Independence Day 2023: आजादी के पहले भी हुए थे किसान आंदोलन, ये थीं वजह, पढ़ें पूरी लिस्ट

Independence Day 2023: आजादी के पहले भी हुए थे किसान आंदोलन, ये थीं वजह, पढ़ें पूरी लिस्ट

कहते हैं कि किसानों के नील आंदोलन की वजह से ही मोहन दास करमचंद गांधी भारत में एक बड़े नेता बनकर उभरे. खैर! इस रिपोर्ट में किसान तक उन मुख्य किसान आंदोलनों के बारे में आपको बता रहा है जिन्होंने भारत की आजादी में ना सिर्फ अपनी छाप छोड़ी बल्कि भविष्य के आंदोलनों की नींव भी डाल दी. 

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Independence Day 2023: आजादी के पहले भी हुए थे किसान आंदोलन, ये थीं वजह, पढ़ें पूरी लिस्टचंपारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी. फाइल फोटो साभार- PIB

भारत अपना 77 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. स्वतंत्रता की लड़ाई में अनगिनत लोग शहीद हुए. लाखों सेनानियों ने जेल को चुना. आजादी की यह लड़ाई कई मोर्चों पर लड़ी गई थी. इसमें किसान भी पीछे नहीं थे. कहते हैं कि किसानों के नील आंदोलन की वजह से ही मोहन दास करमचंद गांधी भारत में एक बड़े नेता बनकर उभरे. खैर! इस रिपोर्ट में किसान तक उन मुख्य किसान आंदोलनों के बारे में आपको बता रहा है जिन्होंने भारत की आजादी में ना सिर्फ अपनी छाप छोड़ी बल्कि भविष्य के आंदोलनों की नींव भी डाल दी. 

पढ़िए उन बड़े आंदोलनों के बारे में जिन्होंने देश को नई दिशा दी

1. पाबना आंदोलन (1870-80)

19वीं सदी के किसान आंदोलनों की मुख्य वजह सामंतों की व्यवस्था का विरोध था. जिनका केन्द्र आर्थिक ज्यादा था. पूर्वी बंगाल के एक बड़े हिस्से में जमींदार, गरीब किसानों के लगान और भूमि कर जबरदस्ती वसूलते थे. इस आंदोलन की जड़ में साल 1859 के अधिनियम X के तहत किसानों को अपनी भूमि पर अधिभोग के अधिकार से भी रोकना था. मई 1873 में पटना (पूर्वी बंगाल) के पाबना जिले के यूसुफशाही परगना में एक कृषि लीग का गठन किया गया.

इस लीग ने यहां कई हड़तालें कीं. किसानों ने आपस में पैसा जमा किया और पूरे संघर्ष को पटना और पूर्वी बंगाल के अन्य ज़िलों में फैला दिया. हालांकि यह पूरी तरह कानूनी लड़ाई थी, लेकिन इसमें कुछ जगहों पर हिंसा भी हुई. पाबना का आंदोलन साल 1885 तक जारी रहा. इसके बाद सरकार ने बंगाल काश्तकारी अधिनियम से अधिभोग अधिकारों में बढ़ोतरी कर दी. तब यह आंदोलन खत्म हो गया. बताते हैं कि इस आंदोलन को बंकिम चंद्र चटर्जी, आर.सी. दत्त और सुरेंद्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में इंडियन एसोसिएशन का समर्थन प्राप्त था.

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2. दक्कन विद्रोह (1875)

दक्कन का विद्रोह मारवाड़ी और गुजराती साहूकारों के खिलाफ था. दक्कन में किसान विद्रोह की जड़ में रैयतवाड़ी व्यवस्था थी. इस व्यवस्था में रैयतों पर भारी टैक्स लाद दिए गए थे. साल 1867 में भू-राजस्व में भी 50 फीसदी की बढ़ोतरी की. इसीलिए इस व्यवस्था के खिलाफ किसानों में असंतोष पनपा.

इसीलिए 1874 में रैयतों ने साहूकारों के खिलाफ एक सामाजिक बहिष्कार आंदोलन कर दिया. किसानों ने साहूकारों की दुकानों से सामान खरीदने और खेतों में खेती करने से मना कर दिया. वहीं, समाज के अन्य वर्गों जैसे नाइयों, धोबी और मोचियों ने साहूकारों की सेवा से मना कर दिया.

धीरे-धीरे यह सामाजिक बहिष्कार पूना, अहमदनगर, सोलापुर और सतारा के गांवों में फैल गया. साहूकारों के घरों एवं दुकानों पर हमलों के साथ कृषि विद्रोहों में बदल गया. हालांकि अंग्रेजी सरकार इस आंदोलन को दबाने में सफल रही. सुलह के लिए सरकार ने 1879 में दक्कन कृषक राहत अधिनियम पारित किया. 

3. चंपारण सत्याग्रह (1917)

महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में एक सफल आंदोलन कर के 1915 में वापस लौटे थे. बिहार के चंपारण में गांधीजी का यह आंदोलन भारतीय राजनीति में उनके उदय का मुख्य कारण बना. दरअसल, बिहार के चंपारण जिले में नील के बागानों में यूरोपीय बागान मालिक किसानों का भारी उत्पीड़न कर रहे थे. उन्हें अपनी ज़मीन के कम-से-कम 3/20वें हिस्से पर नील उगाने तथा बागान मालिकों द्वारा निर्धारित कीमतों पर नील बेचने के लिये मज़बूर किया जाता था. 

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इसके बाद 1917 में महात्मा गांधी चंपारण पहुंचे और किसानों का समर्थन किया. उन्होंने चंपारण छोड़ने के जिला अधिकारी के आदेश को तोड़ दिया. इसके बाद अंग्रेजी सरकार ने जून 1917 में एक जांच समिति बनाई. इसमें महात्मा गांधी सदस्य थे. आखिरकार चंपारण कृषि अधिनियम, 1918 में किसानों को नील बागान मालिकों ने उन विशेष नियमों से मुक्त कर दिया. 

4. खेड़ा सत्याग्रह (1918)

साल 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की फसलें खराब हो गईं, लेकिन किसानों की मांग के बावजूद सरकार ने भू-राजस्व माफ करने से मना कर दिया. इसीलिए किसानों ने सरकार के खिलाफ सत्याग्रह शुरू कर दिया. इस सत्याग्रह को सरदार वल्लभ भाई पटेल और महात्मा गांधी का समर्थन था. इन नेताओं ने किसानों को राजस्व नहीं देने की बात पर अड़े रहने के लिए कहा. खेड़ा में किसानों का सत्याग्रह 1918 तक चला. आखिरकार सरकार ने किसानों की मांगें मान लीं. 

खेड़ा आंदोलन गुलाम भारत के बड़े किसान आंदोलनों में शुमार है.

5. बारदोली सत्याग्रह (1928)

गुजरात के बारदोली जिले में अंग्रेज सरकार ने भू-राजस्व में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी. इसके बाद वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में किसानों ने राजस्व ना देने के लिए आंदोलन की शुरूआत कर दी. बारदोली में ही एक महिला ने वल्लभ भाई को सरदार की उपाधि दी. आंदोलन में बड़े पैमाने पर मवेशियों और ज़मीन की कुर्की की गई.

इसे अंग्रेजों ने दबाने की कोशिश की, लेकिन सरकार इसमें असफल हो गई. इसके बाद एक सरकार ने जांच समिति बनाई. इसकी जांच रिपोर्ट में पाया गया कि भू-राजस्व में बढ़ोतरी करना सही नहीं था. बाद में अंग्रेजों ने इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया. 
 

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