
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी कि वह एग्रीकल्चर इंपोर्ट पर नए टैरिफ लगा सकते हैं, खासकर भारत से आने वाले चावल पर. उन्होंने भारत पर यह आरोप लगाया है कि दुनिया का सबसे बड़ा चावल एक्सपोर्टर भारत, अमेरिका में चावल की डंपिंग कर रहा है. आरोपों के बाद ट्रंप का ध्यान उस तरफ दिलाना भी जरूरी है कि जिस देश पर वह यह आरोप लगा रहे हैं उसी को उन्होंने सन् 1960 के दशक में उस समय घटिया गेहूं सप्लाई किया था जब वह लाखों भूखे लोगों को खाना खिलाने के लिए मदद की तलाश कर रहा था. साफ है कि या तो ट्रंप इतिहास को नजरअंदाज कर रहे हैं या फिर उसे स्वीकार नहीं करना चाहते हैं. लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि अनाज उत्पादन में वह आज दुनियापर निर्भर नहीं है.
चावल डंपिंग के आरोप ऐसे समय में लगे हैं जब अमेरिका और भारत एक ट्रेड डील पर बातचीत कर रहे हैं, जिसके बारे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह इसलिए अटकी हुई है क्योंकि भारत ने एग्रीकल्चर और डेयरी इंपोर्ट पर एक रेड लाइन खींच दी है. अमेरिका का दावा है कि भारत का कृषि क्षेत्र सब्सिडाइज्ड है लेकिन असल में बात इसके उलट है. डंपिंग का मतलब है कि देश अपने सरप्लस उत्पादन या प्रोडक्ट्स को बहुत कम कीमतों पर बेचते हैं, जिससे इंपोर्ट करने वाले देश को खतरा होता है.
भारत चावल डंप कर सकता है, यह आरोप अपने आप बताने के लिए काफी है कि देश के एग्रीकल्चर सेक्टर में कितना बड़ा बदलाव आया है. यह वही भारत है जो 1960 के दशक में अमेरिका से गेहूं की मदद पर निर्भर था. कई रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका ने इंसानों के खाने के लिए जानवरों के चारे वाला गेहूं भारत को सप्लाई किया था. लगभग छह दशक पहले, भारत अमेरिका के पब्लिक लॉ 480 'फूड फॉर पीस' प्रोग्राम पर बहुत ज्यादा निर्भर था. इसके तहत अमेरिका ने भारत को लाखों टन गेहूं भेजा था. भारत को सालाना 10 मिलियन टन से ज्यादा गेहूं मिलता था, जो अक्सर घटिया क्वालिटी का, लाल रंग का अमेरिकी गेहूं होता था. इसे लाल गेहूं भी कहा जाता था और जिससे सख्त, गहरे रंग की चपातियां बनती थीं.
अमेरिका ने भारत को जो खाने की मदद भेजी थी, वह न सिर्फ घटिया क्वालिटी की थी बल्कि उसमें पार्थेनियम खरपतवार के बीज भी मिले हुए थे. इसे कांग्रेस घास के नाम से जाना जाता है. लेकिन जल्द ही, भारत ने ग्रीन रेवोल्यूशन के बड़े कृषि बदलावों और पॉलिसी में बदलावों से कहानी बदल दी, और निर्भर देश से गेहूं और चावल का ग्लोबल एक्सपोर्टर बन गया. आज यह दुनिया का सबसे बड़ा चावल एक्सपोर्टर है, जो हर साल 22 मिलियन टन से ज्यादा चावल भेजता है. यह ध्यान देने वाली बात है कि इस बदलाव के साथ, अमेरिका में खाने का पैटर्न भी बदल गया है. चावल कभी अमेरिकियों के खाने में एक मामूली चीज थी लेकिन 1970 के दशक से इसका इस्तेमाल दोगुना हो गया है. भारत, जिसे कभी अमेरिका से मदद मिलती थी, अब अमेरिका को भारतीय बासमती और गैर-बासमती चावल सप्लाई करने वाले सबसे बड़े देशों में से एक है.
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