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चुनाव में राजनीति‍क दल क‍िसानों को क्यों MSP से अध‍िक देने का वादा कर रहे, क्या बदल रही है एग्री 'पॉल‍िट‍िक्स'   

चुनाव में राजनीति‍क दल क‍िसानों को क्यों MSP से अध‍िक देने का वादा कर रहे, क्या बदल रही है एग्री 'पॉल‍िट‍िक्स'   

पांच राज्यों के व‍िधानसभा चुनाव में राजनीत‍िक दलों ने MSP पर बोनस देने का वादा क‍िया है. राजनीत‍िक दलों की तरफ से क‍िसानों से ये वादा तब क‍िया गया है, जब देश के 14 फीसदी क‍िसानों को MSP का लाभ म‍िल पाता है.

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MSP पर बोनस के वादे से क‍िसानेां की क‍ितनी बदलेगी दशा MSP पर बोनस के वादे से क‍िसानेां की क‍ितनी बदलेगी दशा

देश में लोकसभा चुनाव का माहौल बनना शुरू हो गया है. पांच राज्यों के व‍िधानसभा चुनावों का पर‍िणाम मतपेट‍ियों में बंद हो चुका है, ज‍िसका ताला 3 द‍िसंबर को खुलना है, लेक‍िन लोकसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल माने जा रहे 5 राज्यों के व‍िधानसभा चुनावों ने देश का राजनीत‍िक और आर्थ‍िक नजर‍िया बदलने की तरफ इशारा क‍िया है. इन व‍िधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने क‍िसानों को लुभाने के ल‍िए फसलों की MSP पर खरीद में बोनस देने का वादा क‍िया है. 

बेशक 5 राज्यों के व‍िधानसभा चुनाव में राजनीत‍िक दलों की तरफ से क‍िसानों को फसलों का दाम MSP से अध‍िक देने के ये वादा लोकसभा चुनाव 2024 के ल‍िए एक नया खाका तैयार कर रहा है, लेक‍िन सवाल ये भी आख‍िर इन चुनाव में राजनीत‍िक दल क‍िसानों को MSP से अध‍िक देने का वादा क्यों कर रहे हैं. ये और तब हो रहा है, जब देश में लंबे समय से इकोनॉम‍िक्स क‍िसानों को सीधे लाभ पहुंचाने के बजाय उससे जुड़े सेक्टरों की मजबूती की वकालत पर जोर देते रहे हैं. तो वहीं महंगाई कम करने के ल‍िए कृषि‍ उत्पादों के दाम न‍ियंत्र‍ित करने की स‍िफार‍िश करते रहे हैं, ज‍िस वजह से कई दशकों से क‍िसान नुकसान में हैं.  

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वहीं राजनीत‍िक दलों के इन वादों के बाद देश के कई इकोनॉम‍िस्ट ये सवाल कर रहे हैं क‍ि इन वादों की पूर्त‍ि के ल‍िए फंड की व्यवस्था कैसे होगी. हालांक‍ि फंड की उपलब्धता के पक्ष और व‍िपक्ष के इतर इस बात पर भी चर्चा है क‍ि राजनीत‍िक दलों के इन वादों के बाद क्या देश की एग्रीकल्चर इकोनॉमी और पॉल‍िटि‍क्स की द‍िशा बदलनी शुरू हो गई है. 

व‍िधानसभा चुनाव में क‍िसानों के साथ राजनीत‍िक दलों के वादे 

 पांच राज्यों का व‍िधानसभा चुनाव प्रमुखता के साथ क‍िसानों के मुद्दोंं पर लड़ा गया है. इन राज्यों में राजनीत‍िक दलों ने चुनाव से पहले अपने घोषणा पत्रों में क‍िसानों के ल‍िए कई तरह के वादे क‍िए हैं. इन वादों की पड़ताल की जाए तो राजनीत‍िक दलों ने इन चुनाव में MSP पर बोनस के वादे के साथ क‍िसानों की जेब में सीधे ज्यादा पैसे डालने की बात कही है. 

हालांक‍ि छत्तीसगढ़ में पहले से ही कांग्रेस सरकार धान 2,640 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीद कर रही है, जो मौजूदा साल के घोष‍ित MSP 2,183 रुपये से अध‍िक है, लेक‍िन चुनाव से पहले कांग्रेस ने धान MSP पर बोनस समेत 3,200 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल खरीदने का वादा क‍िसानोंं से क‍िया है. वहीं बीजेपी ने भी क‍िसानों से 3,100 रुपये प्रति क्विंटल पर धान खरीदने का वादा क‍िया है. 

