी आढ़ती से कोई एक ही व्यापारी नहीं खरीद लेगा. उसके पास इतने में कम से कम 10 कस्टमर हो जाते हैं इसलिए वो अपना प्रॉफिट 2 रुपये किलो लगाता है. यानी वो करीब 23 रुपये किलो के हिसाब से एक-दो टन माल खरीदने वाले व्यापारियों को प्याज बेच देता है.
अब इन बड़े व्यापारियों से 100 किलो प्याज खरीदने वाले छोटे व्यापारी भी प्याज खरीदते हैं. तब वो बड़ा व्यापारी कम से कम 4-5 रुपये किलो मार्जिन रखता है. यानी इसका दाम 27-28 रुपये किलो पहुंच जाता है. यही व्यापारी आपकी नजदीकी मंडियों में प्याज बेचते हैं तो वो 10 रुपये का मार्जिन रखते हैं. इसलिए वो 35-40 रुपये किलो प्याज देते हैं. इन व्यापारियों से 20-25 किलो प्याज लेकर रेहड़ी वाला आपके घर तक लेकर पहुंचता है. तब 10 रुपये किलो का फायदा वो भी लगाता है और दाम हो जाता है 50 रुपये किलो. दरअसल, प्याज के इस पूरे सप्लाई चेन में उत्पादक यानी किसान ही सबसे ज्यादा प्रताड़ित हो रहा है.
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