बकरे और बकरियों का पालन पहले सिर्फ मीट के लिए किया जाता था. क्योंकि यह किसी भी धार्मिक आस्था से नहीं जुड़े हैं, इसलिए इनका मीट खूब खाया जाता है. लेकिन अब यह दोहरा फायदा दे रहे हैं. अब बकरियों के दूध की डिमांड भी खूब आ रही है. वहीं देश के साथ-साथ विदेशों में भी बकरे के मीट की डिमांड बढ़ी है. एक्सपोर्ट के दौरान मीट में आने वाली केमिकल की परेशानियों को केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने दूर करने के लिए काफी काम किया है. यह कहना है सीआईआरजी के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली का. उन्होंने बताया कि मीट कारोबार में मंदी आने की संभावनाएं अब ना के बराबर रह गई हैं.
देश में सभी तरह के पशुओं का कुल मीट उत्पादन 37 मिलियन टन है. सबसे ज्यादा मीट उत्पादन महाराष्टा, यूपी, तेलंगाना, आंध्रा प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होता है. केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों की मानें तों देश के कुल मीट उत्पादन में बकरे और बकरियों के मीट का 14 फीसद यानि 9 मिलियन टन का योगदान है. यह आंकड़ा साल 2020-21 का है.
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किसान तक से बातचीत में मनीष कुमार चेटली ने बताया कि वैसे तो अपने इलाके के हिसाब से मौजूद बकरे और बकरियों की नस्ल पालनी चाहिए. क्योंकि वही नस्ल अच्छी तरह से ग्रोथ करेगी. लेकिन खासतौर पर मीट के लिए पसंद किए और पाले जाने बकरों की जो नस्ल हैं उसमे बरबरी, जमनापरी, जखराना, ब्लैक बंगाल, सुजोत प्रमुख रूप से हैं. इन्हें पालने से दोहरी इनकम होती है. क्योंकि बरबरी, जमनापरी और जखराना नस्ल की बकरियां दूध भी खूब देती हैं.
मनीष कुमार चेटली ने किसान तक को बताया कि अभी तक होता यह था कि एक्सपोर्ट के दौरान बकरे के मीट की केमिकल जांच होती थी. कई बार ऐसा हुआ कि मीट कंसाइनमेंट लौटकर आए हैं. यह इसलिए होता था कि बकरों को जो चारा खिलाया जाता था उसमे कहीं न कहीं पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हुआ होता था. लेकिन अब सीआईआरजी ने आर्गनिक चारा उगाना शुरू कर दिया है. इस चारे को बकरों ने भी खाया. लेकिन जब उनके मीट की जांच हुई तो वो केमिकल नहीं मिले जिनकी शिकायत पहले आती थी. इस पर हमारे संस्थान में और कई तरह की रिसर्च चल रही हैं.
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सीआईआरजी में बकरों का वजन बढ़ाने से संबंधित रिसर्च चल रही है. जीन एडिटिंग नाम की इस रिसर्च से किसी भी नस्ल के बकरे और बकरियों के जीन में एडिटिंग कर उनका वजन बढ़ाया जा सकेगा. सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट एसपी सिंह के मुताबिक अगर किसी भी नस्ल के बकरे का अधिकतम वजन 25 किलो होता है तो हमारी इस रिसर्च से उसका वजन 50 किलो यानि दोगुना हो जाएगा. अगर दोगुना नहीं भी हुआ तो 40 किलो तक तो पहुंच ही जाएगा.
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