देश के कई मुख्यमंत्री राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में अपने उपनामों को लेकर बेहद ही लोकप्रिय हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने समर्थकों के बीच मामा के नाम से चर्चित हैं. तो वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को काका के नाम से पुकारा जाता है. इसी तरह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजनीति में जादूगर कहा जाता है, लेकिन अशोक गहलोत इन दोनों अपने जादूगर वाले नाम की महिमा को तोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसके तहत वह अब गारंटी वाले मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी नई इमेज गढ़ रहे हैं.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने कार्यकाल के आखिरी साल में जिस तरीके से कई गारंटीवाली योजनाएं बनाई हैं, वह भारतीय राजनीति में उनकी गारंटी वाली मुख्यमंत्री की इमेज गढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं.
इसी अंदाज में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनावी वैतरणी पार करने के लिए राजस्थान में मतदान से ठीक कुछ दिन पहले MSP गारंटी कानून बनाने का वादा किया है. गहलोत के इस वादे के बाद कई तरह के सवाल राजनीति के आसमान में बादलों की तरह उभर कर आने लगे हैं, जिसमें बड़े सवाल ये ही हैं कि MSP गारंटी कानून बनाने का वादा क्या गहलोत का चुनावी स्टंंट है.
ये भी पढ़ें-क्लाइमेट चेंज क्या आलू को निगल जाएगा? वैज्ञानिक जंगल की खाक छान चुके हैं
चुनाव से ठीक पहले MSP गारंटी का वादा गहलोत ने आखिर क्यों किया. सवाल ये भी है कि MSP गारंटी कानून बनाने का अधिकार तो केंद्र के पास है तो राज्य सरकार कैसे MSP गारंटी कानून बना सकती है और सवाल ये भी है कि अगर MSP गारंटी कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है तो क्या गहलोत का ये वादा लोकसभा चुनाव से पहले अन्य राज्य सरकारों को MSP गारंटी कानून पारित करने का दबाब बनाने में सफल रहेगा.
MSP को लेकर अशोक गहलोत की गारंटी और इससे अन्य राज्य सरकारों पर कितना दबाब पड़ेगा, इस पर ये पूरी चर्चा है, लेकिन जरूरी ये है कि पहले MSP और MSP गारंटी कानून के फर्क को समझा जाए. मौजूदा समय में MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कुल 23 फसलों की खरीद होती है, जिसमें गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा, सरसों, चना, कपास जैसी फसलें शामिल हैं.
कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कास्ट एंड प्राइस यानी CACP की सिफारिशों पर केंद्र सरकार इन फसलाें का MSP प्रत्येक साल रिवाइज करती है. वहीं MSP पर फसलों की खरीद के लिए राज्य सरकार नोडल एजेंसियों के तौर पर काम करती हैं. इसके लिए राज्य सरकार प्रत्येक खरीद वर्ष में खरीद केंद्र स्थापित करती हैं.
बेशक, MSP पर 23 फसलें खरीदने का प्रावाधान हैं, लेकिन कई राज्यों की तरफ से गेहूं और धान की खरीद को ही अधिक तवज्जो दी जाती है. तो कई फसलों की खरीद कुल उत्पादन के 25 फीसदी तक ही होती है.
ये भी पढ़ें- पंजाब में धान की खेती पर बैन! SC के इस इशारे से क्या आधी आबादी को आधा पेट सोना पड़ेगा
तो वहीं कई राज्यों में गेहूं और धान की भी MSP पर भी ठीक से खरीद नहीं होती है. ऐसे में किसानों को कई फसलों का घोषित MSP भी नहीं मिल पाता है. किसान MSP से कम भाव में फसल बेचते हैं. यहीं से शुरु होती MSP गारंटी की मांग...
MSP पर फसल खरीद की इस व्यवस्था के चलते देश के किसान कई सालों से MSP से भी कम भाव में फसल बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में किसानों को नुकसान भी उठना पड़ता है. किसानों की इस परेशानी के समाधान के तौर पर MSP गारंटी कानून बनाने की मांग कई सालों से की जा रही है.
