देशभर के दुधारू पशुओं में बांझपन एक बड़ी समस्या है. एक्सपर्ट के मुताबिक देशभर के करीब 30 फीसद दुधारू पशुओं में बाझंपन की परेशानी है. कई बार गाय-भैंस वक्त से बच्चा नहीं देती हैं. बच्चा नहीं होता है तो दूध भी नहीं मिलता है. लेकिन किसान को चारे पर रोजाना खर्च करना ही पड़ता है. किसान पर अतिरिक्तर खर्च बढ़ जाता है. लेकिन, अगर किसान थोड़ा सा अलर्ट हो जाए तो यह परेशानी जड़ से खत्म हो सकती है.
गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी, लुधियाना के पशु चिकित्सा स्त्री रोग और प्रसूति विभाग में देशभर के 25 साइंटिस्ट जुटे हैं. दुधारू पशुओं में बांझपन खत्म कर दिया जाए. किसान को गाय-भैंस से बच्चे के साथ-साथ वक्त से दूध मिलने लगे. वो इलाज और जागरुकता किस तरह की है और कैसे उसे किसान तक पहुंचाया जा सकता है, इसी के बारे में बात करने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. यह कार्यक्रम इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च की ओर से आयोजित किया जा रहा है.
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सेंटर ऑफ एडवांस फैकल्टी ट्रेनिंग (सीएएफटी) के निदेशक डॉ. मृगांक होनपरखे ने बताया कि एडवांस्ड इनसाइट्स ऑन थेरियोजेनोलॉजी टू अमेलियोरेट रिप्रोडक्टिव हेल्थ ऑफ डोमेस्टिक एनिमल्स" पर तीन सप्ताह का यह कार्यक्रम शुरू किया गया है. कार्यक्रम के दौरान किसानों के ध्यान रखने जो बातें उस पर भी चर्चा की जा रही है. अगर किसान चाहते हैं कि उनके पशुओं में बांझपन की समस्यान न हो तो उन्हें कुछ बातों का ख्याल रखना होगा. सबसे पहले तो यह कि बांझपन का इलाज कराने में देरी नहीं करनी चाहिए.
क्योंकि बांझपन जितना पुराना होगा तो उसके इलाज में उतनी ही परेशानी आएगी. इसलिए सही समय पर पशुओं की जांच कराएं. अगर भैंस दो से ढाई साल में हीट पर नहीं आती है तो ज्यादा से ज्यादा दो से तीन महीने ही इंतजार करें, अगर फिर भी हीट में नहीं आती है तो फौरन अपने पशु की जांच कराएं. इसी तरह से गाय के साथ है. अगर गाय डेढ़ साल में हीट पर न आए तो उसे भी दो-तीन महीने इंजार के बाद डॉक्टर से सलाह लें.
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डॉ. मृगांक ने बताया कि एक बार बच्चा देने के बाद भी बांझपन की शिकायत आती है. इसलिए अगर गाय-भैंस एक बार बच्चा देती है तो दोबारा उसे गाभिन कराने में देरी न करें. आमतौर पर पहली ब्याहत के बाद दो महीने का अंतर रखा जाता है. लेकिन इस अंतर को ज्यादा रखें. अंतर जितना ज्यादा रखा जाएगा बांझपन की परेशानी बढ़ने की संभावना उतनी ही ज्यादा हो सकती है.
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