इतिहास ने एक बार फिर करवट ली, और इस बार शुरुआत हुई मिथिला की पवित्र भूमि से. मधुबनी के मिथिला हाट में जो हुआ, वह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि जन-भागीदारी के जरिए सहकारिता की नई इबारत लिखने की शुरुआत थी. इस मौके पर भारत की पहली पाँच बहु-राज्यीय सहकारी संस्थाओं का शुभारंभ केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने किया. खास बात ये रही कि इन संस्थाओं में 50% से अधिक प्रतिनिधित्व वंचित वर्गों का है-महिलाएं, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े समुदाय अब सिर्फ भागीदार नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका में हैं.
इस पूरे अभियान की कमान संभाल रहे हैं विश्व सहकारिता आर्थिक मंच (WCOOPEF) और इसके नेता बिनोद आनंद. वे प्रधानमंत्री की MSP समिति के सदस्य भी हैं और किसानों की आवाज़ को सरकार तक पहुँचाने का काम कर रहे हैं. “यह सिर्फ सहकारिता नहीं, इतिहास को सीधा करने का प्रयास है. अब किसान खरीदार नहीं, हिस्सेदार बनेगा.”
इन पाँच सहकारी संस्थाओं का मक़सद है भारत को समावेशी और आत्मनिर्भर बनाना. आइए, एक-एक करके जानें इनकी खासियत: जहां खेती आज भी बारिश पर निर्भर है, वहाँ यह सहकारी सामूहिक जल संचयन, सूक्ष्म सिंचाई और जल न्याय का काम करेगी. यह PM Modi के LiFE मिशन (Lifestyle for Environment) को गांव-गांव तक पहुंचाएगी.
बिहार के मक्का किसान अब सिर्फ फसल नहीं बेचेंगे, बल्कि एथनॉल उत्पादन, कार्बन क्रेडिट और हरित ऊर्जा मिशन में भाग लेंगे. इससे भारत की 20% एथनॉल ब्लेंडिंग नीति में उनका सीधा योगदान होगा. यही है वास्तविक आत्मनिर्भर भारत.
GI टैग के बावजूद मखाना उगाने वाली महिलाएं अब तक पीछे थीं. अब यह सहकारी उन्हें देगी व्यापार की कमान ब्रांडिंग, प्रोसेसिंग और निर्यात तक. अब मखाना सिर्फ सुपरफूड नहीं, बल्कि महिला नेतृत्व वाली आर्थिक क्रांति का प्रतीक बनेगा.
भारत में फल और सब्जियां तो बहुत होती हैं, लेकिन एक्सपोर्ट कठिन है. यह सहकारी कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिट और एक्सपोर्ट क्लस्टर बनाएगी, जिससे किसान वैश्विक बाज़ार से जुड़ सकेंगे. पूर्वी भारत अब बागवानी निर्यात का हब बनेगा.
जहां आज भी कई गांव अंधेरे में हैं, वहां यह सहकारी सौर ऊर्जा, बायोगैस और CBG से गांवों को बनाएगी प्रोस्यूमर यानी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों. अब गांव सिर्फ रोशन नहीं होंगे, बल्कि बनेंगे ऊर्जा क्रांति के अगुआ.
यह सहकारी सिर्फ बिजली नहीं देगी, बल्कि गांवों को बनाएगी जलवायु योद्धा. यही है SDG से ESG तक, भारत की स्वदेशी छलांग.
इस ऐतिहासिक दिन पर एक और नई शुरुआत हुई-ग्रासरूट्स टू ग्रेटनेस फुटबॉल टूर्नामेंट. यह सिर्फ खेल नहीं, बल्कि गांव के बच्चों में अनुशासन, आत्मबल और नेतृत्व की भावना पैदा करने का जरिया है.
जैसा स्वामी विवेकानंद ने कहा था- “पहले शरीर को मजबूत बनाओ, आत्मा खुद रास्ता दिखाएगी.”
WCOOPEF के मनीष शांघाणी ने Campus Cooperative Campaign की शुरुआत की, जो देश के 500 कॉलेजों तक पहुंचेगा. इसका मकसद है कि युवा सिर्फ डिग्रीधारी न बने, बल्कि सामाजिक नेतृत्वकर्ता बनें.
मिथिला हाट में पाँच विषयों पर जन पंचायतें हुईं-जल, ऊर्जा, मक्का, मखाना और बागवानी. यहां हर व्यक्ति नीति का भागीदार बना. यही है Cooperative Economic Zone का असली रूप- नीति अब कागज़ पर नहीं, जनता के बीच से निकलेगी.
मिथिला से शुरू हुआ यह सहकारी आंदोलन अब पूरे देश को राह दिखाएगा. यह सिर्फ सुधार नहीं, ज़मीन पर उतरी क्रांति है. अब विकास सिर्फ कागज़ों में नहीं रहेगा-वह खेतों, गांवों और जन-मन में दिखाई देगा.
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