कई किसान संगठन ये मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार MSP गारंटी कानून बनाए और इससे नीचे फसल खरीदने वाले के लिए सजा का प्रावधान किया जाए. किसान संगठनों का कहना है कि बेशक सरकार फसलों की खरीद नहीं करे, लेकिन MSP का भाव कानून गारंटी हो जाएगा तो इससे किसान बाजार में गारंटीशुदा भाव से अपनी फसल बेच सकेंगे. किसानों की इस मांग ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन के बाद और तेजी पकड़ी है.
बेशक MSP गारंटी कानून की मांग ने किसान आंदोलन के बाद तेजी पकड़ी है. जिसके बाद कांग्रेस ने अपने रायपुर में सपन्न हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में MSP गारंटी कानून को एजेंडे में शामिल भी किया, लेकिन इसके बाद भी लंबे समय तक MSP गारंटी का मुद्दा राजनीतिक बहसों और सरकारों की कागजों से गायब रहा.
छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन दाेनों की राज्य सरकारों ने MSP गारंटी कानून के मुद्दे को हवा नहीं दी. वहीं 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के युद्ध क्षेत्र में भी मध्य प्रदेश में मतदान होने तक MSP गारंटी का मुद्दा चुनावी चर्चा से गायब रहा.
मसलन, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी और गेहूं ओर धान की MSP पर खरीद में बोनस देने के वादे को अपने चुनावी घोषणा पत्र में तवज्जो दी. तो वहीं बीजेपी भी MSP पर कांग्रेस से अधिक बोनस देने के वादे के साथ मध्य प्रदेश के चुनावी युद्ध में रही.
इसी तरह बीजेपी ने राजस्थान में भी अपने घोषणापत्र में गेहूं की MSP पर खरीद करने में अधिक बोनस देने का वादा किया, यहीं से लोकसभा का सेमीफाइनल माने जा रहे चुनावों में MSP गारंटी कानून की एंट्री हुई.
जिसके तहत अशोक गहलोत ने बीजेपी के MSP पर बोनस के वादे की काट खोजते हुए MSP गारंटी कानून बनाने का वादा किया है और राजस्थान कांग्रेस ने इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह दी.
गहलोत की MSP गारंटी सिर्फ एक चुनावी स्टंंट है क्या... ये सवाल इस वक्त बड़े स्तर पर चुनावी आसमान में गोते लगा रहा है. ये सवाल इसलिए ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि लंबे समय से किसान संगठनों की तरफ से केंद्र सरकार से MSP गारंटी कानून बनाने की मांग की जा रही है. ऐसे में जब केंद्र सरकार ही MSP गारंटी कानून बना सकती है तो गहलोत ने राजस्थान के किसानों से ये वादा कैसे किया.
MSP गारंटी को लेकर लंबे समय से काम कर रहे और MSP गारंटी पर किताब लिख चुके किसान नेता रामपाल जाट इसका जवाब देते हैं.
चुनाव से ठीक पहले गहलोत की MSP गांरटी से सहमति जताते हुए कांग्रेस की सदस्यता लेने वाले रामपाल जाट इसकी पूरी संवैधानिक कहानी बताते हुए कहते हैं कि संविधान में MSP को लेकर किसी भी तरह का जिक्र नहीं किया है.
वह कहते हैं कि साल 1965 में झा कमेटी ने फसलों का MSP देने के साथ ही MSP गारंटी कानून बनाने, कृषि मूल्य आयोग को संवैधानिकता प्रदान करने की सिफारिश की थी. उस समय नौकरशाहों से इसका तोड़ खोजा.
