Manoj Kumar Movies: PM ने कहा तो इस हीरो ने बना दी किसानों पर फिल्म, आज भी है सुपरहिट

Manoj Kumar Movies: PM ने कहा तो इस हीरो ने बना दी किसानों पर फिल्म, आज भी है सुपरहिट

एक दौर था जब 'जय जवान और जय किसान'का नारा हर व्यक्ति की जुबान पर था. ये नारा देने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री चाहते थे कि किसानों की जिंदगी और संघर्ष पर फिल्म बने. उनकी इस चाहत को पूरा करने का काम किया जाने-माने अभिनेता मनोज कुमार ने. आज मनोज कुमार के जन्मदिन पर जानें क्या थी ये कहानी

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Manoj Kumar Movies: PM ने कहा तो इस हीरो ने बना दी किसानों पर फिल्म, आज भी है सुपरहिटउपकार फिल्म के एक सीन में मनोज कुमार और प्रेम चोपड़ा

हिन्दी फिल्मों में एक जमाने के सुपरहिट हीरो रहे हैं, मनोज कुमार. इनका असली नाम हरिकिशन गोस्वामी था . मनोज कुमार एक सफल नायक, निर्देशक, निर्माता और स्क्रिप्टराइटर भी रहे हैं. वे अमूमन रोमांटिक फिल्मों और सस्पेंस फिल्मों के हीरो ही थे लेकिन बाद में इन्होंने देश भक्ति से ओतप्रोत कई हिट फिल्में बनायीं और ये उन फिल्मों के नायक के तौर पर इतने लोकप्रिय हुए कि लोग उन्हें ‘भारत’ नाम से ही पुकारने लगे थे.

आज मनोज कुमार 86 बसंत देख चुके हैं लेकिन हरिकिशन से मनोज कुमार और मनोज कुमार से भारत बनने का उनका सफर आज भी एक यादगार सफर है. दरअसल किशोर हरिकिशन दिलीप कुमार से बहुत प्रभावित थे. या यूं कहें कि वे दिलीप कुमार के बड़े फैन थे, तो गलत नहीं होगा. जब उन्होने फिल्म इंडस्ट्री की तरफ रुख किया तो अपना नाम बदलने के बारे में सोचा. उन्हीं दिनों दिलीप कुमार की एक फिल्म आई थी- शबनम. इस फिल्म में दिलीप कुमार का नाम था मनोज कुमार. ये नाम हरिकिशन को बहुत अच्छा लगा. बस फिर क्या था, हरिकिशन मनोज कुमार बन गए . इस नाम से उन्होने 1957 में हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और ‘वो कौन थी’, ‘गुमनाम’, ‘हिमालय की गोद में’ जैसी अनेक हिट फिल्में दीं.

जब लाल बहादुर शास्त्री ने मनोज कुमार से कहा किसानों पर फिल्म क्यों नहीं बनाते


मनोज कुमार शहीद भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे. उन्होने फिल्म ‘शहीद’ में भगत सिंह का रोल भी किया. 1965 में रिलीज़ हुई इस फिल्म को देखने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी पहुंचे. उन्हें ये फिल्म बहुत अच्छी लगी और चलते-चलते उन्होने मनोज कुमार से ज़िक्र किया कि वे देश के सैनिकों और किसानों को केंद्र में रख कर फिल्म क्यों नहीं बनाते?

ये बात मनोज कुमार के दिमाग में घर कर गयी. इसके बाद मनोज कुमार का ट्रेन से दिल्ली जाना हुआ. ट्रेन के इसी सफर में मनोज कुमार ने इस फिल्म की कहानी सोची और लिख डाली. ये कहानी उनके दिल में इतनी बैठ गयी कि उन्होंने इसे निर्देशित करने का भी फैसला कर लिया. इस तरह शुरू हुई ‘उपकार’.

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उपकार की कहानी

फिल्म की कहानी केन्द्रित है एक युवा भारत कुमार के जीवन पर. भारत कुमार गाँव का एक आदर्शवादी और उत्साही युवा है. हालात ऐसे होते हैं कि उसे अपनी पढ़ाई छोड़ कर जिम्मेदारी लेनी पड़ती है अपने छोटे भाई पूरन के लालन-पालन की. भारत उसे अच्छी शिक्षा देता है. पूरन पढ़-लिख कर शहर में अच्छी नौकरी कर लेता है लेकिन बाहरी प्रभाव में वह लालची हो जाता है.  उसे अब घर की ज़मीन में अपना हिस्सा चाहिए. चूंकि भारत ज़मीन का बंटवारा नहीं होने देना चाहता इसलिए वह पूरी ज़मीन पूरन के बेटे के नाम कर देता है. इसी बीच भारत-पाक के बीच लड़ाई छिड़ जाती है. भारत लड़ाई में भाग लेने सीमा पर चला जाता है. लड़ाई में वह अपने दोनों हाथ खो बैठता है. उधर पूरन को अपनी गलती का एहसास होता है और भारत के घर आने पर वह उससे माफी मांगता है.

आज भी यादगार है ये फिल्म

फिल्म ‘उपकार’ से मनोज कुमार ने निर्देशन भी शुरू किया और कई सफल फिल्मों का निर्देशन किया. 1967 में रिलीज़ हुई ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बहुत हिट साबित हुई. इस फिल्म ने ना सिर्फ मनोज कुमार की फिल्मी छवि को बदल दिया बल्कि अभिनेता प्राण की विलेन वाली इमेज को भी बदला . फिल्म में मनोज कुमार के किरदार का  नाम ‘भारत’ अब उनकी पहचान बन गया और अन्य अनेक फिल्मों में मनोज कुमार के किरदार का नाम ‘भारत’ ही रखा गया.

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फिल्म का संगीत दिया कल्याणजी आनंदजी ने और गीत लिखे गुलशन बावरा, इंदीवर, प्रेम धवन और क़मर जलालबादी ने. इस फिल्म ने हिन्दी को कुछ अविस्मरणीय गीत दिये.  ‘मेरे देश की धरती सोना उगले..‘ , ‘कसमें-वादे प्यार वफ़ा सब...’ उनमें से कुछ गीत हैं.

‘उपकार’ ने बहुत से राष्ट्रीय पुरस्कार जीते और मनोज कुमार को ‘भारत’ के तौर पर स्थापित कर दिया. आज भी अगर कोई देश-भक्ति की फिल्मों की बात करता है तो मनोज कुमार की ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’ और ‘क्रांति’ का ज़िक्र ज़रूर किया जाता है.

 

 

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