Pulses Mission: जानें दलहन मिशन के बारे में सबकुछ... शनिवार को पीएम मोदी करेंगे लॉन्‍च

Pulses Mission: जानें दलहन मिशन के बारे में सबकुछ... शनिवार को पीएम मोदी करेंगे लॉन्‍च

इस मिशन का लक्ष्य दलहनों के उत्पादन को वर्ष 2030-31 तक 350 लाख टन तक बढ़ाना है, जो कि वित्त वर्ष 2023-24 के 242 लाख टन के उत्पादन की तुलना में एक बड़ा इजाफा होगा. इसके साथ ही योजना के तहत दलहन की खेती के क्षेत्रफल को 242 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 310 लाख हेक्टेयर तक करने का प्रस्ताव है.

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Pulses Mission: जानें दलहन मिशन के बारे में सबकुछ... शनिवार को पीएम मोदी करेंगे लॉन्‍चशनिवार को पीएम मोदी करेंगे एक अहम मिशन लॉन्‍च

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ को लॉन्‍च करेंगे. केंद्र सरकार की तरफ से छह साल वाले इस मिशन का ऐलान सबसे पहले निर्मला सीतारमण ने की थी. इस साल जब उन्‍होंने बजट का ऐलान किया तो वित्त मंत्री ने इसे मंजूरी दी थी. उन्‍होंने तब बजट में इस मिशन के लिए 11,440 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था. इस मिशन का मकसद तूर या अरहर, उड़द और मसूर जैसी प्रमुख दलहन फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना है. इसके तहत सरकारी एजेंसियों द्वारा सुनिश्चित खरीद की व्यवस्था भी की जाएगी. इससे किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिल सकेगा. साथ ही देश में दलहनों की आपूर्ति स्थिर बनी रहे, सरकार इसी सोच के साथ इसे लॉन्‍च करने जा रही है. 

क्‍या है मिशन का मकसद 

इस मिशन का लक्ष्य दलहनों के उत्पादन को वर्ष 2030-31 तक 350 लाख टन तक बढ़ाना है, जो कि वित्त वर्ष 2023-24 के 242 लाख टन के उत्पादन की तुलना में एक बड़ा इजाफा होगा. इसके साथ ही योजना के तहत दलहन की खेती के क्षेत्रफल को 242 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 310 लाख हेक्टेयर तक करने का प्रस्ताव है. वहीं प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता  को भी 881 किलोग्राम से बढ़ाकर 1,130 किलोग्राम तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. मिशन के तहत सरकार का सबसे बड़ा मकसद देश में दलहनों की बढ़ती मांग को घरेलू उत्पादन के माध्यम से पूरा करना और आयात पर निर्भरता को कम करना है. 

मिशन की खास रणनीति 

इस मिशन के तहत धान की परती भूमि का उपयोग कर खेती योग्य क्षेत्र बढ़ाना और गन्ने के साथ दलहन की अंतर-फसल को प्रोत्साहित करना जैसी रणनीतियां अपनाई जाएंगी. यह मिशन क्लस्टर आधारित मॉडल पर 416 लक्षित जिलों में लागू किया जाएगा. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक देश है, लेकिन फिर भी इसकी जरूरत को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. भले ही भारत ग्‍लोबल प्रोडक्‍शन में 27.4 फीसदी योगदान देता हो लेकिन फिर भी पिछले साल देश ने 7.3 मिलियन टन दलहन का आयात किया. यह आयात घरेलू उपभोग का करीब 18 फीसदी रहा. यह बताता है कि देश में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए दालों के उत्पादन में इजाफा बेहद जरूरी है. 

रिसर्च से लेकर बीज पर होगा फोकस 

मिशन के तहत रिसर्च, सीड डेवलपमेंट और जलवायु सहनशील किस्मों के विकास को प्राथमिकता देने की योजना भी इसके तहत रखी गई है. शुरुआती चरण में सरकार का लक्ष्य 12.6 मिलियन क्विंटल सर्टिफाइड बीजों का वितरण और 8.8 मिलियन फ्री बीज किट किसानों तक पहुंचाने का है. इसके साथ ही 35 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को दलहन की खेती के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव है. खेती के इस विस्तार और दलहनों की प्रमुख किस्मों की सुनिश्चित सरकारी खरीद से किसानों को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है. इससे वो धान की खेती से दलहन उत्पादन की ओर रुख कर सकेंगे. हालांकि, कटाई के बाद होने वाले नुकसान और स्‍टोरेज की कम सुविधाएं भी बड़ी चुनौतियां हैं. इन समस्याओं का समाधान प्राथमिकता के आधार पर करना होगा क्योंकि दलहन को लंबे समय तक सुरक्षित रखना कठिन होता है. 

दालों के उत्‍पादन में पीछे भारत 

इन चुनौतियों से निपटने के लिए मिशन के तहत 1,000 प्रोसेसिंग और पैकेजिंग यूनिट्स स्थापित करने की योजना है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि देश में दलहन उत्पादन और उत्पादकता दोनों ही पीछे रह गए हैं क्योंकि ये फसलें अक्सर सीमांत भूमि पर उगाई जाती हैं जहां सिंचाई और उर्वरक उपयोग बहुत कम होता है. विश्व के टॉप 10 प्रोड्यूसर्स की लिस्‍ट में भारत की औसत उपज सबसे कम है और यह आंकड़ा सिर्फ 0.74 टन प्रति हेक्टेयर ही है. उनकी मानें तो अगर भारत वैश्विक औसत उपज स्तर को हासिल कर ले तो वह दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है. हालांकि, इसके लिए सिंचाई सुविधाओं, जलवायु अनुकूलता और संरचनात्मक बाधाओं को भी दूर करना जरूरी है ताकि उत्पादन में दीर्घकालिक वृद्धि सुनिश्चित की जा सके. 

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