इसके साथ ही कांग्रेस ने एक एकड़ से कम से कम 20 क्व‍िंटल और बीजेपी ने 21 क्व‍िंटल धान खरीदने का वादा भी क‍िसानों से क‍िया है. सीधी सी बात है क‍ि अब क‍िसी भी राजनीत‍िक दल की सरकार छत्तीसगढ़ में बने, लेक‍िन एक एकड़ वाले क‍िसानों को धान बेचने पर कम से कम 64,000 रुपये तो म‍िलेंगे ही. 

इसी तरह मध्य प्रदेश में भी MSP पर बोनस देने का वादा क‍िसानों से राजनीति‍क दलों ने क‍िया है. पहले कांग्रेस ने गेहूं 2600 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल खरीदने का वादा क‍िसानों से क‍िया तो वहीं इसके बाद बीजेपी 2700 रुपये क्व‍िंटल गेहूं खरीदने का वादा क‍िसानों से क‍िया है, जो MSP से अध‍िक है. इसी तरह राजस्थान में कांग्रेस ने MSP गारंटी कानून बनाने का वादा क‍िया है तो राजस्थान ने गेहूं की MSP पर खरीद में बोनस देने का वादा क‍िया है.

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वहीं तेलंगाना में बीआरएस ने इनपुट सब्स‍िडी को 10 हजार सालाना से बढ़ाकर 16 हजार करने और कांग्रेस ने 15 हजार रुपये सालाना क‍िसानों को देने का वादा क‍िया है. कुल म‍िलाकर इन व‍िधानसभा चुनाव में राजनीत‍िक दलों ने क‍िसानों को सीधे फायदा पहुंचाने का वादा क‍िया है, जो लंबे समय से चले रहे इकोनॉमिस्ट के पैमाने से इतर है. 

MSP पर बोनस का वादा, स्वामीनाथन की C2+50 की स‍िफार‍िशों से 'ज्यादा' 

पांच राज्यों के व‍िधानसभा चुनाव में राजनीत‍िक दलों ने MSP पर बोनस देने का वादा क‍िया है. राजनीत‍िक दलों की तरफ से क‍िसानों से ये वादा तब क‍िया गया है, जब देश के 14 फीसदी क‍िसानों को MSP का लाभ म‍िल पाता है और तीन कृष‍ि कानूनों के ख‍िलाफ हुए क‍िसान आंदाेलन के बाद क‍िसान देश में MSP गारंटी कानून बनाने के साथ ही फसलाें के दाम स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार C2+50 फार्मूले से तय करने की मांग कर रहे हैं. ज‍िसमें फसलों की लागत से 50 फीसदी अध‍िक दाम MSP के तौर पर देने की स‍िफार‍िश की गई है.

यहां पर ये बात जानने की जरूरत है क‍ि देश में मौजूदा वक्त पर फसलों का MSP A2+FL फार्मूले के तहत तय होता है, लेक‍िन पांच राज्यों के व‍िधानसभा चुनाव में राजनीति‍क दलों ने फसलों की MSP पर बोनस देने का वादा क‍िया है, बोनस के बाद अगर वादे के अनुसार फसल का दाम क‍िसानों को म‍िलता है तो उसे स्वामीनाथ कमेटी की सि‍फार‍िशों के अनुरूप माना जा रहा है, जो क‍िसानों के ल‍िए शुभ संकेत है. 

OECD की र‍िपोर्ट, भारतीय क‍िसानों पर टैक्स और राजनीत‍िक वादा 

चुनावों में राजनीत‍िक दलों की तरफ से क‍िसानों के साथ क‍िए गए वादे की आगे पड़ताल से पहले OECD की हाल‍िया र‍िपोर्ट पर चर्चा करने की जरूरत जान पड़ती है. असल में इन चुनावों में राजनीत‍िक दलों ने क‍िसानों को मजबूत करने के ल‍िए MSP पर बोनस देने का वादा उस समय क‍िया है, जब भारत का क‍िसान और कृष‍ि सेक्टर उस सांचे से बाहर न‍िकलने की काेश‍िश कर रहा है, जि‍सकी ग‍िरफ्त में रहते हुए देश के अंदर क‍िसान खेती छोड़ने को मजबूर हैं. इसकी तस्दीक दुनिया के सबसे अमीर व्यापारिक समूह, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के एक हाल‍िया जारी र‍िपोर्ट करती है.

