पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र आज गंभीर जल संकट की चपेट में हैं. भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, जिससे न केवल खेती प्रभावित हो रही है, बल्कि भविष्य की जल सुरक्षा भी खतरे में है. जल-गहन फसलें, पारंपरिक सिंचाई पद्धतियां, मुफ्त बिजली जैसी नीतियां और जागरूकता की कमी ये सब इस संकट के मूल कारण हैं. लेकिन यह स्थिति अपरिवर्तनीय नहीं है. अगर हम ठोस कदम उठाएं, तो इस संकट को अवसर में बदला जा सकता है.जल प्रबंधन केवल प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नीतिगत सुधारों और सामुदायिक मानसिकता में परिवर्तन से ही वास्तविक रूप से सफल हो सकता है. जल संकट का समाधान केवल पानी बचाने या नए संसाधन खोजने से नहीं होगा, बल्कि सरकारों को मजबूत नीतियां बनानी होंगी और लोगों को पानी के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी.
फसल विविधीकरण किसानों के लिए अधिक स्थिरता और जल संरक्षण के लिए अहम है, लेकिन यह तब तक पूरी तरह सफल नहीं हो सकता जब तक किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और मजबूत बाजार समर्थन का आश्वासन न मिले. धान और गेहूं जैसे जल-गहन फसलों के स्थान पर कम पानी वाली फसलें जैसे मक्का, बाजरा, दालें, सूरजमुखी और सोयाबीन को बढ़ावा देना चाहिए. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) जैसे संस्थानों ने कम पानी में उगने वाली नई किस्मों की पहचान की है. फसल विविधीकरण को न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP), बीमा और विपणन सहायता से जोड़ा जाए ताकि किसानों को आर्थिक सुरक्षा महसूस हो. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (2022) ने एक अध्ययन में पाया कि हरियाणा के करनाल जिले में एक पायलट परियोजना के तहत धान की जगह मक्का और मूंग की खेती करने वाले किसानों की जल उपयोग में 40 फीसदी तक कमी देखी गई.
पारंपरिक खुली और बहाव सिंचाई से 30-50 फीसदी पानी बर्बाद होता है. इसके स्थान पर ड्रिप या स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करने से पानी की 40-60 फीसदी तक बचत होती है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY ) के तहत किसानों को सब्सिडी दी जाती है, लेकिन इसकी पहुंच सीमित है. इस योजना को और अधिक सरल व सुलभ बनाना होगा. केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB ) के अनुसार, ड्रिप इरिगेशन अपनाने से एक हेक्टेयर भूमि पर औसतन 12 लाख लीटर पानी की बचत हो सकती है. ग्राम पंचायत स्तर पर चेक डैम, खेत तालाब, जल कुंड आदि का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि मानसूनी जल भूजल स्तर में पुनर्भरण हो सके. पूराने तालाबों को जो पहले गांव में थे उनके अतिक्रमण को हटाना होगा और स्कूलों, पंचायत भवनों और सरकारी इमारतों में रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य किया जाए. उदाहरण के तौर पर पानी बचाओ, पैसा कमाओ योजना (पंजाब) के तहत 200 गांवों में वर्षा जल संग्रहण संरचनाओं के निर्माण से भूजल स्तर में 1.5 मीटर तक सुधार देखा गया.
सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली की नीति, जो कई राज्यों में प्रचलित है, भले ही किसानों को तत्काल राहत देती हो, लेकिन यह लंबे वक्त में कई गंभीर चुनौतियां पैदा करती है. यह भूजल के अत्यधिक दोहन, ऊर्जा की बर्बादी और राज्य के वित्त पर भारी बोझ का कारण बनती है. इसकी जगह, स्मार्ट समाधानों को अपनाना समय की मांग है. पारंपरिक रूप से, मुफ्त बिजली ने किसानों को पानी की उपलब्धता की परवाह किए बिना अपनी फसलों की सिंचाई करने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिससे भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आई है. यह न केवल पानी की कमी को बढ़ा रहा है, बल्कि पंपिंग की लागत भी बढ़ा रहा है, क्योंकि किसानों को पानी निकालने के लिए गहरी बोरवेल खोदने पड़ रहे हैं. किसान प्रशिक्षण शिविरों, मोबाइल एप्स और गांवों में लाइव डेमो प्लॉट्स के माध्यम से जल प्रबंधन की व्यावहारिक जानकारी दी जाए और किसान उत्पादक संगठन (FPOs) को जल उपयोग दक्षता, जल संरक्षण विधियों और फसल योजना बनाने में प्रशिक्षित किया जाए. मुफ्त बिजली की नीति की पुनः समीक्षा की जानी चाहिए. इसके स्थान पर सीमित समय की बिजली आपूर्ति और स्मार्ट मीटर की व्यवस्था लागू की जा सकती है.
सोलर पंप और वाटर लेवल सेंसर जैसे उपकरणों को बढ़ावा देकर सिंचाई को स्मार्ट और टिकाऊ बनाया जा सकता है. प्रत्येक गांव/ब्लॉक में जल समितियों का गठन कर भूजल उपयोग पर निगरानी और दिशा-निर्देश लागू किए जाएं. इसका राजस्थान के अलवर जिले में तरुण भारत संघ के नेतृत्व में गांवों ने सामूहिक प्रयासों से 80 से अधिक तालाब पुनर्जीवित किए, जिससे भूजल स्तर में 3-4 मीटर तक सुधार हुआ. विज्ञान, नीति और समाज मिलकर जल संकट का समाधान करें. यह केवल तकनीकी या आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि हमारी सोच और व्यवहार में बदलाव की चुनौती भी है. सरकार, वैज्ञानिक संस्थान, पंचायतें और स्वयं किसान सभी को मिलकर स्थानीय समाधान, व्यवहारिक रणनीतियों और तकनीकी नवाचारों को अपनाना होगा. यदि हम आज नहीं चेते, तो कल बहुत देर हो चुकी होगी.
लेखक: डॉ. रणवीर सिंह (ग्रामीण विकास, पशुपालन और नीति निर्माण प्रबंधन में चार दशकों का अनुभव)
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