पूरे देश में 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है. किसानों के लिए समर्पित यह खास दिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह की याद में मनाया जाता है. चौधरी चरण सिंह की जयंती 23 दिसंबर को होती है. इसीलिए किसानों का यह खास दिन 23 दिसंबर को मनाया जाता है. भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसान नेता कई हुए, लेकिन जब किसी सर्वमान्य नेता की बात होती है तो उसमें पहला नाम चौधरी चरण सिंह का उभर कर सामने आता है. उनकी याद में ही 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाने का रिवाज है.
अमीर हो या गरीब, छोटा किसान हो या सीमांत, या बड़ा भूमिधर, चौधरी चरण सिंह की पूछ हर वर्ग के किसानों में हुआ करती थी. तभी कहा जाता है कि उनके जैसा किसान नेता देश में अभी तक कोई सामने नहीं आया. उनका नाम इसलिए भी लिया जाता है क्योंकि उन्होंने भूमि सुधारों के लिए जितना काम किया, वैसा शायद ही किसी ने किया हो. चौधरी चरण सिंह किसान नेता तो थे ही, उन्हें देश का 5वां प्रधानमंत्री होने का भी गौरव प्राप्त है. उनका कार्यकाल 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक रहा.
23 दिसंबर 1902 को मेरठ (उत्तर प्रदेश) में जन्मे चरण सिंह की पूरी राजनीति किसानों, पिछड़ों और गरीबों के इर्द-गिर्द घूमती रही. उनकी राजनीति में हाशिये के लोगों को सबसे अधिक महत्व मिलता रहा. यही वजह है कि उन्होंने पूरी जिंदगी भूमि सुधारों के लिए बड़ा काम किया. वे किसानों की जमीन से संबंधित समस्याओं से भलीभांति परिचित थे, इसलिए आगे चलकर जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित कराया. यह समय 1952 का था. चाहे यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में या केंद्र में वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने सेवा दी हो, उनके कार्यकाल में हमेशा किसानों को प्राथमिकता मिलती रही.
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चौधरी चरण सिंह का हमेशा से ये मानना रहा कि भारत में तब तक खुशहाली नहीं आ सकती, जबतक यहां का किसान खुशहाल न हो. यही वजह है कि उन्होंने देश की नीतियों में खेती-किसानों को केंद्र में रखा. वे हमेशा इस बात पर अडिग रहे कि किसानों को उनकी उपज का उचित लाभ मिले. आज भी यह मांग उतनी ही शिद्दत से उठाई जाती है. यही वजह है कि हालिया समय में किसान दिवस और चौधरी चरण सिंह की राजनीति और भी प्रासंगिक हो गई है.
अंग्रेजों के जमाने में भारत में जमींदारी प्रथा चलती थी. तब एक ही व्यक्ति के पास सैकड़ों-सैकड़ों बीघा जमीन हुआ करती थी. दूसरी ओर खून-पसीना बहाकर खेती से रोजी-रोटी कमाने वाले किसान-मजदूर खस्ताहाली में जीवन गुजारते थे. जब देश आजाद हुआ तो चौधरी चरण सिंह ने सबसे पहला काम यही किया कि जमींदारी उन्मूलन का विधेयक पारित कराया. कहा जाता है कि चौधरी चरण सिंह के प्रयासों का ही नतीजा है कि देश से गुलामी की प्रतीक जमींदारी प्रथा का अंत हो सका. जमीन का मालिकाना हक उन लोगों को मिल सका जो वाकई उसके हकदार थे. जमींदारी प्रथा में जो टैक्स वसूली का नियम था, वह भी जाता रहा. इन सभी क्रांतिकारी बदलावों के पीछे चौधरी चरण सिंह की भूमिका थी.
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उत्तर प्रदेश में पटवारियों से जुड़ा विवाद आपने सुना होगा. कहा जाता था कि उस वक्त किसानों में पटवारियों का खौफ था. किसान पटवारी के कामकाज और रवैये से परेशान रहते थे. उनकी खेती-बाड़ी भी चौपट होती रहती थी. ऐसे में चौधरी चरण सिंह ने पटवारियों की मनमानी से मुक्ति दिलाई. उस वक्त हजारों पटवारियों को त्यागपत्र देना पड़ा. इसके बाद चरण सिंह के प्रयासों की बदौलत ही लेखपाल पद का सृजन हुआ. आज यूपी में यह पद बहुत की खास है और खेती-बाड़ी में इसका बहुत महत्व है. हरिजन वर्ग के उत्थान और विकास के लिए चौधरी चरण सिंह ने लेखपाल भर्ती में 18 फीसद आरक्षण हरिजनों को दिया. इस तरह के कई नामचीन काम हैं जो चौधरी चरण सिंह के खाते में दर्ज हैं. यही वजह है कि 23 दिसंबर का दिन चौधरी चरण सिंह और किसानों के नाम दर्ज है.
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