OECD की र‍िपोर्ट कहती है क‍ि भारतीय क‍िसानों पर साल 2000 से टैक्स लगाया जा रहा है, ज‍िसे मौजूदा कृष‍ि संकट का कारण माना जा रहा है. वहीं ये 54 देशों में अध्ययन की गई ये र‍िपोर्ट बताती है क‍ि इस वजह से कई देश के क‍िसानों का व‍िकास नेगेट‍िव रेट पर है. वहीं ये र‍िपोर्ट ये भी कहती है क‍ि इन देशों में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है, जहां बजट के माध्यम से क‍िसानों का नुकसान कम करने के कोई प्रयास नहीं क‍िए हैं, ज‍िसके मायने ये हैं भारतीय क‍िसानों को वक्त के साथ लड़ने के ल‍िए छोड़ द‍िया गया. नतीजतन बीते 20 सालों से भारतीय क‍िसान घाटे की फसल काट रहे हैं. 

फसलों की MSP पर बोनस और इकोनॉमि‍स्ट का पक्ष-व‍िपक्ष      

राजनीत‍िक दलों की तरफ से क‍िसानों को MSP पर बोनस देने के वादे के बाद देश और दुन‍िया के इकोनॉम‍िस्टों के दो पक्षों में बंट गए हैं, ज‍िसमें पक्ष और व‍िपक्ष है. असल में लंबे से देश और दुन‍िया के आर्थ‍िक व‍िश्लेषक व‍िकास के पैमाने को महंगाई को कम करने के प्रयासों के पैमाने से तौल रहे हैं, ज‍िसके तहत कई दशकाें से कृष‍ि उत्पादों की कीमतों को कम करने के सुझाव इकोनाॅम‍िस्ट की तरफ से आते हैं और सरकारें इस पर अमल लेती रही हैं. नतीजतन, क‍िसानों को उनकी फसल का वाजि‍ब दाम भी नहीं म‍िल पाता है तो वहीं सब्स‍िडी का लाभ भी क‍िसानों को नहीं म‍िल पाता है.

वहीं पांच राज्यों के व‍िधानसभा चुनाव में राजनीत‍िक दलों के MSP पर बोनस के वादे ने देश और दुन‍िया के इकोनॉम‍िस्ट को एक बार फ‍िर से काम पर लग द‍िया है, जो इस बात की च‍िंता पर हैं क‍ि सरकार कैसे क‍िसानों के ल‍िए अत‍िर‍िक्त बजट की व्यवस्था करेगी और क्या MSP पर बोनस देने के वादे से महंगाई बढ़ेगी. वहीं राजनीति‍क दलों के इस वादे के पक्ष में भी कई लोग हैं. राजनीत‍िक दलों के MSP पर बोनस देने के वादे का समर्थन करते हुए और इस वादे का व‍िरोध कर रहे इकोनॉम‍िस्टों को आइना द‍िखाने की कोश‍िश कृष‍ि व‍िशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने की है.

 उन्होंने अंग्रेजी अखबार ट्र‍िब्यून मेंं इस पर एक लंबा लेख ल‍िखा है, ज‍िसमें उन्होंने ऐसे इकोनॉम‍िस्ट की मलानत की है. उन्होंने कहा है क‍ि  1970 और 1980 के दशक की शुरुआत में प्रशिक्षित आज के अधिकांश मुख्यधारा के अर्थशास्त्री पूर्वकल्पित विचारों और सिद्धांतों के साथ आते हैं. उन्होंने मरहूम मशहूर इकोनॉम‍िस्ट गैलब्रेथ के हवाले से ल‍िखा है...  

 "मुख्यधारा के इकोनॉम‍िस्ट को शायद अपनी मूल मान्यताओं की फिर से जांच करनी चाहिए, या शायद हमें पूरी तरह से एक नई 'मुख्यधारा' की आवश्यकता है"

'10 साल में 15 लाख करोड़ का कॉपार्रेट कर्ज हुआ माफ'

क‍िसानों को MSP पर बोनस देने के वादे का व‍िरोध कर रहे इकोनॉम‍िस्टों को आईना दि‍खाने की कोश‍िश करते हुए कृष‍ि व‍िशेषज्ञ देवेंदर शर्मा कहते हैं क‍ि कई इकोनॉम‍िस्ट ये भी पूछ रहे हैं क‍ि क‍िसानों के ल‍िए की गई घोषणाओं के ल‍िए अतिरिक्त संसाधन कहां से आएंगे. ये चर्चा आने वाले द‍िनों में अध‍िक तेज होगी, लेक‍िन ये भी सोचना होगा क‍ि इसी आर्थ‍िक पैमाने पर बीते 10 सालों में लगभग 15 लाख करोड़ रुपये के कॉर्पोरेट कर्ज माफ क‍िया गया और जानबूझकर कर्ज ना चुकाने वाले 16 हजार कॉरर्पोट का कर्जा माफ क‍िया गया. उस समय इकोनाॅ‍म‍िस्ट मौन रहे हैं.