मूंगफली भारत की एक अहम फसल है और अब इस पर रोजाना नई रिसर्च हो रही है. इसी तरह की एक रिसर्च को न सिर्फ एशिया बल्कि अफ्रीका के किसानों के लिए बेहद फायदेमंद करार दिया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) की तरफ से मूंगफली की ऐसी किस्मों को विकसित किया गया है जिसने पिछले दो दशकों में उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है.
संस्थान की तरफ से हुई एक रिसर्च के अनुसार, मध्यम अवधि वाली किस्मों में प्रति हेक्टेयर 27 किलो और देर से पकने वाली किस्मों में 25 किलो की सालाना पैदावार वृद्धि देखी गई है. यह सुधार इस बात का संकेत है कि आईसीआरआईएसएटी का ब्रीडिंग प्रोग्राम किसानों की उत्पादकता बढ़ाने में प्रभावी रहा है. संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक, मूंगफली की उपज में प्रति वर्ष 1.6 फीसदी की औसत वृद्धि दर्ज की गई है जो करीब 25 किलो प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष के बराबर है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर सालाना जेनेटिक वृद्धि 1.5 फीसदी से कम रहती, तो नई रणनीति बनानी पड़ती. रिसर्च दो प्रमुख किस्मों मूंगफली, स्पैनिश बंच और वर्जीनिया बंच, पर केंद्रित था. इन दोनों किस्मों का परीक्षण फली उत्पादन, छिलका प्रतिशत और बीज वजन जैसे तीन प्रमुख मानकों पर किया गया. यह परीक्षण दो वर्षों में 3 से 4 फसली मौसमों को कवर करता है.
ICRISAT के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने बताया, 'यह रिसर्च हमें भविष्य की फसलों के लिए ऐसी किस्में विकसित करने में मदद करेगा जो जलवायु और उत्पादन चुनौतियों के प्रति अधिक सक्षम हों.' साल 1976 से अब तक ICRISAT के ग्राउंडनट ब्रीडिंग कार्यक्रम के तहत 240 से अधिक एडवांस्ड किस्में विकसित की जा चुकी हैं, जो 39 देशों में लाखों किसानों को लाभ पहुंचा रही हैं. मुख्य वैज्ञानिक जनीला पसुपुलेटी के अनुसार, पिछले दो दशकों के नतीजे सकारात्मक हैं, लेकिन आगे बढ़ने के लिए उन्नत तकनीकें जैसे कंप्यूटेड टोमोग्राफी और जीनोमिक सेलेक्शन को ब्रीडिंग प्रॉसेस में शामिल करना जरूरी है.
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