उस दौरान तत्कालीन सरकार ने संविधान के आर्टिकल 34 में लिख गए मूल्य नियंत्रण को आधार बना कर MSP की अवधारण की थी, जिसके तहत फसलों के दामों को नियंत्रित करने के लिए MSP लाया गया था. इसका मकसद ये ही था कि उपभोक्ताओं को सस्ता कच्चा अनाज मिले और किसान खेती ना छोड़ें. उसके बाद समय बढ़ता गया और जागरूकता बढ़ी और MSP में भी बढ़ोत्तरी हुई, जो आज भी जारी है.
जाट कहते हैं कि MSP गारंटी कानून बनाने का अधिकार भारतीय संविधान में राज्यों के पास है. केंद्र सिर्फ दो स्थितियों में ये कानून बना सकता है. एक या तो राज्यसभा एक संकल्प पारित करे कि लोकहित में कानून बनाए जाए तो संसद ये कानून बना सकती है.
दूसरा देश के दो विधानमंडल ये संकल्प पारित करे कि ये कानून बनाना है तो संसद ये कानून बना सकती है. नहीं तो केंद्र सरकार कानून नहीं बना सकती है. जाट कहते हैं कि MSP गारंटी कानून केंद्र और राज्य दोनों ही बना सकते हैं, लेकिन MSP गारंटी कानून बनाने का मूल अधिकार राज्यों के पासही है.
राज्य सरकार MSP कानून कैसे बना सकते हैं. इसको लेकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर चुके रामपाल जाट कहते हैं कि बिहार, मणिपुर और केरल को छोड़कर पूरे देश में कृषि उपज मंडी अधिनियम लागू है. इस अधिनियम में ये प्रावधान है कि MSP से नीचे फसलों की खरीद किसानों से नहीं होनी चाहिए.
कई राज्यों के प्रावधान में इसको लेकर आज्ञा तक दी गई है, लेकिन नियम नहीं बनाए गए हैं. राजस्थान में अधिनियम में एक लाइन का संशोधन करना है कि नीलामी बोली MSP से शुरु होगी. इससे MSP गारंटी कानून की सुनिश्चितता हो सकेगी. बस इतने से संशोधन के साथ ही राज्य MSP गारंटी कानून बना सकते हैं.
MSP गारंटी कानून बनाने की सबसे बड़ी अड़चन WTO के साथ हुए समझौते को भी माना जाता है. इस समझौते में सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी फसल के दाम ग्लोबल रेट से अधिक नहीं होने चाहिए और किसानों को किसी भी फसल खरीद की गारंटी नहीं दी जा सकती है.
इसको लेकर केंद्र सरकार की कृषि सुधार कमेटी के सदस्य और किसान नेता कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि WTO के साथ हुए इस समझौते की मजबूरी सिर्फ भारत के सामने ही नहीं है. दुनिया के कई देश WTO के इस समझौते से बंधे हुए हैं और वह इसका तोड़ भी खोज चुके हैं, चौधरी कहते हैं कि दुनिया के कई देश किसानों को MSP गारंटी की जगह रिजर्व प्राइस देते हैं. चौधरी इस संबंध में एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज भी चुके हैं.
राजस्थान चुनाव के बीच गहलोत की MSP गारंटी किसानों और मतदाताओं को कितना प्रभावित करेगी और इस गारंटी के सहारे गहलोत चुनावी वैतरणी पार कर पाएंगे या नहीं... ये 3 दिसंबर को पता चल जाएगा, लेकिन, जिस तरीके से MSP गारंटी कानून को लेकर नई बहस शुरु हुई है और इसमें ये तय हुआ है कि राज्य भी MSP गारंटी कानून बना सकते हैं तो ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे का राष्ट्रीयकरण होना तय माना जा रहा है.
साथ ही देश की अन्य राज्य सरकारों पर गहलोत की गारंटी के बाद MSP गारंटी कानून बनाने का दबाब बढ़ेगा. वहीं अगर कोई गैर बीजेपी शासित राज्य का मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव से पहले MSP गांरटी कानून बनाने में सफल रहता है तो 2024 का चुनाव बेहद ही दिलचस्प हो सकता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today