यूएस प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को दावा करते हुए कहा कि अमेरिका और भारत के बीच जल्द ही बहुत बड़ा व्यापार समझौता होने जा रहा है. दोनों देशों में पिछले कुछ महीनों से लगातार बातचीत चल रही है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिले और दोनों देशों के ज्यादा से ज्यादा हित सध सकें. लेकिन, केंद्र सरकार इस डील में अमेरिका को भारत के कृषि-डेयरी सेक्टर और ऑटोमोबाइल सेक्टर में ज्यादा जगह नहीं देना चाहती है. यही वजह है कि लंबे समय से इस पर बातचीत चल रही है और यह फाइनल नहीं हो पा रही है. इस डील में डेयरी उत्पादों को लेकर भी मामला अटका हुआ है. अमेरिका भारत में डेयरी उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए कुछ नियमों में बदलाव और छूट चाहता है, लेकिन भारत भी इस बात पर अडिग है कि वह इन शर्तों से समझौता नहीं कर सकता. आइए जानते हैं आखिर माजरा क्या है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका भारत में गाय के दूध से बने उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा बेचना चाहता है, ताकि उसके व्यापार का दायरा बढ़े और ज्यादा मुनाफा हो. अभी यह काफी हद तक सीमित है और अमेरिका निर्यात की लिमिट को बढ़ाना चाहता है. लेकिन, भारत ने डेयरी उत्पादों के आयात पर नॉन टैरिफ बैरियर्स (NTBs) टेक्निकल बैरियर्स टू ट्रेड (TBT) लगाए हैं. भारत ने शर्त रखी है कि गाय के दूध से बने उत्पाद भेजने के लिए किसी भी देश को इस बात का प्रमाण देना होगा कि उनके यहां गायों को ब्लड मील (जानवरों के खून से बना प्रोटीन सप्लीमेंट) या मांसाहार आधारित आहार (चारा) खिलाकर नहीं पाला जाता.
वैसे तो गाय एक शाकाहारी प्राणी है, लेकिन अमेरिका में गायों को इस तरह के मांसाहारी आहार देने के मामले सामने आ चुके हैं. यही वजह है कि भारत इसमें कोई रिस्क नहीं लेना चाहता. अमेरिका जहां इस नियम में ढील चाहता है तो वहीं भारत में गाय और शाकाहार को लेकर धार्मिक-सांस्कृतिक और खाद्य सुरक्षा से जुड़ी मान्यताएं महत्वपूर्ण हैं. यही वजह है कि भारत सरकार इसमें कोई ढिलाई नहीं बरतना चाहती है. भारत ने ट्रेड डील में जरूरी भूमिका निभाने वाली बॉडी विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सामने भी इस पक्ष को रखा है.
अमेरिका भारत में अपने कृषि उत्पादों की झड़ी लगाने के लिए भी खासा आतुर है. इसमें मुख्य तौर पर वह सोयाबीन, मक्का के निर्यात पर शुल्क में भारी छूट चाहता है. लेकिन केंद्र सीधे तौर पर इससे बच रहा है, क्योंकि इससे भारत के किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा. भारत अपने पक्ष में हर हाल में इसमें अमेरिका को एंट्री नहीं देने की कोशिश में है. मालूम हो कि देश में पहले से ही किसानों को सोयाबीन पर एमएसपी से नीचे दाम होने के चलते नुकसान उठाना पड़ रहा है.
वहीं, अमेरिका में उत्पादन बढ़ाने के लिए जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसलों की खेती की अनुमति है और वहां होने वाली ज्यादातर सोयाबीन और मक्का फसलें जेनेटिकली मोडिफाइड ही हैं. लेकिन, भारत का साफ मानना रहा है कि वह देश में जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) कृषि उत्पाद नहीं आने देगा. हालांकि, अपवाद स्वरूप भारत में BT Cotton की खेती को मंजूरी दी गई है, जो एक जीएम फसल है.
डोनाल्ड ट्रंप ने सभी देशों के सामने यूएस के साथ 9 जुलाई तक नई ट्रेड डील फाइनल करने की डेडलाइन रखी है. ट्रंप के बयान के अनुसार, अगर कोई देश इस तारीख तक ऐसा नहीं करता है तो वह अमेरिका की तरफ से रेसिप्रोकल टैरिफ झेलेगा यानी जितना शुल्क कोई देश अमेरिका पर लगाते हैं, अमेरिका भी उन पर उतना ही शुल्क लगाएगा. हालांकि, केंद्रीय वाणिज्य मंत्री ने पहले बयान दिया था कि भारत जल्दबाजी में कोई डील नहीं करेगा. यह डील संतुलित होगी और इसमें देश के हितों का ध्यान रखा जाएगा.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, आर्थिक थिंक- टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका के साथ कोई भी व्यापार समझौता राजनीति से प्रेरित या एकतरफा नहीं होना चाहिए और भारत को अपने किसानों, डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र और नीतिगत स्थान की रक्षा करनी चाहिए.
जीटीआरआई ने कहा कि वाशिंगटन डीसी में भारत के मुख्य व्यापार वार्ताकार और समय की टिक-टिक के साथ, अगले कुछ दिन यह निर्धारित कर सकते हैं कि भारत और अमेरिका सीमित मिनी-डील के लिए समझौता करते हैं या कम से कम अभी के लिए वार्ता की मेज से दूर चले जाते हैं.
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